जब भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ था, तब मोहम्मद अली जिन्नाह ने “Two Nation Theory” के प्रारूप की संरचना की तैयारी कर ली थी। जिन्नाह को एक मुस्लिम राष्ट्र चाहिए था मगर भारतीय नेतृत्व ने एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का निर्माण किया।
आज भारत की मूल संरचना को झकझोर देने वाला काम किया जा रहा है। ऐसा कहना कि मुस्लिमों के पास और भी देश हैं, वहां जाकर पनाह ले लें, सरासर संविधान के खिलाफ है।
भारत में सभी को रहने का उतना ही अधिकार है, जितना एक हिन्दू को है। यदि तर्क यह दिया जा रहा है कि हज़ारों साल पहले जैन धर्म और बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हिन्दू धर्म से हुई है, तो उन हिंदुओं का क्या जिनका मुस्लिम शासन के दौरान धर्म परिवर्तन करवा दिया गया।
घुसपैठियों को धर्म के आधार पर प्रवेश मिलना ही गलत है, चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम। यदि उन हिंदुओं को पनाह देनी ही है, तो नेपाल को देनी चाहिए। नेपाल में ऐसा नेतृत्व नहीं है, जो अपनी आर्थिक और सामाजिक परेशानियों को भुलाकर घुसपैठियों पर अपना समय और पैसा बर्बाद करे।
यह देश रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की दोस्ती की कहानियां पढ़कर बना है, ना कि जिन्नाह के दिखाए रास्तों से। यह देश गाँधी के आदर्शों से सींचा गया है, ना कि गोडसे के विचारों से।
एक कहानी याद आती है “मेंढक और उबलते पानी” की। एक बार एक मेंढक के शरीर में बदलाव करने की क्षमता को जांचने के लिए कुछ वैज्ञानिकों ने उसे उबलते पानी में डाल दिया, मेंढक ने तुरंत छलांग मार दी।
चूंकि पानी गर्म था फिर वैज्ञानिकों ने मेंढक को पानी में डालकर उसे उबालना शुरू किया, धीरे धीरे बढ़ते तापमान के साथ मेंढक खुद को अनुरूप ढालता गया, तापमान बढ़ता गया और मेंढक ऊर्जाहीन होता गया फिर जब उसे लगा कि अब सहनशक्ति जवाब दे रही है, तो उसने छलांग मारने की कोशिश की, अंततः वहीं प्राण त्याग दिए।
जिन लोगों को चुप रहने की आदत है, चुप रहें। लड़ना और बेबाक बोलना हर किसी के बस की बात है भी नहीं है। जब धीरे-धीरे मेंढक की तरह उबल उबलकर इतने ऊर्जाहीन हो जाओगे कि लड़ने और बोलने की क्षमता नहीं रहेगी, तब समझ आएगा कि 2 वैज्ञानिकों ने कैसे सारे शोध इस देश पर कर दिए हैं, चाहे नोटबंदी हो या असफल तरह से लागू की गई GST या फिर NRC और CAB.