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क्या IIMC जैसा सरकारी संस्थान सिर्फ अमीरों को ही पत्रकारिता सिखाएगा?

IIMC देश का सर्वोच्च मीडिया संस्थान माना जाता है। मैं खुद इस संस्थान का छात्र हूं। मीडिया के क्षेत्र में काम करने का सपना रखने वाले प्रत्येक विद्यार्थी के लिए IIMC एक सपना होता है। वह ये चाहता है कि वह IIMC से पढ़े लेकिन क्या वास्तविकता में यह संभव है? क्या गरीब, शोषित, दलित, वंचित तबके का व्यक्ति यहां पढ़ सकता है?

महंगी फीस का सबसे ज़्यादा असर लड़कियों पर

हमारा समाज पितृसत्तात्मक समाज है। यहां महिलाओं को दोयम दर्जा प्राप्त है। अपने घर से निकलकर विश्वविद्यालयों या उच्च संस्थानों तक पहुंचने वाली लड़कियां या महिलाएं कहीं ना कहीं मध्यम वर्ग परिवारों से आती हैं, जहां उनके अभिभावक उनकी भी पढ़ाई का खर्चा उठा सकते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि जिन परिवारों की कमाई कम है या जो निम्न मध्यम वर्ग है, उसमें फीस बढ़ने की सबसे पहली मार लड़कियों पर ही पड़ती है?

उदाहरण के तौर पर यदि किसी परिवार की सलाना आय एक लाख से दो लाख रुपए हो और उस परिवार में एक लड़का और एक लड़की हों तो किसी संस्थान की 95 हज़ार रुपए फीस भरने के लिए परिवार सबसे पहले लड़की की पढ़ाई बंद करेगा।

इस प्रकार कहीं भी किसी भी संस्थान में बढ़ती फीस की मार सबसे ज्यादा दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, शोषितों, वंचितों, गरीबों पर पड़ती है।

IIMC के स्टूडेंट्स फीस वृद्धि के खिलाफ प्रोटेस्ट में, फोटो साभार- आकाश पांडे

सस्ती शिक्षा ज़रूरी क्यों?

भारत में शिक्षा एक मौलिक अधिकार है। एक मज़बूत लोकतंत्र के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि देश का प्रत्येक नागरिक शिक्षित हो। भारत में सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को योजनाबद्ध तरीके से शिक्षा माफियाओं तथा सरकार की मिली-भगत से बर्बाद किया गया है।

आज सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की बदहाल स्थिति इनकी कारस्तानी की प्रत्यक्ष गवाह है। अब शिक्षा माफियाओं और सरकार की नज़र उच्च शिक्षण संस्थानों को बर्बाद करने पर हैं।

आज देश के तमाम विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों की फीस भयंकर रूप से बढ़ाई जा रही है, जिससे शिक्षा गरीब आदमी की पहुंच से दूर हो।

इसका ताज़ा और बेहतरीन उदाहरण है “हमारा अपना IIMC”

IIMC के स्टूडेंट्स द्वारा फीस वृद्धि के खिलाफ प्रोटेस्ट, फोटो साभार- आकाश पांडे

IIMC  में पिछले तीन सालों में फीस लगभग दो गुनी हो गई है, जो वर्तमान में 95 हज़ार से लगभग पौने दो लाख तक पहुंच गई है। अब सवाल यह है कि क्या देश के गरीब-गुरबे ,दलित, वंचित, शोषित, महिलाएं इस महंगी और बेलगाम बढ़ी हुई फीस के साथ पत्रकारिता में अपना ईमानदार भविष्य तलाश पाएंगे?

क्या इस देश में शिक्षा कोई महंगा ब्रांड का जूता – चप्पल या कपड़ा है कि जिसके पास पैसा होगा वो पहनेगा और जिसके पास नहीं होगा वो नंगा रहेगा?

कई स्टूडेंट्स महंगी फीस के चलते नहीं ले पाते एडमिशन

साथियों IIMC में हर साल बहुत सारे स्टूडेंट्स इस संस्थान की महंगी फीस के कारण एडमिशन नहीं ले पाते हैं। बहुत से निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के स्टूडेंट्स पूरी तरह से लोन लेकर इस महंगी फीस को भरने को मजबूर हैं।

वर्तमान सत्र में ही ऐसे बहुत से स्टूडेंट्स हैं, जो अगले सेमेस्टर की फीस भरने में असमर्थ हैं। जिसके कारण उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ेगी। ऐसे में सवाल यह है कि क्या IIMC जैसा सरकारी संस्थान सिर्फ अमीरों को ही पत्रकारिता जैसे जनसरोकार से जुड़े क्षेत्र में लाने को प्रतिबद्ध है।

साथियों जहां पत्रकारिता का प्रमुख काम जनसरोकार से जुड़े मुद्दों को उठाना है, वहीं जब संस्थान में आम गरीब स्टूडेंट्स ही नहीं आएंगे तो भविष्य में आम जनता के मुद्दों को मीडिया में देखना बहुत ही मुश्किल होगा।

IIMC के स्टूडेंट्स द्वारा फीस वृद्धि के खिलाफ प्रोटेस्ट, फोटो साभार- आकाश पांडे

इसके साथ ही जो स्टूडेंट इतनी महंगी फीस देकर पढ़ेगा, वह ज़ाहिर सी बात है कि जब इंडस्ट्री में जाएगा तो निश्चित ही किसी भी तरीके से अतिरिक्त लाभ कमाने की कोशिश करेगा। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता का कम होना कोई आश्चर्य नहीं होगा और मीडिया लगातार आम जनमानस से दूर होती रहेगी।

ऐसे में अगर हमें किसी भी तरह यहां पढ़ने का मौका मिला है, तो यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के हिस्से का IIMC बचाएं और उन्हें एक सस्ती और बेहतर शिक्षा का विकल्प उपलब्ध कराएं।

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