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हैदराबाद एनकाउंटर: ध्वस्त व्यवस्था में न्याय पाने का यह तरीका कितना सही?

हैदराबाद एनकाउंटर

हैदराबाद एनकाउंटर

बात हैदराबाद एनकाउंटर की, असल में इस बारे में कुछ बताने की ज़रूरत नहीं। हर कोई जानता है कि यह एनकाउंटर क्यों हुआ। सबकी ज़ुबान से तारीफ इस कदर निकली कि लोगों ने पुलिस को सीधा भगवान का दर्जा दे दिया। मुझे भी ऐसा ही लगा कि हर रेपिस्ट को यही सज़ा मिलना चाहिए।

जिस मनहूस जगह किसी लड़की से दरिंदगी की गई उसी जगह  अपराधी को मारना चाहिए। लेकिन एक सवाल मन में है कि क्या हमारी न्याय प्रणाली इतनी ध्वस्त हो चुकी है कि अब अपराधियों को सजा क्या ऐसे ही मिलेगी?

हम मांग यह क्यों नहीं करते कि सिस्टम में सुधार हो?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

लोगों का कहना है कि अगर यह एनकाउंटर है तो ठीक और अगर यह फेक एनकाउंटर है तो बहुत ठीक। पर एक बात बताइए कि हम कभी यह मांग क्यों नहीं करते कि सिस्टम में सुधार हो? निर्भया, दिशा, कठुआ की बच्ची, उन्नाव की बेटी, और न जाने कितनी हजारों लड़कियां हर रोज ज़िल्लत सहती हैं। लेकिन हैब भी जिस जिस केस को मीडिया ने दिखाया हम उसी के लिए ही मोमबत्ती लेकर न्याय मांगने खड़े होते हैं।

याद कीजिए जब दिल्ली का निर्भया केस हुआ था हर जगह उसके लिए प्रदर्शन हुए। और आज जब 7 साल होने को आए तो उसकी मां कैमरे के आगे रट हुए न्याय मांगती है। तो क्या हमारा प्रदर्शन सिर्फ मीडिया में हाईलाइट होने के लिए है?

हम कभी यह मांग क्यों नहीं करते कि कोई ऐसा नियम बनाओ कि रेप तो दूर की बात है, अगर कोई किसी भी लड़की के साथ बदसलूकी करता है तो उसके खिलाफ तुरन्त एक्शन हो। ताकि कानून और संविधान के दायरे में रहते हुए उस बेटी को इंसाफ मिल सके। सोचने की बात है कि एक लोकतांत्रिक देश में न्याय प्रक्रिया को हवा में उड़ाते हुए कोई फैसला कैसे लिया जा सकता है। 

हमारे देश में बातें अन्य देशों की होती हैं कि वहां रेपिस्टों को ऐसे ही मार दिया जाता है। भैया यह वहां का कानून है, हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है। हमारे यहां बिना संविधान और नियम के कुछ होता है तो वो गलत ही स्वीकारा जाएगा। यह अलग बात है कि वह भले ही वो भावनाओं की वजह से सही लगे।

एक और बात, कृपया इस संविधान के वास्ते यह मत फैलाइए कि फेक एनकाउंटर भी मान्य है। क्योंकि इससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं।

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