दुनिया की सबसे भीषण भोपाल गैस त्रासदी जिसमें लगभग 23 हज़ार लोग मारे गए थे, जिनके वंशज आज भी शारीरिक तौर पर अक्षम पैदा हो रहे हैं। भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी में से एक है, जिसके आज 35 साल पूरे हो गए हैं लेकिन पीड़ितों का हाल वही का वही है।
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था, जिसके कारण हज़ारों इंसान मृत्यु को प्राप्त हो गए जिसकी भरपाई आज तक हमारी सरकार ने नहीं किया।
जैक यले की किताब ट्रेसपास अगेंस्ट अस के मुताबिक भोपाल गैस त्रासदी के कारण भोपाल और उसके आसपास के पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए थे।
जैक डॉयले की किताब के अनुसार शुरुआती 3 दिनों में लगभग तीन हज़ार लोगों की मौत हो चुकी थी। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार 25 हज़ार लोग स्थाई रूप से अपंग और अपाहिज हो गए थे, जिनके वंशज आज भी अपंग और अपाहिज ही पैदा हो रहे हैं।
9% बच्चों में जन्मजात विकृतियां
हमारी सरकारें उनके लिए कुछ नहीं कर पाई हैं। आज टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि यदि हम चाहते तो उनके जीवन को मुख्यधारा से जोड़ सकते थे। उदाहरण के तौर पर हम जापन से सीख सकते हैं, जिसने हिरोशिमा एटॉमिक अटैक के शिकार अपने नागरिकों का पुनर्वास और सशक्तिकरण किया।
आरटीआई से मिले दस्तावेज़ों के अनुसार भोपाल गैस त्रासदी में पीड़ित महिलाओं के 1048 बच्चों में से 9% बच्चों में जन्मजात विकृतियां पाई गई हैं। पत्रिका में छपी खबर के अनुसार भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के संगठनों का कहना है कि आज तक सरकारों की तरफ से सिर्फ लॉलीपॉप दिया गया है।
उनका कहना है कि उन्हें सरकार ने सही तरीके से मेडिकल, आर्थिक और समाजिक सहायता नहीं दिया है। सरकारों ने यूनियन कार्बाइड और उसके मूल संगठन डाउ केमिकल के मालिकों के साथ सांठ-गांठ करके गुमराह करने का काम किया है।
भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी के आज जब 35 वर्ष पूरे हो चुके हैं, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल ट्वीट करके लोगों को सांत्वना दे रहे हैं।
लेकिन हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से हमारा प्रश्न यह है कि भले ही आज तक की सरकारों ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को नज़रअंदाज़ किया मगर आपने कोई सकारात्मक पहल क्यों नहीं की?