पूरे प्रदेश में महिला सुरक्षा और जागरूकता का ढोल पीटने वाली त्रिवेंद्र सरकार इस अभियान के पहले पायदान पर फुस्स नज़र आ रही है। उत्तराखण्ड में केंद्र से मिलने वाले निर्भया फंड का 50% हिस्सा भी त्रिवेंद्र सरकार खर्च नहीं कर पाई है।
जी हां चौंकिएगा नहीं, भारत सरकार राज्य के 5 ज़िलों के लिए निर्भया फंड दिया जाता है, जिसमें अल्मोड़ा, बागेश्वर, हरिद्वार, नैनीताल और ऊधम सिंह नगर शामिल हैं लेकिन अल्मोड़ा को छोड़ दिया जाए, तो बाकी चार ज़िलों में स्थित विकट है। सबसे ज़्यादा स्थिति खराब हरिद्वार ज़िले की है, जहां 20% बजट खर्च हुआ है।
उत्तराखंड लापरवाह नज़र आ रहा है
दिल्ली के निर्भया केस के बाद भले ही देश में कई बदलाव आए हों लेकिन महिला सश्क्तिकरण और जन जागरूकता के मामले में उत्तराखंड लापरवाह नज़र आ रहा है।
दरअसल, भारत सरकार द्वारा उत्तराखंड समेत देश के सभी राज्यों को निर्भया फण्ड जारी किया जाता है। इसमें लड़कियों के लिए सेल्फ डिफेन्स प्रोग्राम, अवेयरनेस प्रोग्राम से लेकर ज़िला स्तर पर मीटिंग तक के लिए भारत सरकार बजट देती है।
इतना ही नहीं निर्भया फंड के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार ने निर्भया प्रकोष्ठ का भी गठन किया, मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में महिला सशक्तिकरण और बाल विकास विभाग पिछले साल का ही बजट ही खर्च नहीं कर पाया है। सबसे ज़्यादा खराब स्थिति हरिद्वार की है, जहां 6.70 लाख में से सिर्फ़ 1.60 लाख रुपये ही खर्च किए गए हैं।
इस साल के लिए क्या उम्मीद की जाए?
अल्मोड़ा में भी 3.89 लाख रुपये खर्च हुए हैं। बागेश्वर ज़िले में पूरे 6.70 लाख का पूरा बजट खर्च हो पाया है। इधर नैनीताल में 4.69 लाख रूपये और उधमसिंह नगर में 4.10 लाख रूपये खर्च हो पाए हैं। यानी पांचों ज़िलों के कुल बजट का औसत निकाला जाए तो 33.50 लाख में से सिर्फ 20 लाख ही खर्च हो पाए हैं।
इस मामले में एक दिक्कत यह भी है कि जब तक उत्तराखंड सरकार साल भर का पूरा खर्च नहीं दिखाएगी, तब तक भारत सरकार बजट रिलीज़ नहीं करेगा, जब पिछला बजट ही खर्च नहीं हुआ तो इस साल के लिए क्या उम्मीद की जाए? यह हाल तब है जब मंत्री मंडल में एक मात्र महिला राज्य मंत्री रेखा आर्य इस विभाग की ज़िम्मेदारी संभाल रहीं हैं।
एक तरफ बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा सरकार दे रही है, वहीं दूसरी और ज़मीनी हकीकत यह है। ऐसे में विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने तो लाज़मी है।