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“साल 2019 में भी इन मौकों पर नहीं बचा पाए हम अपने मानवाधिकार”

मॉब लिंचिंग

मॉब लिंचिंग

हर साल की तरह यह साल भी खत्म होने वाला है। अगर इस साल को हम पूरी एक नज़र से देखें, तो यह पूरा साल कुछ ज़्यादा ही विवादों में रहा है। बीते समय में देश में जिस तरह का माहौल देखने को मिला है, उसमें मानवाधिकार का मुद्दा कभी ताक पर, तो कभी आसमान पर नज़र आया।

हमारे देश में 28 सितंबर, 1993 से मानवाधिकार कानून अमल में आया था, जिसके बाद 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन हुआ। आयोग के कार्यक्षेत्र में बाल विवाह,स्वास्थ्य, भोजन, बाल मज़दूरी, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति आदि के अधिकार आते हैं।

इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों से मानवाधिकारों के उल्लंघन की दिल दहला देनी वाली घटनाओं की खबरें आती रहती हैं। हर एक मुद्दे ने इस साल मानवधिकार की चर्चा को नए सिरे दिए हैं। ऐसे में हमारा भी इस साल को अलविदा कहने से पहले, उन बातों को याद करना बनता है, जो मानवधिकार की दृष्टि से हमपर असर डालने वाले रहे।

प्रताकात्मक तस्वीर

मॉब लिचिंग के 36 घटनाएं दर्ज

इस साल बच्चा चोरी, गौकशी व चोरी की अफवाह फैलाकर भीड़ ने कई लोगों के साथ मारपीट की। इस हिंसा में कई मासूमों की हत्याएं भी हुई। साल को मुड़कर देखें तो पांच माह में ही ज़िले के विभिन्न थाना क्षेत्र में अफवाह के कारण मॉब लिचिंग के 36 घटनाएं दर्ज की गयी हैं।

मॉब लिंचिंग

अगर हम राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्यक्षेत्र की बात करें तो इसके अंतर्गत बाल विवाह, स्वास्थ्य, भोजन, बाल मज़दूरी, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौतें शामिल हैं। ऐसे में मॉब लिंचिंग की घटनाएं मानवाधिकार का खुलेआम उल्लंघन है।

धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार

अभी कुछ वक्त पहले ह्युमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। भारत के संदर्भ में इस रिपोर्ट में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति संबंधित विभाग की उदासीनता और नेताओं के भड़काऊ भाषणों का ज़िक्र किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार दलितों और जनजातीय समूहों के साथ भेदभाव और अत्याचार से रक्षा करने के लिए बनी नीतियों को लागू करने में नाकाम रही है।

इन अधिकारों के हनन की बात नागरिकता कानून के बाद से और ज़्यादा सामने आई हैं। यहां तक की अमेरिका जैसे देश ने भी भारत को नसीहत दे डाली कि वह अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे।

मॉब लिंचिंग

LGBTQ+ समुदाय के अधिकार

LGBTQ+ समुदाय के लिए जहां इस साल ट्रांस बिल को लाकर सरकार ने उन्हें अधिकार देने की बात की, वहीं इस बिल को विरोध का सामना करना पड़ा।

सरकार का कहना है कि यह बिस ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों को अधिकार देगा और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकेगा। इन अपराधों में शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा, वर्क प्लेस में ट्रांसजेंडर होने के चलते होने वाला भेदभाव या नौकरी देने में होने वाला भेदभाव शामिल है।

वहीं ट्रांस समुदा का कहना है कि यहट्रांस लोगों की ज़िंदगी नहीं बदल सकता है। उनके अनुसार उन्होंने अपनी मांगों की एक लिस्ट दी थी, लेकिन सरकार ने उसे इग्नोर कर दिया।

वहीं इस साल ह्युमन राइट्स वॉच रिपोर्ट में लिखा है कि LGBTQ+  को लगातार उत्पीड़न, जबरन वसूली, धमकी और बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ता है और पुलिस भी उनके साथ इसी तरह का बर्ताव करती है।

दलितों के अधिकार

इस साल एक बार फिर दलितों के खिलाफ हिंसा के कई केस देखने को मिले। जिसमें गुजरात उना में हुई बर्बरता ने भी समाज का ध्यान एक बार फिर मानव अधिकार के प्रति खींचा है।

1975 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इसमें किसी भी तरह के उत्पीड़न की निंदा करते हुए उसे अमानवीय करार दिया था लेकिन हम अभी भी दलितों को उनके अधिकारों से ना सिर्फ वंचित करते हैं बल्कि उनके साथ हिंसा पर भी उतर आते हैं।

तीन तलाक कानून से मिले अधिकार

जहां हम 2019 को ढेर सारे विवाद और विरोधों के लिए याद रखेंगे, वहीं इसी साल को तीन तलाक कानून के लिए भी याद किया जाएगा। यह एक कानून ऐसा है जिसने महिलाओं को सही मायने में न्याय दिया है।

तीन तलाक

इस कानून के बाद अब कोई भी पुरूष तीन तलाक देकर महिला पर अत्याचार नहीं कर सकता। ऐसा करने वाले पुरुष को दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कार्रवाई में सज़ा और जुर्माना दोनो हो सकते है।

हालांकि संविधान के अनुसार तलाक के अन्य प्रारूप को संवैधानिक मान कर बरकरार रखा गया है। इसके तहत जो पति-पत्नी अपनी स्वेच्छा से तलाक लेना चाहते हैं, वो कानूनी प्रक्रिया से ले सकते हैं। पुरुष व महिला दोनों को संवैधानिक रूप से फैमिली कोर्ट में तलाक की अपील करने का पूरा अधिकार है।

अब धर्म के नाम पर मिले एक तरफा अधिकारों का नाम लेकर कोई भी पुरुष, महिलाओं का शोषण नही कर सकता। अब महिलाएं धर्म के नाम पर लाचार नहीं होंगी।

पूरे साल को सिलसिलवार तरीके से देखें तो हम पाएंगे कि देश में मानवाधिकारों का खुले-आम उल्लंघन हुआ है। हाल ही में नागरिकता कानून सबसे बड़ा उदाहरण है। अलग-्अलग इलाकों में जिस तरह से इंटरनेट बंद किए जा रहे हैं, वह भी हमारे अधिकारों का हनन ही है। कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने से लेकर यूपी और हैदराबाद में एंकाउंटर की खबरें साफ तौर पर हमारे मानवाधिकारों को जीभ चिढ़ाती हैं।

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