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“मानव सभ्यताओं की प्रगति के सुनहरे सफर में आज हम सब कमज़ोर हैं”

हम मानव सभ्यताओं की प्रगति के सुनहरे सफर पर हैं। हमने लंबे समय में बहुत कुछ हासिल कर लिया है। अनादिकाल से जंगलों में भटकते हुए कंदमूल फल और जानवरों का शिकार करके अपना जीवन यापन करने वाले हम मानव ने आग की खोज, पहिए का अविष्कार और कृषि की खोज करके स्थायी मानव सभ्यताएं बसायी।

भाषाओं और लेखन कला का अविष्कार करके अपनी आवश्यकताओं, भावनाओं, विचारों को एक दूसरे से साझा करके अपनी समझ और ज्ञान को बढ़ाते हुए मानवीय जीवन का अर्थ ढूंढा और एक जीवन जीना शुरू किया। मानवीय सभ्यताओं को एक नया रूप दिया।

प्रतीकात्मक फोटो

मानव सभ्यताओं का विकास

सभ्यताओं के स्थायित्व की इस प्रक्रिया में तमाम सामाजिक परेशानियों से जूझते हुए सामाजिक और व्यकिगत नैतिक आदर्श स्थापित करने के लिए एक स्वतः नियमित प्रणाली के लिए नैतिक आदर्श की परिकल्पना में धर्म और भगवान का अविष्कार भी किया। जिससे एक लक्ष्य पूर्ण जीवन की शुरुआत हुई।

मानवीय जीवन में एक धर्म (जीवन शैली/दिनचर्या) की शुरुआत हुई जिसने दूसरे मानव से प्रेम करना सिखाया। दूसरों के साथ किसी भी तरह के दुर्व्यवहार को पाप बताया। जिसके लिए भगवान के द्वारा बुरे कर्मों की सज़ा दिए जाने का डर स्थापित किया। स्वचालित धर्म के नियंत्रण में मानव सभ्यताएं और अधिक फली-फूली, समृद्व हुई और विकसित हुई।

समय के साथ मानव के ज्ञान की पिपासा और जिज्ञासाओं ने इन काल्पनिक नियमों और धर्मों पर संशय और अविश्वास पैदा कर दिया क्योंकि, दुनिया की प्राचीनतम महान सभ्यताएं दुनिया के अलग-अलग हिस्से में विकसित हुई थी। इसलिए उनकी भाषा, उनकी संस्कृति, उनका धर्म और उनके भगवान भी अलग अलग थे। लेकिन इसके बावजूद उनमें कई समानताएं जैसे जलप्रलय की कहानी लगभग सभी धर्मग्रन्थों में एक सी है।

धर्म से उपजा संशय

धर्म के इस संशय से उत्पन्न अविश्वास से दो चीजें हुई पहली हमने उस ईश्वर से डरना कम कर दिया जो हमें खुशहाल मानवीय सभ्यताओं के लिए आवश्यक नियमन करता था। जिसकी वजह से हमारा नैतिक पतन होने लगा। हम दूसरों को नियंत्रित करने की सोचने लगे। आपस में लड़ने झगड़ने लगे साम्राज्यवादी रवैया अपनाने लगे।

धर्म के इस संशय से दूसरी बात यह हुई कि हमने अपने धर्म को मान्यता दी दूसरे धर्म को खारिज किया वर्चस्व की इस लड़ाई में अपने-अपने धर्म का झूठा और सही प्रचार प्रसार किया। अपने को सही और दूसरे को गलत साबित करने लग गए। हिंसाओं पर उतर आए। साम्राज्यवादी रवैये के इस विस्तार में राज्य और धर्म भी एक होने लगे। हम धर्म के माध्यम से राज्यसत्ता और राज्यसत्ता के माध्यम से धर्म स्थापित करने लगे।

धर्म की इस डांवाडोल स्थिति में सामाजिक और व्यक्तिगत नैतिकताएं नष्ट होने लगी राजे महाराजे खुद को भगवान समझने लगे। समाज सामंत और मजदूर, सवर्ण और दलित में बंटने लगे। अत्याचार और कुरीतियां अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँच गयी। उदाहरण के तौर पर व्यक्तियों को गुलाम बनाकर खरीदा और बेचा जाने लगा।

फिर मानवीय सभ्यता के इतिहास में पुनर्जागरण काल आया मानव की जिज्ञासा, ज्ञान की पिपासा शांतिपूर्ण और सुखमय जीवन की लालसा में कला साहित्य और मानवतावाद का उदय हुआ। अरस्तु, प्लूटो और सुकरात जैसे विभिन्न दार्शनिक आये जिन्होंने जीवन के विभिन्न विषयों पर गहराई से प्रकाश डाला।

विज्ञान और औद्योगिक क्रांति

प्रिंटिंग मशीन की खोज ने मानव सभ्यता को एक नया आयाम दे दिया। अनुभव, ज्ञान और विचारों को तेजी से एक दूसरों तक पहुंचाया जाने लगा। मनुष्य ज्ञान के प्रति जाग्रत हुआ। साहित्य और कला में भी रुचि लेने लगा।

व्यक्ति धर्म के प्रति उदार रवैया अपनाने लगा। मानवता के प्रति जाग्रत हुआ अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग और जिम्मेदार होने लगा। सत्ता से राजाओं का एकाधिकार समाप्त होने लगा। राज्य धर्म से अलग होने लगे। बीसवीं शताब्दी में
पूरी दुनिया धर्मनिरपेक्ष लकतंत्रात्मक गणराज्यों में बदलने लगी।

विज्ञान में नित नए अविष्कार होने लगे। औद्योगिक क्रांति से लेकर हरित क्रांति तक, चंदमा से लेकर मंगल ग्रह तक, कैलक्युलेटर से लेकर लैपटॉप, मोबाइल तक, एक छोटी सी मशीन से लेकर स्वचालित रोबोट तक दुनिया में हम अपना परचम लहराने लगे। ज्ञान विज्ञान के इस युग में हम संचार और तकनीकी युग में प्रवेश कर गए । वर्तमान की सूचना क्रांति हमें तेजी से और ज्ञानवान बनाएगी जो हमारी सत्य के खोज के लिए राह आसान बनाएगी।

इक्कीसवीं सदी मानवीय सभ्यताओं के इतिहास की सबसे बड़ी घटना होगी । जहाँ इक्कीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध तकनीकी रूप से संचार माध्यमों का जाल बिछाकर कर हम सूचनाओं से संपन्न बनाएगा वहीं सदी के उत्तरार्द्ध में हम ज्ञान और अनुभव से समृद्ध होने लगेंगे।

वर्तमान स्वरूप और हम

व्यक्तिगत तौर पर हो सकता है कि आज हम भले ही खुश ना हो (क्योंकि यह हमारी मनोस्थिति पर भी निर्भर करता है।) लेकिन सामाजिक स्तर पर सभ्यताओं और इतिहास के नजरिए से हमने बहुत प्रगति की है। हमने अपने जीवन को आसान, आरामदायक और सुखदायक बनाया है। हमने अपने अंदर दया, क्षमा, सहानुभूति, संवेदना और प्रेम जैसे मानवीय गुणों को विकसित किया है।

साहित्य और कला ने व्यक्ति और समाज के अंदर जिस तरीक़े से व्यक्तिगत कमज़ोरी और दोषों जैसे नफरत, हिंसा, ईर्ष्या को उकेरने में अपना योगदान दिया है। वह बहुत ही अहम है। मीडिया, साहित्य और कला ने राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना को विकसित करने में अपना अमूल्य योगदान देकर सभ्यताओं को और स्थायी बना रही है।

तमाम खूबियों के बावजूद हमें अपनी सामाजिक असफलताओं, व्यक्तिगत कमज़ोरियों और खामियों को नजरअंदाज नही करना चाहिए। धर्म के प्रति अतिवादी रवैया, प्रकृति के प्रति उदासीनता, बढ़ती व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के बीच कम होती सामाजिक उत्तरदायित्व की कमज़ोर भावना और विलासिता पूर्ण जीवन की चाहत अभी भी हमें महान मानव सभ्यता बनने से रोक रही है। लेकिन यह इतिहास से लेकर अब तक कि उपलब्धियों के आगे गौण है। जिसके लिए हमें बस थोड़ी और मेहनत की आवश्यकता है।

वृद्ध हमेशा अतीत में खोया रहता है और युवा भविष्य के सपने संजोता रहता है जिसके बीच हमें अपने अतीत के अनुभव को समेटते हुए भविष्य के सपनों को संजोकर वर्तमान की नींव को मज़बूत करना होगा। जिससे मानवता का यह गुलदस्ता युगों युगों तक खिलता और खुशबू बिखेरता रहे।

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