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“लोगों से नागरिकता सिद्ध करवाने का अधिकार इस सरकार को किसने दिया?”

नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र मोदी

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान में शामिल हुए लोगों में से कुल 22 करोड़ 91 लाख लोग भाजपा के साथ गए। जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 17 करोड़ 17 लाख लोगों का था। ज़ाहिर है इस बढ़े हुए आंकड़े में आप भी शामिल होंगे। हमारे प्रधानसेवक विभिन्न मंचों से दावा कर रहे हैं कि देश में जो कुछ भी हो रहा है, वह आपके दिए हुए जनादेश का परिणाम है।

तो क्या आपके आदेश से ही प्रधानसेवक अपनी नीतियों को देश पर थोप रहे हैं? यदि ऐसा है तो मेरे माथे पर शिकन क्यों नहीं उभरेगी? पिछले कुछ सालों के दौरान यह तक भूल गया कि मैं खुद कौन हूं? इस मुल्क से प्यार करने वाला वह शख्स जिसे आपके जनादेश ने ना जाने कितनी संज्ञाएं दीं, मिसाल के तौर पर देशद्रोही, अर्बन नक्सल, लिबरल, गद्दार या फिर कुछ और!

जो चाहते थे वही हुआ

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार- Getty Image

मेरी छोड़िए मुझे यह उम्मीद है कि कम-से-कम आज कल आप सभी तो बहुत खुश होंगे। आप काला धन मिटाना चाहते थे, इसलिए नोटबंदी कर दी गई। वह अलग बात है कि बीते दिनों में सरकारी हिसाब के मुताबिक कालेधन में भारी इज़ाफा हुआ है। आप चाहते थे कि वन नेशन वन टैक्स हो, इसलिए जीएसटी लागू किया गया। यह अलग बात है कि कारोबार की कमर टूटी जा रही है।

आप चाहते थे मुस्लिम महिलाओं को बेवजह तलाक की परेशानी से आज़ाद किया जाए, तो मिले जनादेश के दम पर प्रधानसेवक की अगुवाई में तीन तलाक बिल पारित करवाया गया। हां, रश्मि ज़रूर यह कह रही थी कि कितनी खूबसूरती से इस बीच हिन्दू महिलाओं की समस्याओं को छुपा दिया गया।

आप चाहते थे अयोध्या में बाबरी मस्जिद की कब्र पर राम मन्दिर बने, सुभान अल्लाह आपकी यह कामना भी पूरी हो गई। कश्मीरी पण्डितों के घाटी छोड़ने के गम में ना जाने कितनी रातें आपने बिना सोये गुज़ारी होंगी? इसलिए कश्मीरी मुस्लिमों की हवा टाईट कर दी गई।

और तो और वहां इंटरनेट अब चूं तक नहीं करता है। आपने वहां कितनी ज़मीनें खरीदी यह मुझे नहीं पता मगर कुछ तो आपने कमाया ही होगा। आप चाहते थे घुसपैठियों को देश से भगाया जाए, भगवान की असीम कृपा से वह भी बस होने ही वाला है।

इसके बाद सब भले-चंगे रहेंगे और मुल्क में चहूं ओर खुशहाली होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है क्या? देश इस तरह से चले यही तो आप चाहते थे। आप बेरोज़गारी के लिए इतनी बड़ी आबादी को कोसते थे। अब उनका सफाया शुरू कर दिया गया है। बहुत सारे लोग मारे जा रहे हैं और मारे जाएंगे। तब जनसंख्या बहुत कम हो जाएगी और जनसंख्या के चलते बेरोज़गारी नहीं रहेगी।

प्रति व्यक्ति आय भी बहुत बढ़ जाएगी। प्रति व्यक्ति आय तो समझते हैं ना चाचा? चलिए मैं समझााता हूं, फर्ज़ कीजिए कि अभी आप 100 रुपया रोज़ कमाते हैं, तब आप 5 हज़ार रुपया रोज़ कमाएंगे। यही तो सपना देखकर आपने जनादेश दिया होगा? हम मान लेते हैं कि आप 23 करोड़ लोग ही शुद्ध आर्य नस्ल के 24 कैरेट भारतीय हैं। तब सोचिए आप कहां से अपने इस नए इंडिया को भोगना शुरू करेंगे? सोचिए, अजी सोचिए ना, शरमा क्यों रहे हैं भाई?

पिछले 70 सालों में बहुत से लोग सरकारी नौकरशाही में शामिल हुए थे। आपने नहीं चाहा ऐसी निकम्मी नौकरशाही, तो आपके जनादेश के दम पर सरकारी भर्तियां लगभग बंद कर दी गईं। 70 सालों से जितने सरकारी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खोले गए थे, वे नाकाफी थे। इसलिए आपने चाहा इन्हें बन्द करके निजी शिक्षण संस्थान खोलने की छूट हो। तो यह काम भी तेज़ रफ्तार से हो रहा है।

अच्छे खासे सरकारी अस्पताल, डिस्पेंसरी और मेडिकल कॉलेज आदि को सरकार ने सुरक्षित हाथों में सौंपने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ी है। बस आपको ज़रा अधिक पैसे चुकाने होंगे। अब मरने के बाद यम की भी क्या औकात कि बिना बिल चुकाए आपको कहीं ले जा सके?

क्या आपके द्वार पर घी के दिये जल रहे हैं?

नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आपने जो चाहा वह सब हुआ या हो रहा है। आपके जनादेश ने काया पलटकर रख दिया। आपके द्वार पर घी के दिये जल रहे हैं। अब अपनी चाहत पर भी ज़रा गौर कर लें। क्या आपने चाहा कि लोग अधिक से अधिक बेरोज़गार रहें? क्या आपने चाहा शिक्षा और इलाज आदि में कम से कम खर्च हो?

आपके बच्चे बढ़िया शिक्षा ग्रहण कर सरकारी नौकरी हासिल कर सकें? क्या आपने चाहा बैंकों में जमा किया गया पैसा अंबानी, अदानी, माल्या, मोदी और चोक्सियों को खैरात में दे दी जाए?

क्या ऐसा आपने चाहा था कि रोज़ दर्जनों लड़कियों का बलात्कार हो और बलात्कार के बाद उन्हें ज़िंदा जला दिया जाए? आप इतने बलात्कार प्रेमी कब बन गए कि बलात्कारी के समर्थन में जुलुस निकलना शुरू कर दिया? क्या आपने चाहा था कि व्यापार की कमर तोड़ दी जाए? क्या आपने चाहा था कि लाखों मकान बनकर तैयार पड़े रहें और कोई उन्हें खरीदने वाला ही ना हो? क्या आपने चाहा था शिक्षा का बजट कम करते हुए सांसद और विधायकों का वेतन बढ़ा दिया जाए?

ये सभी सवाल सुनते ही आप तंग होंगे, गुस्से से भरे होंगे फिर माँ बहन की गाली देने लगेंगे? क्या इस तरह आप भारतीय संस्कृति को वापस लाना चाहते थे, जहां किसी के सवाल का जवाब ना देकर उसकी बहन बेटी का बलात्कार करके ही उसे चुप करवाया जाता हो? ऐसा भी देश आप चाहते थे जहां राष्ट्रीय ध्वज का सहारा लेकर बलात्कारियों का बचाव किया जाता हो?

वे ऋषि-मुनि जो ज्ञान की चर्चा करते हुए एक-दूसरे के तर्क का खंडन-मंडन करते थे, वे कौन सी संस्कृति की पैदाइश रहे होंगे? क्या आप वाकई उनके वारिस हैं? ज़रा सोचिएगा। आप कहते हैं जो मांस खाते हैं वे हिंसक होते हैं फिर आप मांस खाने वालों के मांस में इतना स्वाद कब से लेने लगे? आप शुद्ध शाकाहारी से नरभक्षी कब और कैसे बन गए? सोचिए ना, शरमा क्यों रहे हैं?

आपके मज़बूत कंधों पर ही तो रामराज्य की बंदूक टिकी हुई है। जो आप ही के किसी भाई-बहन की ओर तनी है, जो सवाल पूछ रहे हैं और बेहिचक मंथन कर रहे हैं। सत्तासीन लोग कहते हैं कि आपके आदेश के बिना वे एक भी कदम नहीं उठाते। आप पिछले चुनाव की कुल आबादी का 14.2 फीसदी भर थे।

बिल्कुल इतने ही मुसलमान हैं हमारे देश में। 2019 लोकसभा चुनाव में आप 17 फीसदी हैं और लगभग इतने ही दलित हैं देश में। इसके अलावा 9 फीसदी आदिवासी और तकरीबन 50 फीसदी औरतें भी हैं। आप चाहते हैं कि ये सभी बिना कुछ बोले आपकी बेगारी करते रहें, तो क्यों?

यही हाल रहा तो आप इंसान से किसी रीढ़हीन प्राणी में तब्दील हो जाएंगे

नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आवाज़ उठाने पर आप इन सभी को जान से मार भी देना चाहते हैं? इसके बाद भी आप खुद को शांतिप्रिय कहते हैं? गज़ब है भैया गज़ब! क्या कभी आपने सोचा है अपनी शांति की परिभाषा के बारे में? क्या जब आप 23 करोड़ लोग सिर्फ इस देश में रहने लगेंगे तब शांति कायम हो जाएगी और वह भी हमेशा के लिए? क्या तब आपलोगों में जाति का बंटवारा नहीं रहेगा?

आप में से बहुत से लोग मुस्लिम, आदिवासी, महिला और दलित भी हैं। क्या तब आप सब बराबर हो जाएंगे? अगर हमारी गैर-मौजूदगी में आप बराबर होने का दावा करते हैं, तो मिटा दीजिए बाकी के उन 111 करोड़ लोगों को, जो आपकी हां में हां नहीं मिला रहे, या फिर जो सवाल उठा रहे हैं।

असल में बराबरी आपको हमेशा से नापसंद रही है। इसलिए वहां भी ऊंच-नीच तो होगी। तब भी शिक्षा से ज़्यादा सुरक्षा में खर्च किया जाएगा, क्योंकि आपके आकाओं को हमेशा असुरक्षा महसूस होती है। सवाल जब उठते हैं तब उनकी जान पर बन आती है। लोग जब घरों से बाहर निकलकर विरोध करते हैं, तब उनकी खींची हुई सरहद पर तनाव पसरने लगता है।

जब आपके जनादेश के आधार पर उनका ऐसा राज होगा जहां कोई चूं भी ना कर सके, तब भी वहां कानून और अदालत होंगे। जिसमें आपके नाम पर झूठे मुकद्दमे चलाए जाएंगे, शायद देशद्रोह के आरोप में! भले ही आपको लौकी पसंद होगी लेकिन राष्ट्रीय भोजन करेला घोषित कर दिया जाएगा।

पुलिस आपकी हड्डियां तोड़ देगी और तब भी आप में से बहुत से मर्द बलात्कारी होंगे जिन्हें औरतों को अपनी जगह और औकात दिखाना ज़रूरी लगेगा। अगर आप गुस्से में उन अनहोनी पर कुछ कहेंगे तो पुलिस, फौज, अदालत सब आपके खिलाफ ही इस्तेमाल होंगी। ऐसा करते-करते विकास के सिद्धांत के उलट आप इंसान से किसी रीढ़हीन प्राणी में तब्दील हो जाएंगे। मैं यह सोचकर चिंतित हूं कि लोगों से नागरिकता सिद्ध करवाने का अधिकार आखिर इस सरकार को दिया किसने?

जनादेश की शहनाई फूंकने वालों, ज़रा यह बताओ कि आपलोगों को कब यह तय करने का अधिकार मिल गया कि वे पूरे 134 करोड़ लोगों की नागरिकता का फैसला लें? अब मैं कौन हूं यह भी बताना होगा! तो भाइयों-बहनों, मैं इस भारत का आम नागरिक हूं जो पढ़ लिखकर कुछ बेहतर करने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन आपके द्वारा मचाए कोलाहाल में व्यथित हुआ जा रहा हूं।

मैं गुनगुनी धूप में अपने परिवार के साथ बैठकर प्रेमचंद की कोई कहानी पढ़कर सुकून से दिन गुज़ारना चाहता हूं लेकिन तभी आपके जनादेश के दम पर प्रधानसेवक एक नया शिगूफा छोड़ देते हैं। आपके कंधों पर ज़िम्मेदारी तो बहुत बड़ी है। अब आपको तय करना है कि आपके कंधे उनकी बंदूक रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते रहेंगे या फिर आपके कंधों पर आपके परिवार की खुशहाली का दारोमदार हो। मेरे सहनागरिकों, आपसे मुझे उतना ही प्यार है जितना खुद से।

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