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“मैं पेरियार अन्ना के काम का लोहा मानूंगा पर उनकी सोच का हमेशा विरोधी रहूंगा”

ई.वी रामास्वामी जिनको भारत पेरियार के नाम से जानता है, दक्षिण भारत खासतौर से तमिलनाडु में काफी चर्चित व्यक्ति रहे हैं। उन्होंने दलित उत्थान और महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत काम किया है लेकिन उनकी विचारधारा नास्तिक रही। उन्होंने नास्तिक विचार को ही अपने जीवन का आधार बनाया।

पेरियार रामास्वामी, फोटो साभार- ट्विटर

मैं कभी उनका या उनकी सोच का समर्थक नहीं रहा। कई लोग मुझपर यह इल्ज़ाम लगाते हैं कि जो लोग उत्तर भारत के सामान्य वर्ग से आते हैं और हिंदी बोलते हैं, वे पेरियार के विरोधी ही रहेंगे लेकिन सच यह है कि इन सब बातों की वजह मैं पेरियार अन्ना का विरोधी नहीं बना।असली वजह कुछ और थी और उस वजह को मैं आपके सामने रखना चाहता हूं।

क्यों हुए पेरियार हिन्दू रीति-रिवाज़ों के खिलाफ?

कहते हैं कि जब पेरियार जवान थे, तो वे काशी विश्वनाथ के मंदिर गए। वहां उन्हें ब्राह्मणों ने उनकी जाति की वजह से उन्हें प्रसाद देने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई अंधविश्वासी कार्य होते हुए देखे लेकिन धर्म से नफरत के लिए काशी विश्वनाथ में हुआ भेदभाव काफी है।

मेरा मानना है कि अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई ज़रूरी है और जाति-प्रथा के खिलाफ भी, लेकिन वह काम भगवान और धर्म में विश्वास रखकर भी हो सकता है। मिसाल के तौर पर डॉ अम्बेडकर ने कहा था कि भारत में धर्म ही उसकी आत्मा है और सारे सामाजिक सुधार धर्म की सहायता से ही होंगे।

पेरियार रामास्वामी, फोटो साभार- ट्विटर

राजा राम मोहन रॉय ने सती प्रथा को हटाया था, तो क्या ऐसा उन्होंने धर्म का विरोध करके किया था? जवाब है नहीं। जब गोपाल कृष्ण गोखले और उनके साथियों ने लड़कियों की शिक्षा और बाल विवाह के खिलाफ काम किया था, तो क्या हिन्दू धर्म का विरोध करके किया था? जवाब है ना।

मेरा एक और सवाल है, सन 1974 को पेरियार की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मनाम्मई ने रावण लीला के नाम पर राम लक्षमण और सीता की मूर्तियां जलाई थी। उन्होंने यह कहते हुए यह किया कि द्रविड़ियन राजाओं की आर्यन राजाओं द्वारा हत्या का हम विरोध करते हैं।

हालांकि मेरा सवाल यह है कि खुद पेरियार और उनके समर्थक रामायण को झूठ और ब्राह्मणों की कल्पना बताते थे, तो उसके किरदार आज सत्य कैसे हो गए। दूसरा सवाल यह है कि चलो मान लेते हैं कि आपने सत्य मान लिया लेकिन तब भी रावण एक ऐसा व्यक्ति था, जो खुद एक ब्राह्मण था और उसका जन्म स्थान उत्तर भारत में था, फिर आपके लिए वह द्रविड कैसे हुआ? सिर्फ श्री लंका पर राज करने से वो द्रविड़ियन हो गया?

रामायण काल्पनिक फिर रावण पर इतना बवाल क्यों?

अपने नाम में खुद राम लिखने वाले पेरियार, राम को हमेशा एक काल्पनिक किरदार कहते थे, लेकिन उसी रामायण के दूसरे किरदार रावण को सच मानते थे और द्रविड़ भी, यह कैसे? खुद राम सेतु को काल्पनिक बताने वाले पेरियार के मरने के कई साल बाद एक अंतरिक्ष में घूमने वाले सैटेलाइट्स ने एक तस्वीर दुनिया को दिखाई थी जिसमें तमिल नाडु के रामेशवरम (जहा से भगवान राम ने राम सेतु की शुरुआत की थी) से श्री लंका तक राम सेतु की तस्वीरे दिखाई।

भारत की आज़ादी के लिए जहा कई भारत माँ के सपूत फांसी पर चढ़ गए,  उनमें से एक भगत सिंह की खुद पेरियार ने उनके लेख why I am atheist का तमिल में अनुवाद करके तारीफ की थी, लेकिन वहीं पेरियार ने इस आज़ादी का विरोध किया और 15 अगस्त को एक शोक का दिन माना।

पेरियार ने माना कि स्वतंत्र भारत ब्राह्मणों और उत्तर भारतीयों के प्रभुत्व के तहत दक्षिण भारतीयों, विशेषकर तमिलों को लाएगा हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं और इसी विचार के कारण अन्नादुराई और संपत नाम के दो नेताओ ने संपत जो खुद पेरियार के रिश्तेदार थे, उन्होंने पेरियार को छोड़ दूसरी पार्टी बनाई। हालांकि उन्हीं के पार्टी के उद्घाटन समारोह में उन्होंने पेरियार के लिए एक खाली कुर्सी रखी थी, यह कहते हुए कि वे उनके स्थायी नेता थे।

अधिकार देने वाले संविधान की प्रतियां जलाई

एक न्यूज़ पेपर में पढ़ा था कि 1957 में पेरियार और उनके 3000 समर्थकों को गिरफ्तार किया गया था क्योंकि, उन्होंने संविधान की प्रतियां ये कहते हुए जलाई थी कि यह आज भी जातिवाद को ज़िंदा रखे हुए है। हालांकि इसी संविधान के अनुछेद 15 सबको समान अधिकार देता था, इसी के तहत शुद्र समाज के लोगों को पहले 1950 में 22.5% और फिर 1990 में 27% आरक्षण मिला, जो तमिलनाडु में 69% है।

पेरियार रामास्वामी, फोटो साभार- ट्विटर

बाद में 1990 इसी संविधान ने जाति प्रथा और छुआ छुत को जुर्म बनाया। इसी संविधान के तहत दलितों को मताधिकार भी मिला जिसे वे अपने नेताओं को अपनी आवाज़ बनाकर संसद भेज सकें, जिससे आगे उनका ही फायदा हुआ और ये सब संविधान की वजह से हुआ। तो यहां पर पेरियार ना सिर्फ गलत थे, लेकिन उन्होंने संविधान विरोधी काम भी किया था।

रामायण और भगवत गीता को गलत बताया

1924 में पेरियार ने कहा था कि रामायण और भागवत गीता दोनों जातिवाद को बढ़ावा देती है, हालांकि यह सच नहीं था क्योंकि, रामायण में राम एक शूद्र औरत सबरी के जूठे बेर खाकर उसे सम्मान देते हैं और भगवत गीता का चौथा अध्याय श्लोक 13 वर्णव्यस्था की सही सोच बताता है, जिसमें साफ लिखा है कि इंसान का वर्ण उसकी काबिलियत से तय होगा।

साथ ही 18 अध्याय के श्लोक 42-45 बताते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र कौन है और उसका व्यवहार कैसा होता है। मतलब जन्म नहीं कर्म की यह बात की गाई है काबिलियत की गई है।

जस्टिस काटजू ने एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने यह दावा किया था कि पेरियार ने कहा था,

अगर सांप दिखे और ब्राह्मण दिखे तो पहले ब्राह्मण को मारो

हालांकि पेरियार के समर्थक इसे सच नहीं मानते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि अगर यह झूठ है, तो ठीक है लेकिन अगर यह सच है तो ये भी नफरत और साम्प्रदायिकता की सस्ती सियासत है, जिसका विरोध भारत के हर व्यक्ति को करना चाहिए। क्योंकि ये भी एक कानूनी अपराध है।

मूर्तियां तोड़ना सांप्रदायिकता नहीं?

एक तमिल वेबसाइट पर एक लेख पढ़ा था जिसमें ये भी लिखा था कि 23 जनवरी 1971 में जस्टिस पार्टी ने एक बड़ी रैली का तमिलनाडू के सालेम में आयोजन किया था, जिसमें वहां के नेताओ ने कई भगवान की मूर्तियां तोड़ी और यह पूरे तमिलनाडू में हुआ था।

एक तस्वीर मेरे पास भी है, जिसमें पेरियार गणेश भगवान की मूर्तियां तोड़ते हुए दिख रहे हैं, जो कि बहुत दुख की बात है। क्या यह साम्प्रदायिकता नहीं है।

अंत में मैं यही कहूंगा कि कुरीतियो का विरोध करते हुए धर्म का विरोध गलत है और देश में फैली हुई बुराई का विरोध करते हुए देश का विरोध गलत है। मैं पेरियार अन्ना के काम का लोहा मानूंगा पर उनकी सोच का हमेशा विरोधी रहूंगा।

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