Site icon Youth Ki Awaaz

“मैं नागकिरता कानून 2019 को मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं मानता”

चलो बात शुरू करते हैं NRC विवाद से। NRC कोई नया मसौदा नहीं है, बल्कि 1950-60 के दशक का ही संशोधित प्रारूप है। यहां दो बातों पर गौर कीजिए। NRC भारत में बसे शरणार्थी, जो

मुझे दुख इस बात का है कि मेरे भोले-भाले दोस्तों और करीबियों को कुछ बुद्धिजीवी वर्ग भड़का रहे हैं और उससे भी बड़ा मज़ाक यह है कि हम जैसे पढ़े-लिखे नौजवान उस सियासी आग में खुद को झोंकते चले जा रहे हैं।

मेरा मानना है कि पहले NRC और नागरिकता कानून में भलीभांति भेद कीजिए।

हमें गुमराह किया जा रहा है

31 अगस्त को जारी की गई NRC की अंतिम सूची में 19 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं है। उन्हें सरकार ने 120 दिनों के अंदर अपील करने का अधिकार दिया हुआ है। यानी कि 31 दिसम्बर तक।

इन 19 लाख लोगों को सिर्फ इस आधार पर अवैध धोषित नहीं कर दिया जाएगा कि इनके पास दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, बल्कि इनके लिए विदेशी ट्रिब्यूनल बनाने की पेशकश है। यानी सरकार संवैधानिक दर्शन का पालन करेगी और जहां तक बात अधिकार की है उन्हें दिसम्बर तक वे सब मौलिक अधिकार मिले रहेंगे ।

अब बात करता हूं नागरिकता कानून 2019 की, जिसकी मूल संरचना 1955 में निहित है। कुछ बातें हैं जो मुझे लगता है कि आप लोंगों को इन सब बातों से गुमराह किया जा रहा है।

संविधान की धारा 14 मूल अधिकार सिर्फ भारत के नागरिकों के लिए बना है ना कि बाहर के लोगों के लिए। इस धारा पर सिर्फ और सिर्फ हमारा हक है। फिर चाहे हम किसी भी धर्म के हों।

मेरे भाई, भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश का विभाजन ही धर्म के नाम पर हुआ था और भारत को छोड़कर इन तीनों देशों ने अपने देश को इस्लामिक देश घोषित किया हुआ है।

बंटवारे का प्रारूप कैबिनेट मिशन भी इसी प्रस्ताव को लेकर था कि देश का बंटवारा धर्म के आधार पर हो। बांग्लादेश की आज़ादी के कुछ ही वर्षों बाद वहं सैनिक शासन स्थापित हो चुका था और उसे इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया।

इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दुओं के साथ-साथ सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेज़ों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा क्योंकि ये पांचों धर्म इन तीनों देश में अल्पसंख्यक घोषित हो चुके हैं।

अगर यह सिर्फ मुस्लिम विरोधी है तो आपको बता दूं कि इसमें ना श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं को भी शामिल नहीं किया गया है और ना म्यांमार के हिन्दू बाहुल्य इलाके के शरणार्थीयों को शामिल किया गया है। फिर ये सिर्फ मुस्लिम विरोधी कैसे?

शिया मुसलमानों की आबादी में भारत दूसरे नंबर पर

सवाल यह है कि आज कुछ लोग उस देश पर संदेह कैसे कर रहे हैं, जहां विश्व में दूसरी सबसे बड़ी शिया मुसलमानों की आबादी होने के बावजूद भी उसके संविधान ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है ।

मानता हूं कि इस सरकार की कुछ नीति भले ही संदेहास्पद है, लेकिन हर फैसले पर सामंजस्य के बजाय वैमनस्य की भावना रखना एक आदर्शवादी सिद्धान्त के विपरीत एक युक्ति संगत सिद्धान्त को अपनाना होगा।

मुझे पता है अंग्रेजों ने भी गोलियां चलवाई थीं, जिसकी तुलना आप कल की घटना से करोगे, उन्होंने प्रेस पर भी प्रतिबंध लगाया था जिसकी तुलना आप इंटरनेट बंद होने से करोगे, उन्होंने छात्रों को पीटा था, जिसकी तुलना कल की घटना से करोगे।

फिर भी जब-जब बात अपने विचारों की आएगी, तब-तब आप भारत देश की मूलभूत ईकाई की तुलना अंग्रेज़ों के शासनपद्धति से नहीं कर सकते हैं। इसका अधिकार ना तो आपको भारत का संविधान देगा और ना हीं मैं यानी कि एक भारत का नागरिक देगा।

बरगलाने वाले नेताओं से दूर बचें

हमारे देश में सबसे बड़ी कमज़ोरी यह है कि हमारे ही देश के कुछ नेता जिसे आप हीरो बना देते हो, वे हर वक्त आपको बरगलाता है। ओवैसी साहब को ही ले लीजिए, उनके हर भाषण में एक ही बात झलकती है ‘भारत का मुसलमान’ , ‘भारत का मुसलमान’।

आखिर हर वक्त आप उन्हें यह क्यों एहसास दिलाते हैं कि वे भारत के मुसलमान हैं। आप यह क्यों नहीं बोलते की तुम भारत के नागरिक हो।

खैर, विवाद का फसाद केवल यह बिल नहीं है, बल्कि कुछ डूबते सियासत को तिनके का सहारा मिल गया है और वे उसी के सहारे अपनी नाव खेमने में लगे हैं। उम्मीद है आप समझ जाओगे और 1947 की घटना से इस घटना की तुलना नहीं करोगे।

Exit mobile version