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“Youth Ki Awaaz सम्मिट में मैंने महिलाओं से जुड़े भ्रमों को टूटते देखा”

मैंने अपने जीवन मे बहुत से कार्यक्रम देखे हैं। कुछ कार्यक्रम मैंने स्वयं संयोजन में किये हैं तो अधिकांश कार्यक्रम में मैंने भाग लिया है। बहुत से कार्यक्रम ऐसे रहे हैं, जहां महिलाओं की प्रतिभागिता अत्यंत सूक्ष्म रही हैं। यदि है भी तो उनको सिर्फ ऐसी जगहों पर स्थान दिया गया है, जहां सिर्फ उनकी उपस्थिति दर्शक मात्र ही है।

Youth Ki Awaaz सम्मिट पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व

Youth Ki Awaaz Summit में महिलाओं की हिस्सेदारी

अभी हाल ही में डॉ भीमराव अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर जनपथ नई दिल्ली में “Youth Ki Awaaz Summit” कार्यक्रम सकुशल सम्पन्न हो गया। उस कार्यक्रम की बहुत विशेषताएं भी रहीं, जो कि देश समाज के लिए भी एक सीख है। यह कार्यक्रम समाज को यह प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त है कि महिलाएं अब दोयम दर्जे की नहीं रहीं। जो लोग उनको दोयम दर्जे का मानते हैं, यह उनकी मानसिक विकृति का ही परिणाम है ।

Youth Ki Awaaz सम्मिट पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व

सम्मिट में महिलाओं की सहभागिता स्वयं व समाज के लिए एक सीख है। सम्मिट के संयोजन से लेकर मंच तक सफल बनायें जाने की मुख्य भूमिका में महिलाओं का स्थान अग्रणी था।

महिलाओं को दोयम दर्जे का मानने का जो कारण मुझे समझ आता है वह है पितृ सत्तात्मक सोच। महिला सशक्तिकरण तब तक सम्भव नहीं है, जब तक समाज पितृ सत्तात्मक सोच से बाहर नहीं निकलता।

Youth Ki Awaaz सम्मिट को देखकर महिलाओं के प्रति धर्म टूटे

आज भी लोगों मे धारणा है कि महिला किसी भी कार्यक्रम को बेहतर प्रबंधन नही दें सकती, जबकि Youth Ki Awaaz सम्मिट को देखकर यह भ्रम तोड़ा जा सकता है कि महिलाएं कुशल प्रबंधक, कुशल नेतृत्वकर्ता, कुशल सलाहकार नहीं हो सकती।

मेरा मानना है कि समस्त युवाओं को ऐसे कार्यक्रमों में अवश्य जाना चाहिए। जिससे वे समाज के लोगों के बीच मे आकर उन मिथ्यात्मक रिवाज़ों को तोड़ दें, जो वर्षों से सिर्फ महिला शोषण की ओर ही गतिमान है।

देश व समाज मे व्याप्त भ्रमों को सिर्फ युवाओं के द्वारा ही तोड़ा जा सकता है। युवाओं को इन क्षेत्रों में आकर नई रीति की नींव रखनी चाहिए । कार्यक्रम में अपना सहयोग दें रही महिलाओ का उत्साह हमारे लिए भी सीख है।

Youth Ki Awaaz सम्मिट पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व

आप अपने कर्मपथ पर यूं ही अग्रसर रहें। आपकी आत्मनिर्भरता स्वर्णिम भारत के निर्माण में सहायक होगी, यह कहने में कोई दो राय नहीं है।

महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना स्वर्णिम भारत की कल्पना असम्भव है। स्वर्णिम भारत की परिभाषा तभी गढ़ी जाएगी, जब उसमें महिलाओं की हिस्सेदारी भी उतनी ही होगी जितनी पुरुष की है।

पुरुष की हिस्सेदारी को महत्वपूर्ण मानना सिर्फ मानसिक भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आइये हम सब मिलकर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दें।

 

 

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