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स्वच्छता पर वंचित समुदायों के साथ ऋषिकेश में आयोजित की गई तीन दिवसीय कार्यशाला

माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर बात करती महिलाएं

माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर बात करती महिलाएं

ग्लोबल इंटरफेथ वाश अलायंस और WSSCC (Water Supply and Sanitation Collaborative Council) की साझेदारी में ऋषिकेश के परमार्थ भवन में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में देश के विभिन्न इलाकों से आए अलग-अलग समुदाय के लोगों ने स्वच्छता पर चर्चा करते हुए तमाम परेशानियों को संबंधित अधिकारियों के समक्ष पेश रखा।

स्वच्छता के संदर्भ में आयोजित कार्यशाला के दौरान माइग्रेंट्स एंड रिफ्यूजी ग्रुप, झोपड़ी में रहने वाले शहरी गरीब, फारमर्स ग्रुप, एल्डर्ली ग्रुप, ओजस मेडिकल इंस्टीट्यूट, वूमन ग्रूप और ट्रांस एंड LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों के साथ-साथ कई वंचित समुदायों ने अपने-अपने समूह के सदस्यों के साथ जल प्रबंधन और स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए जा रहे शौचालयों की उपलब्धता पर खुलकर अपनी बात रखी।

गौरतलब है कि आंकड़ों के मुताबिक अब भी राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की 44 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है।

दलित समुदाय के लोग।

स्वच्छता पर आयोजित कार्यशाला के दौरान दलित समुदाय से अरुण कुमार ने कहा, “मुझे लगता है सरकार द्वारा बनवाए जा रहे शौचालयों की राशि मुखिया और जल-सहिया के बैंक अकाउंट में ना भेजकर सीधे ग्रामीणों को दिया जाना चाहिए, जिससे भ्रष्टाचार बंद होगा।”

उन्होंने आगे कहा कि हम दलित समुदाय से आते हैं और समाज हमारे साथ सौतेला व्यवहार करता है। लोगों को लगता है कि हम दलित हैं और इस समाज में हमारा कोई वजूद नहीं है। ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलाइंस और WSSCC की साझेदारी में आयोजित इस कार्यशाला के ज़रिये आशा है समाज में हमारे साथ भेदभाव अब ना हो।”

वहीं, विकलांग समुदाय से मार्था हांसदा कहते हैं,

जो भी योजनाएं बनती हैं, उनमें विकलांग लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है। अब सरकार द्वारा बनवाए जा रहे शौचालयों की ही बात कर लीजिए, जिनमें ना तो व्हील चेहर की कोई व्यवस्था होती है और ना ही बैठकर शौच करने के लिए कमोड। कल हमने इस पर चर्चाएं की हैं। आशा है तस्वीर बदलेगी।

विकलांग समुदाय के लोग।

वह आगे कहते हैं कि सामान्य स्थितियों को छोड़ भी दें तो खासकर माहवारी के दौरान विकलांग महिलाओं को अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सरकार को ना सिर्फ विकलांग लोगों को ध्यान में रखकर शौचालय निर्माण करने की ज़रूरत है, बल्कि उनके लिए पीरियड फ्रेंडली टॉयलेट भी बनाने की आवश्यकता है।

शहरी गरीब और बेघर समुदाय के तुषार घोरके तमाम परेशानियों का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि हम नाइट शेल्टर में रहते हैं, जहां टॉयलेट तो है मगर कोई वहां थूक देता है तो कोई गंदगी फेंक देता है। साफ-सफाई को लेकर कोई प्रबंधन नहीं है। साथ ही साथ हमें यह भी बताया गया कि हम जल संरक्षण कैसे करेंगे। यदि सरकार द्वारा स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए हमें उचित सुविधाएं प्रदान की जाएंगी तो वाकई में लोग भी हमारे साथ भेदभाव नहीं करेंगे।

शहरी गरीब समुदाय के लोग।

इसी समुदाय की स्मिता कामले कहती हैं, “हमलोग जब से परमार्थ निकेतन आए हैं, तब से कुछ नया सीख ही रहे हैं। हम जिस नाइट शेल्टर में रहते हैं, वहां की स्थिति दयनीय है। स्वच्छता के संदर्भ में कोई खास पहल नहीं की जाती है। वहीं, माहवारी की बात करें तो ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के पास सैनिटरी पैड तक खरीदने के लिए पैसे नहीं होते हैं। सरकारी शौचालय रात में बंद रहते हैं।”

सेक्स वर्कर कम्युनिटी की सुल्ताना कहती हैं,  “मैं पेशे से एक सेक्स वर्कर हूं और इसी वजह से समाज हमारे साथ सौतेला व्यवहार करता है। माहवारी या स्वच्छता पर जब हम बात करते हैं तो लोगों को लगता है ये तो सेक्स वर्कर है, इसकी वजूद ही क्या है। मैं घर-घर जाकर लोगों को जागरुक करती हूं मगर मेरे ही घर में शौचालय नहीं है। 40 दफा नगरपालिका के चक्कर लगाने के बाद हमें शौचालय के लिए 4000 रुपये मिलता है। जो हमारी सेक्स वर्कर्स की कम्युनिटी है, उनमें तो बिल्कुल भी जागरूकता नहीं है। बहुत सी महिलाओं के तो मकान तक नहीं है, शौचालय तो दूर की बात है।”

सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी।

वो आगे बताती हैं, “नगर निगम में जिन्हें शौचालय बनवाने का काम दिया जाता है, वे ठीक से सर्वे भी नहीं करते हैं। उन्हें जहां तक आना चाहिए, वहां तक आते ही नहीं है। मैं बीस सालों से सेक्स वर्कर हूं और आज अगर एक सिलाई मशीन लेकर काम करने बैठ जाऊं, तो क्या लोग मुझसे कपड़े सिलवाने आएंगे?

सरकार को हमारे पूनर्वास करने की ज़रूरत है ताकि हमारा जीवन बेहतर है। हमारे साथ कई दफा हिंसात्मक घटनाएं भी होती हैं और तब हम जब पुलिस के पास जाते हैं, तो वे शिकायत दर्ज़ ही नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि तुम तो सेक्स वर्कर हो, तुम्हारी क्या शिकायत दर्ज़ करें?”

ट्रांस समुदाय।

ट्रांस समुदाय से नीतु का कहना है कि शौचालय की बात तो बाद में आती है, सबसे पहले तो हमारी कोई पहचान ही नहीं है। हमारे पास कोई डॉक्यूमेन्ट्स ही नहीं हैं।

जब हमारे अपने मकान नहीं हैं फिर हम शौचालय की बात कैसे कर सकते हैं? ना तो सरकार हमारी मदद कर रही है और ना ही हमें मकान दिया जा रहा है।

आदिवासी समुदाय।

इन सबके बीच आदिवासी समुदाय की कल्पना कहती हैं, “टैंक जो बनाए गए हैं उनके ढक्कन नहीं है, टॉयलेट जो बनाए गए हैं उनके दरवाज़े नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में आलम है कि जिन लोगों ने कभी टॉयलेट देखा नहीं था, वे इस बारे में क्या बात करेंगे? सबसे बड़ी समस्या यह है कि गाँववाले सरकार द्वारा बनवाए जा रहे शौचालयों का प्रयोग ही नहीं कर रहे हैं।”

तीन दिवसीय कार्यशाला के दौरान मेनस्ट्रुअल लैब के ज़रिये देश के अलग-अलग इलाकों से आईं महिलाओं को माहवारी स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी गई। इस दौरान ना सिर्फ माहवारी से जुड़े टैबूज़ पर बात की गई, बल्कि सैनिटरी पैड के विकल्प के तौर पर बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड के साथ-साथ मेन्सट्रुअल कप और टैंपून की भी जानकारी दी गई।

इस दौरान अलग-अलग वंचित समुदायों से आए लोगों ने सरकार द्वारा बनवाए जा रहे शौचालयों की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े किए। इसके अलावा वंचित समुदायों के लोगों के साथ भेदभाव की बातों का भी ज़िक्र किया।

सेक्स वर्कर्स कम्युनिटी के लोगों का कहना है कि उनके इलाकों में सफाईकर्मियों द्वारा भी काफी भेदभाव किया जाता है। सेक्सवर्कर्स के कचड़े को उठाने सफाईकर्मी इसलिए नहीं आते हैं, क्योंकि कचड़े में कॉन्डम्स पाए जाते हैं।

पेयजल और स्‍वच्‍छता मंत्रालय की ओर से आए अनिल शर्मा ने स्वच्छता संबंधित योजनाओं में अनियमित्ताओं पर बात करते हुए कहा, “हम तकनीकी तौर पर राज्य सरकारों को मदद करने के साथ-साथ सिर्फ फाइनेंस करते हैं। योजनाओं को सही तरीके से लागू करने का काम राज्य सरकारों का है। जहां तक भ्रष्टाचार की बातें हैं, तो यह बेहद ज़रूरी है कि लोग इस बारे में शिकायत दर्ज़ कराएं।”

WSSCC के टेक्निकल एक्सपर्ट एनरिको ने वंचित समुदायों की परेशानियों पर बात करते हुए कहा,

देश के अलग-अलग इलाकों से आए इन समुदायों की जो भी दिक्कतें हैं, ज़ाहिर तौर पर उनका समाधान निकाला जाएगा क्योंकि सबसे बड़ी बात यह है कि इस तीन दिवसीय कार्यशाला में ये लोग डिसीज़न मेकिंग का हिस्सा हैं। हमें विश्वास है कि सरकार इनकी समस्याओं का हल ज़रूर निकालेगी।

वहीं, WSSCC की वॉश ऑफिसर त्रुप्ति ने स्वच्छता पर आयोजित कार्यशाला के बारे में बात करते हुए कहा, “यह कार्यशाला ना सिर्फ देश के अलग-अलग इलाकों से आए वंचित समुदायों के लिए शानदार रहा, बल्कि फैसिलिटेटर्स के साथ-साथ इसमें सहभागिता देने वाले तमाम लोगों के लिए भी बेहद खास रहा।  इस कार्यशाला का उद्देश्य यह था कि SDG-6 के संदर्भ में देशभर से आए 14 समूह के सदस्यों से उनकी समस्याएं सुनकर उन्हें एड्रेस किया जाए, जिसमें हम सफल हुए।”

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के असिस्टेंट रजिस्ट्रार (लॉ) इंद्रजीत कुमार ने वंचित समुदायों की परेशानियों पर अपनी बात रखते हुए कहा,

ज़ाहिर तौर पर स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए जा रहे शौचालयों में परेशानियां हैं, जिन्हें दुरुस्त करने की ज़रूरत है। आज लोग खुलकर अपनी बात रख रहे हैं और यही है परिवर्तन का आगाज़।

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