Site icon Youth Ki Awaaz

इंटरनेट पर दलित होने के नाते अपने विचार रखती हूं तो गालियां पड़ती हैं- सुमन देवतिया

आदिवासी अधिकारों  के कार्यकर्ता अभय खाखा आदिवासी इलाकों में इंटरनेट की उपलब्धता पर सवाल किये जाने पर बताते हैं कि देश का एक राज्य पिछले तीन महीनों से इंटरनेट की पहुंच से दूर है। साथ ही देश की राजधानी दिल्ली के कई क्षेत्रों में  पिछले दो दिनों से इंटरनेट की सेवाएं बाधित की जा रही हैं।

इंटरनेट पर सुरक्षा और सार्वजनिक उपलब्धता

अभय खाखा ने यह बात दिल्ली के इंटरनेशनल अम्बेडकर सेन्टर में आयोजित YOUTH KI AWAAZ SUMMIT के दूसरे दिन के पैनल चर्चा में कही। डैमोक्रेसी अड्डा नाम के इस पैनल में अभय खाखा के साथ दलित एवं ट्रांस राईट एक्टिविस्ट ग्रेस बानू और खबर लहरिया की ब्यूरो हेड मीरा देवी तथा संचालिका के तौर पर शिखा मंडी मौजूद रहीं।

इंटरनेट पर सुरक्षा और सार्वजनिक उपलब्धता पर बात करते हुए अभय खाखा ने बताया कि वंचित समाज के लिए इंटरनेट आज भी गहरी अंधेरी जगह है और जब बात महिलाओं की हो तो यह राह और मुश्किल हो जाती है। महिलाओं का डाटा समाज के दंगाई लोगों द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए यह आज भी असुरक्षित जगह है।

आदिवासी इलाकों में लोग ब्लूटूथ के माध्यम से संचार करते हैं, जो बुल्टू रेडियो के नाम से प्रचलित है। इंटरनेट प्रोडक्शन का माध्यम है और आदिवासी इलाके के लोग सिर्फ इसके कंज़्यूमर हैं, जो अगर प्रोडूसर भी हैं, तो उनकी संख्या बहुत ही कम है। अगर इंटरनेट पर लोकतंत्र लाना है, तो आदिवासी समाज को प्रोड्सयूर बनना पड़ेगा।

गाँव की महिलाओं को इंटरनेट की भूख से ज़्यादा रोटी की भूख है

खबर लहरिया की रिपोर्टर मीरा देवी ने पिछड़े समाज के द्वारा इंटरनेट के उपयोग पर चर्चा की। करीब 5 साल पहले उन्होंने यूट्यूब पर खबर लहरिया चैनल की स्थापना की, जो स्थानीय मुद्दों को देशभर के सामने प्रमुखता से उठाता है। वे मानती हैं कि गाँव की महिलाओं को इंटरनेट की भूख से ज़्यादा रोटी की भूख है।

मीरा अपने यूट्यूब चैनल के ज़रिए, आसपास को मुद्दे को उठाती हैं और विशेषज्ञों के पैनल के साथ विस्तार से इस विषय पर डिस्कशन भी करतीं हैं। इंटरनेट पर उनके द्वारा की गई रिपोर्टिंग का अंदाज़ा उनकी आपबीती द्वारा समझा जा सकता है। वे कहतीं हैं,

हमारे समूह में कुछ लोगों को एक ही आदमी के अलग-अलग नंबरों से कॉल आए। यह कॉल करने वाले अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। जब हमने पुलिस में शिकायत की, तो उस अनजान शख्स ने पुलिस के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया। उसके बाद हम पुलिस अधीक्षक के पास भी गए। कई महीनों तक भागदौड़ चलती रही लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।

उन्होंने आगे बताया,

बाद में हमने इस आपबीती की अपनी वेबसाइट खबर लहरिया पर रखा। हमारी यह  रिपोर्टिंग वायरल हो गई। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मामले का संज्ञान लिया और 24 घंटे के भीतर आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया और यह लड़का 14-15 साल का था जो किसी फोन बूथ पर काम करता था।

इंटरनेट की सुविधा के बाद इनके द्वारा की गई रिपोर्टिंग का असर मीरा देवी की आपबीती से साफ समझा जा सकता है। गाँव कस्बों में रहने वाले जागरूक लोग भी अपनी कहानी को इंटरनेट के ज़रिए बड़े पैमाने पर साझा कर सकते हैं।

इंटरनेट पर पितृसत्ता मानसिकता

अंबेडकर इंटरनेशनल हॉल में चल रहे पैनल डिस्कशन में अगली स्पीकर थी राजस्थान की महिला दलित एक्टिविस्ट सुमन देवतिया, अपने आसपास के इलाकों में हो रहे दलित उत्पीड़न पर वे सालों से काम करती आ रहीं है।

बातचीत के दौरान वे कहती हैं,

एक दलित महिला होने के नाते अपनी बात रखने  पर लोग आज भी उसी नज़रिए से देखते हैं, जो सालों से बनी मानसिकता की उपज से पैदा हुई है।

वे इस बात से भी इनकार नहीं करती हैं कि दलित महिलाओं में आज भी इंटरनेट को लेकर उतनी जागरूकता नहीं है। बहुत सारी महिलाएं हैं जिन्हें आईटी एक्ट की जानकारी नहीं है। उन्हें इंटरनेट से जुड़ी प्राइवेसी के बारे में जानकारी नहीं रहती है। ऐसा कई बार देखने को मिला है कि उनके निजी जानकारियों का दुरुपयोग किया जाता है।

डिस्कशन पैनल का संचालन कर रही संथाली रेडियो जॉकी शिखा मंडी के द्वारा इंटरनेट पर सुरक्षा पर पूछे गए एक सवाल पर सुमन ने बताया,

यदि मैं एक दलित कार्यकर्ता के रूप में बात करती हूं, तो मेरे समुदाय को गालियां दी जाती हैं। ऐसे मौकों पर मैं खुद को बहुत ही असुरक्षित महसूस करती हूं।

वहीं चर्चा में शामिल दलित एवं ट्रांस राईट एक्टिविस्ट ग्रेस बानू ने दलित और ट्रांस समुदाय की इंटरनेट पर पहुंच के बारे में बताते हुए कहा कि इंटरनेट सबके लिए है लेकिन इंटरनेट पर पितृसत्ता, जातीयता, लैंगिक भेदभाव, ट्रांस्फोबिया, इस्लामोफोबिया, होमोफोबिया एवं हर तरह के फोबिया मौजूद हैं और इसकी उपलब्धता सिर्फ समाज के विशेष एवं मुख्यधारा के समुदायों को ही मिलती है।

पैनल चर्चा का विषय समाज में इंटरनेट का दलित और वंचित समुदाय में विस्तार, सुरक्षा और इसके सार्वजानिक सुविधा को लेकर था।

Exit mobile version