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#PeriodPaath: दिल्ली के अध्यापक पीरियड्स/माहवारी से क्यूँ घबराते है?

सेवा में,

 

रेखा मुदगल

SMC अध्यक्ष और प्रधान अध्यापक

राजकिए सहशिक्षा माध्यमिक विद्यालया (नेब सराय)

IGNOU के पास, नेब सराय

दक्षिण क्षेत्र, दिल्ली, India

 

31st January 2020

 

विषय: दिल्ली के अध्यापक पीरियड्स/माहवारी से क्यूँ घबराते है?

 

आदरणीय महोदया,

मेरा नाम नीलू यादव है| मैं राजकिए सहशिक्षा माध्यमिक विद्यालया (नेब सराय) की 6th कक्षा में पढ़ती हूँ| आप मेरे स्कूल के SMC के अध्यक्ष है इसलिए मैंने आपको यह पत्र संबोधित किया है| मेरी आशा है की पूरा SMC, जिसमे लोकल MLA किरन छाबरा भी शामिल है, यह पत्र पढ़ेगे|

 

मैं यह पत्र आपसे कुछ पूछने के लिए लिख रही हूँ| जब हुमारे स्कूल में सेनिटरी पैड दिए जाते है, तो उन्हे अध्यापक छिपाकर क्यूँ देते है? और अध्यापक कहते है की इससे छिपाकर लेकर जाना; इससे बस्ते से बाहर मत निकालना| ऐसा क्यूँ कहाँ जाता है? इससे लड़को से क्यूँ छिपाते है? इस विषय पर action लेना अनिवार्ये है क्यूंकी छिपाने से हम लड़कियों को कोई लाभ नही है| उपर से छिपाने से हम लड़कियों को और कष्ट पहुचता है|

 

मैं इस पत्र में बताने की कोशिश करूँगी की हमे इस छुपाने से और कष्ट क्यूँ होता है, और आप इस दुविधा को कैसे आसानी से कम कर सकते है|

 

सबसे पहले मैं यह बताऊंगी की अध्यापाको द्वारा sanitary pad का छुपाना क्यूँ हानिकारक है| हम अगर पीरियड्स और sanitary pad को छिपाएगे तो इससे लोगों, ख़ासकर लड़को, की मानसिकता पर बुरा असर पड़ेगा| क्यूँ? क्यूंकी लोग यह सोचेगे की पीरियड्स/माहवारी कोई छुपाने वाली बात, कोई बुरी चीज़ है, जिससे लड़कियों को शरमाना चाहिए| उपर से अध्यापक स्कूल के प्रमुख होते है| अगर वोही माहवारी को ऐसा रूप देगे तो स्कूल के लड़के ज़रूर ही मज़ाक उड़ाएगे| और ऐसा ही होता है| किसी भी लड़की से पूछ लो| जब अध्यापक कहते है, “लड़कियों, लाइन बनाओ और bag लेकर नीचे चलो,” तो कक्षा के लड़के हस्सने लगते है, क्यूंकी उनको पता चल जाता है की pads मिलने वाले है| उन्हे पता ही होता है तो हम छुपाते क्यूँ है? एक प्राकृतिक क्रिया पर इतना हसना? किसी भी महिला को अच्छा नही लगेगा| वैसे ही हमे कहा जाते है की पीरियड्स गंदी चीज़ है (जब की वो है नही) और उपर से हमारी ही उमर के लड़के हमपर हस्ते है| मेरी एक दोस्त ने बताया की उसकी क्लास के लड़के pad को छोले भतूरे कहते है, और एक दिन महिला टीचर को कहाँ, “मेडम, क्या आप छोले भतूरे खाओगे?” और लड़के हस ने लगे| और यह प्राब्लम घर तक पहुच जाती है| मान लो अगर एक दिन मैं और मेरा भाई घर पर अकेले है, और मेरे पीरियड्स शुरू हो जाए और pad ना हो| तो क्या वो मेरी मदद कर पाएगा? नही! उपर से वो हसेगा या चौक जाएगा क्यूंकी उसने अपने स्कूल में यही सीखा है|

 

तो इस दुविधा का क्या हल है? मैं मानती हूँ की अध्यापक शायद खुध पीरियड्स से असुविधाजनक महसूस करते है|

  1. तो हल है की SMC को अध्यापाको के लिए पीरियड्स के उपर वर्कशॉप का आयोजन करना चाहिए| इस वर्कशॉप को लगातार कुछ महीनो तक देना पड़ेगा क्यूंकी एक बार में सालों की सोच नही बदलेगी.
  2. वर्कशॉप का विषय होना चाहिए – पीरियड्स एक प्राकृतिक क्रिया है, यह गंदी बात नही है, और इसका खून गंदा नही होता| वर्कशॉप में पीरियड्स से लेती देती अफवा के बारे में भी समझाना चाहिए – जैसे मंदिर नही जा सकते, आचार नही खा सकते| अध्यापक को संसाधन मिलने चाहिए ताकि कक्षा में वह इस विषय पर बात कर सके, दोनो लड़कियों और लड़को से|
  3. उपर से, हमे pads देने वाली क्रिया को इतना छिपाना नही चाहिए| टीचर्स और लड़को को कुछ महीनो तक वर्कशॉप्स देने के बाद, pad देने की क्रिया क्लास में ही उनके सामने करनी चाहिए| और अगर कोई लड़का मज़ाक उड़ाए, तो अध्यापक को Science के द्वारा उनको समझना चाहिए|

टीचर्स की सोच बदलेगी तो बच्चो की भी सोच बदलेगी| मेरी यह उमीद है की मेरे स्कूल की SMC इस विषय पर ज़रूर कदम उठाएगे क्यूंकी Pad कोई बॉम्ब नही है जिससे छिपाया जाता है|

धन्यवाद!

आपकी student,

नीलू यादव
D/O जंग बहादुर
कक्षा 6-फ,
राजकिए सहशिक्षा माध्यमिक विद्यालया (नेब सराय)

(नीलू राजकिए सहशिक्षा माध्यमिक विद्यालया (नेब सराय) की विद्यार्थी है और स्कूल के बाद NGO सूपर स्कूल इंडिया आती है इंग्लीश सीखने के लिए)

 

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