Site icon Youth Ki Awaaz

पंजाब में नहीं हुए पिछले 36 साल से छात्र चुनाव, छात्रों में गुस्सा

जेपी अंदोलन की तरह देश में एक बार फिर छात्र राजनीति चरम पर है. जेएनयू, जादवपुर और मुंबई विश्वविद्यालय समेत  देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी का विरोध हो रहा है. पंजाब भी इससे अछूता नहीं है, यहाँ पर मोदी  की राजनीति को सिख-हिंदू खारिज करते आए है. इसके अलावा पंजाब के विश्वविद्यालय और कॉलजों में मोदी सरकार  की नीतिओं का जमकर विरोध हो रहा है.

पंजाब के मुख्यमंत्री  कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी जेएनयू और जामिया में हुई हिंसा की निंदा की. लेकिन कैप्टन  के ग्रह नगर पटियाला में पंजाबी विश्वविद्यालय में छात्र चुनाव नहीं हुए. विश्वविद्यालय के छात्रों की एक शिकायत है कि उनके विश्वविद्यालय में पिछले 36 साल से चुनाव नहीँ हुए, पंजाब सरकार ने भी अभी तक वहाँ चुनाव नहीँ करवाये.
https://www.facebook.com/awazpunjabd/videos/1079079282430287/

दरअसल, 1984 में आतंकवाद के चलते पंजाब में छात्र चुनावों पर रोक लगा दी गई थी.  शिक्षण संस्थानों को खालिस्तानी उग्रवादियों का अड्डा माना जाने लगा था. लेकिन पंजाब में शाँति वापस आ जाने के बावजूद छात्र चुनाव नहीं हुए. 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब काँग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र में चुनाव करवाने का वादा किया था. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 27 मार्च 2018 को पंजाब विधानसभा में चुनाव करवाने का ऐलान किया, लेकिन फिर भी चुनाव नहीं करवाये गये.  टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, राज्य में तीन विश्वविद्यालयों, गुरू नानक देव विश्वविद्यालय अम़तसर, पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय,भटिंडा और पंजाबी विश्वविद्यालय समेत 48 सरकारी कालेजों में चुनाव नहीं हुए. जबकि पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में 1993 में अप्रत्यक्ष चुनाव बहाल किये गये, जबकि वहाँ 1996 से प्रत्यक्ष चुनाव शुरू हो गये. इस बीच हरियाणा यहाँ 1997 में छात्र चुनाव प्रतिबंधित किये गये थे, वहाँ मनोहर लाल खट्टर की भाजपा सरकार ने चुनाव बहाल करवा दिये, लेकिन पंजाब सरकार ने हरियाणा से कुछ नहीं सीखा.
रशपिंदर, पंजाब रेडिकल स्टूडेंट यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष, कहते है कि  “सरकार का कहना है कि छात्र चुनाव करवाने से माहौल खराब होगा, लेकिन माहौल तो पंचायत के चुनाव के कारण भी खऱाब होता, विधानसभा  चुनाव में भी खराब होता है, उप-चुनाव में भी खऱाब होता है, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता एक-दूसरे के साथ मार-पीट करते है, वो चुनाव क्यों नहीं बंद होते. अगर वे चुनाव हो सकते है तो छात्र चुनाव भी हो सकते है. जेएनयू में डिबेट होता है. उसी तरह यहाँ भी हो सकता है. पंजाब विश्वविद्यालय में अगर आप देखेगे वहॉं  स्टूडेँटस फॉर सुसायिटी   ने वैकल्पिक राजनीति की, जिसके चलते कनुप्रिया वहाँ अध्यक्ष बनी. जब छात्र चुनाव होते है तो छात्रों में एक राजनीतिक चेतना पैदा होती है, छात्रों को मुद्दों की बात करने वाले दलों के बारे में पता चलता है.”
छात्रों को राजनीति नहीं  करनी चाहिये पर वे कहते है  “हमारे माता-पिता, बुद्धिजीवी, राजनेता  और विश्वविद्यालय के उप-कुलपति जो हमें राजनीति न करने की बात कहते है वे खुद ही भगत सिंह की मूर्ति पर फूल की मालाएँ चढ़ाते है.  हमारी अपील है कि इनको भगत सिंह को पढ़ लेना चाहिये, जिन्होंने लिखा था कि छात्रों को राजनीति क्यों करनी चाहिये.  छात्र सामाजिक जिम्मेवारियों में नहीँ फंसे होते, वे सरकार के फैसलों पर बहुत जलदी प्रतिक्रिया करते है. जब सरकार नीतिआँ लागू करती है तो उनको छात्र राजनीति के कारण फैसले लागू करने में दिक्कत आती है. सरकार नई शिक्षा नीति लेकर आ रही है, जिसका छात्र विरोध कर रहे है. इसी कारण सरकार छात्र चुनाव नहीं करवा रही.
रशपिंदर आगे बताते है कि पंजाब में छात्र चुनाव न करवा पाने की पीछे एक कारण ये भी है कि सत्ताधारी काँग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई का पंजाब में उतना प्रभाव नहीं है. छात्र चुनाव के लिए चलाई मुहिंम पर वे बताते है कि  पिछले साल हमने हज़ारों छात्रो के हस्ताक्षर करवा जिला अधिकारियों, पंजाबी विश्वविद्यालय के उप कुलपति और कैप्टन अमरिंदर की पत्नी प्रनीत कौर को मांग पत्र दिया, और उनसे छात्र चुनाव करवाने का अनुरोध किया. आने वाले समय के बारे में वे बताते है कि हम दो-तीन बार चुनाव के लिये मांग पत्र दे चुके है, अब हम पूरे पंजाब से कैप्टन अमरिंदर सिंह के मोती महल का घिराव करेगे.

(पंजाबी विश्वविद्यालय के छात्र काँग्रेस नेता  प्रनीत कौर को छात्र चुनाव के लिये माँग पत्र सौंपते हुए)

   पंजाबी विश्वविद्यालय के छात्र और डीएसयू से जुड़े  अमरजीत  कहते है कि, “हमारा मानना है कि चुनाव आतंकवाद के नाम पर जान बूझकर बंद किया गया, क्योंकि 1962 से लेकर 1982 तक पंजाब स्टूडेंटस यूनियन का दबदबा रहा, जिससे मुख्यधारा के छात्र दल पूरी तरह से बाहर हो चुके थे.  छात्र अपनी  वैकल्पिक राजनीति पूरी तरह से उफान पर ले आ चुके थे. हमे लगता है कि मुख्यधारा के राजनेताओं को लगता है कि छात्र मुख्यधारा पर वैकल्पिक राजनीति को तरजीह देते है. राजनेताओँ को डर रहता है कि छात्र वैकल्पिक राजनीति से हमारी राजनीति को हरा देगे, जिससे उनकी कुर्सिया चली जाएंगी.”

वे आगे बताते है कि  ”छात्र चुनाव खुद में ही  निजीकरण का विरोधी होता है. भले ही कोई भी छात्र संघ का प्रधान बने,  सभी छात्र फीस  बढोतरी का विरोध करते है. नई शिक्षा नीति निजीकरण की वकालत करती है, छात्र उसके खिलाफ खड़े होगे,जिससे सरकार को डर लगता रहता है.”  छात्र संघ चुनाव के फायदे गिनवाते वे कहते है  जब कोई छात्र विरोधी फैसला लिया जायेगा तो छात्र संघ का प्रधान के पीछे पूरे विश्वविद्यालय के छात्र एक जुट हो जाएगे, क्योंकि उसको बहुसंख्यक छात्रों ने चुना होगा.

 अमरजीत के मुताबिक, अगर चुनाव हो तो इससे वाम से लेकर दक्षिण पंथी विभिन्न  छात्र दल आपन घोषणा पत्र रखेगे, पूरे राज्य के छात्रों के पास राजनीतिक सोच-विचार के लिये एक मौका होगा. जिससे कही ना कही छात्रों की राजनीतिक समझ बढ़ेगी.
पंजाब की छात्र राजनीति पर वे कहते है कि जब 1965 से 82 तक राज्य में छात्र चुनाव हुए थे, उसमें से पंजाब स्टूडेंटस यूनियन से कई दिग्गज नेता निकले. उन नेताओं ने मुख्यधारा की राजनीति न करते हुए, किसानों और मजदूरों के संगठन स्थापित कर उनके मुद्दों पर संघर्ष किया. कही न कही सरकार को डर लग रहा है कि अगर उच्च स्तर पर छात्र राजनीति होती है तो वैकल्पिक राजनीति को बढ़ावा मिलेगा.
जब छात्र से पूछा गया कि विश्वविद्यालय में क्या खालिस्तानी हथियार लेकर निकले है, उन्होनें जबाव दिया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है. हाँलाकि विश्वविद्यालय में बाहर से आकर खालिस्तानियों ने डॉ रविंद्र रवी का कत्ल किया था. अमरजीत ने माना कि छात्रों ने अलग-अलग विचारधाराओँ को अपनाया, लेकिन उन्होंने हिंसा नहीं की. वे आगे कहते है कि विश्वविद्यालय में कोई भी छात्र हथियार लेकर नहीँ घूम रहा. ऐसा कुछ नहीं है.
राहुल गर्ग  , ऑल इंडिया स्टूडेंटस फेडरेशन  के सचिव कहते है कि    “छात्रो को कहा जाता है कि राजनीति नहीं करनी चाहिये, लेकिन हमारी फीस बढ़ती है वे भी राजनीति का हिस्सा है. सब कुछ राजनीति का हिस्सा है.राजनीति को हऊया बना दिया गया है जिसको छात्र कर ही नहीं सकते.  लॉ एंड आर्डर पर राहुल बोले कि हमारा कैंपस शाँत है. यहाँ राजनीतिक विचारधारा के नाम पर हिंसा नहीं होती.”

        गुरमीत सिंह, स्टूडेँटस फेडरेशन ऑफ इंडिया ने  छात्र चुनाव  ना करवाने के पीछे परिवारवाद को कारण बताया.  गुरमीत के मुताबि, राजनेताओँ को  डर लगता है कि छात्र चुनाव के कारण आम लोग राजनीति में आ सकते है जिनसे उनके लिए राजनीति में बने रहना मुश्किल हो सकता है.  आज राजनीति में परिवारवाद इतना बढ़ चुका है कि मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री बन रहा है, विधायक का बेटा विधायक बन रहा है. अगर आप देखे तो महाराष्ट्र में 18 मंत्री परिवारवाद की देन है. अगर पंजाब में छात्र चुनाव होते तो आज सुखबीर बादल शायद ही अकाली दल के प्रधान ना होते.

   छात्रों की चुनावों के अलावा एक और माँग  छात्र चुनाव के मॉडल को लेकर है. पंजाब स्टूडेंटस यूनियन के गुरसेवक ने पंजाबी विश्वविद्यालय में छात्र चुनाव के लिये  पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ वाला मॉडल लागू न करने की सरकार की मांग की. उन्होंने कहा कि  अगर चुनाव हो भी तो जेएनयू वाले मॉडल से हो. कोई भी राजनीतिक दल और राजनेता चुनावों में हस्तक्षेप ना करे.

    पंजाबी विश्वविद्यालय के रिसर्च फेलो  बेअंत सिंह कहते है कि  सरकार सरकारी विश्वविद्यालयों को खत्म करनी की तरफ बढ़ रही है. निजीकरण कर रही है.  छात्र चुनाव लोकतात्रिंक प्रक्रिया है, जिसे बहाल किया जाना चाहिये, लेकिन कैप्टन सरकार ने कोई भी माँग पूरी नहीं की. अगर चुनाव हो तो पंजाब को नये नेता मिल सकते है, जिस तरह दिल्ली के जेएनयू से कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे नेता निकले. सरकार कोई कही न कही जे भी खतरा है. इसके अलावा फीस में बढ़ोतरी छात्र चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा, जिससे सरकार की फजीहत हो गई.  शिक्षण संस्थानों में खालिस्तान के मुद्दे पर वे कहते है कि  खालिस्तान का मुद्दा ही पंजाब से गायब है, शिक्षण संस्थानों से मुद्दा ही गायब है.
पंजाब की उच्च शिक्षा मंत्री रजिया सुल्ताना से सरकार का पक्ष लेने के लिये कॉल की गई, लेकिन उनकी तरफ़ से फोन नहीँ उठाया गया.

Exit mobile version