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महिलाओं को तोड़ने की साजिश

बीते दिनों गुजरात में एक युवती के साथ हुए गैंगरेप की घटना को लेकर मैं पूरी तरह से दुःखी हूँ पर इस बात से सबसे ज्यादा दुःख मुझे इस बात का है कि आखिरकार किसी भी महिला के साथ बलात्कार होता है तो अख़बार की हेडलाइंस उस महिला के जाति के अनुसार क्यों बदल जाती है , क्या ऐसे सम्पादकों पर कारवाई नही होनी चाहिए ?

क्या आपको नही लगता कि इन अखबारों की हेडलाइंस हमारी संवैधानिक व्यवस्था को खुली चुनौती दे रही है ? आख़िर में एक महिला और दूसरे महिला के साथ हुए एक ही घटना को अलग-अलग तरीके से पेश करना और उनकी जाति को सूचित करना ! क्या ये भेदभाव नही है ? यदि है तो कारवाई क्यों नही होनी चाहिए , आप सोचिए क्या आपको एक भी ऐसी घटना या ऐसे पत्रकार या सम्पादक का नाम जेहन में है जिसे इस आरोप में कभी सजा दी गई हो ? मुझे मालूम है कि आपका जबाब नही ही होगा ! तो फ़िर हमारी पुलिस व्यवस्था , न्यायिक व्यवस्था और हमारा तथाकथित सिस्टम किसके लिए ? आप मानकर चलिए की ये सब खोखला हो चुका है !

अब आप सोचिए किसी भी अखबार में कभी भी आपने हेडलाइंस के रूप में देखा कि “सवर्ण महिला के साथ गैंगरेप “। मैं जानता हूँ आपने नही देखा होगा मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ , अब आपको दूसरा उदाहरण देता हूँ क्या आपने कभी ये देखा कि “दलित युवती के साथ गैंगरेप ” मुझे पूरा विश्वास है कि आपका उत्तर हाँ होगा और यदि नही है तो मेरा मानिए आप पिछले 4 दिनों का अखबार उठाइये और पढ़िए , फिर आप ना कभी नही कहेंगे ।

मैं इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मेरा मानना है कि इतिहास ने सभी महिलाओं को एक ही चश्मे से देखा है तो फ़िर अख़बार वाले अलग-अलग चश्मे से क्यों देखने की हिम्मत कर लेते हैं ? आपकी और मेरी निष्क्रियता की वजह से और कुछ नही !समाज की कोई भी महिला के साथ कुछ होता है तो उसे विभाजित नही करें क्योंकि आपको स्मरण रहे कि पहले वो महिला फिर वो कुछ है ।

मैं अपने पुरुष साथी,महिला साथी और तमाम महिलाओं से यह निवेदन करता हूँ कि जब भी इस तरीके के खबर पढ़ने को मिले, तुरन्त आप नजदीकी थाने में उस संपादक के ख़िलाफ़ FIR करें और तमाम महिलाएं एकजुट होकर आएँ और महिला समाज को टूटने से बचाएं । धन्यवाद !

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