मस्जिदों की मीनारे ऊँची ज़रूर हो गयी मगर अल्लाह ओ अकबर यानि भगवन सबसे बड़ा है की आवाज़ उस मधुरता के साथ उन कानों तक नहीं पहुँचती जहाँ हमारे अपने लोग निखिल, सुखदेव, ललन, नरेश, पांडे जी, मिश्रा जी और शांति चाची रहते है I
मंदिरों के अंदर टंगी हुई घंटी भी अब बहुत मँहगे दाम देकर लाई जाती है मगर अब इसको बजाने वाला उस श्रध्दा से नहीं बजाता जिस श्रध्दा से इस की आवाज़ पहले न सिर्फ मनुष्य की दिलों को जोड़ती थी बल्कि ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको संमति दे भगवान् की आवाज़ दूर सुदूर गली कूची एवं मोहल्लों में जहाँ सलीम , अकबर, अनवर, जुबैदा बहन और रहीम चाचा रहा करते थे वहां तक हवाओं में मिलकर मधुर संगीत का राग बन जाया करती थी I
ईद और होली तो हमने ललन चाचा और अनवर चाचा को साथ मिलकर मनाते देखा था I मेले चौक चौराहों पर हमने छाप तिलक का संगम देखा था I खेत खलियानों में हमने हरे रंग की हरयाली और भगवा रंग के फूल को मिलकर झूमते देखा था I कब्रिस्तान और समसान तो आज भी हमारे गाँव में एक साथ है I
किसको नज़र लग गयी हमारे हिन्दुस्तान को कहाँ चले गए निखिल, सुखदेव, ललन, नरेश, पांडे जी, मिश्रा जी और शांति चाची I सलीम , अकबर, अनवर, जुबैदा बहन और रहीम चाचा भी तो कुछ पहल नहीं कर रहे है उनको ढूंढने का
मेरी क़लम से…………
रज़ा क़ादिर हुसैन
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