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देश में हर 24 घंटे में 28 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है

एनसीआरबी की रिपोर्ट वे कई सारी बातोंं की तरफ हमारा ध्यान खींचा। मसलन, महिलाओं के खिलाफ देश में बढ़ती हिंसा, किसानों की आत्महत्या और उससे भी भयावह देश में बढ़ते बेरोज़गार युवाओं के खुदकुशी के मामले।

आपको बता दूं कि साल 2018 में हर 24 घंटे में 28 स्टूडेंट्स ने खुदकुशी की है। यानी लगभग 10,000 स्टूडेंट्स जो की 10 साल के आंकड़ों में सबसे ज़्यादा हैं। यहां सवाल यह है कि आखिर इन स्टूडेंट्स की खुदकुशी का कारण क्या है? और इसे कम करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

मुझे लगता है कि भारत में युवाओं के आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर ये बातें ज़िम्मेदार हो सकती हैं।

भारत की बढ़ती जनसंख्या

हम सभी जानते हैं कि जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। किंतु युवा जनसंख्या की दृष्टि से भारत का स्थान प्रथम है। ऐसे में सबसे ज़्यादा रोज़गार की आवश्यकता भी हमारे ही देश में ही है।

बस में चढ़ने की कोशिश करते युवा

जितनी अधिक जनसंख्या होती है, उतनी ही अधिक मात्रा में किसी एक स्थान को लेकर प्रतिस्पर्धा होती है। ऐसे में हर व्यक्ति को उसकी पसंद का रोज़गार मिल पाना असंभव हो जाता है, जिसके चलते स्टूडेंट्स में हीन भावना आ जाती है।

सरकारी नौकरी की चाह

भारत में अधिकतर युवाओं की चाहत सरकारी नौकरी की होती है, क्योंकि वे इसे एक सिक्योरिटी की तरह देखते हैं। उन्हें लगता है कि सरकारी नौकरी पाकर ही वे सफल हो सकते हैं।

रेलवे ग्रुप डी जैसे 10th लेवल के एक्ज़ाम में 35000 सीटों हेतु लगभग 2 करोड़ फार्म्स का भरे जाना इस बात का प्रमाण है। यह दशा लगभग हर सरकारी एक्ज़ाम की है, जहां सीटों से 10 गुना अधिक संख्या में फार्म भरे जाते हैं। ऐसे में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती है और बाकी के लोग पीछे रह जाते हैं।

घरवालों एवं समाज का परीक्षा पास करने को लेकर दबाव

कोई भी स्टूडेंट जब किसी एक्ज़ाम की तैयारी शुरू करता है तो उस पर समाज और घरवालों का दबाव होता है। प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में जब वो पीछे हो जाता है तब उसे समझाने वालों की तुलना में उस पर दबाव बनाने वालों की संख्या अधिक हो जाने से वो मानसिक तनाव में आ जाता है, और हारने तथा स्वयं को कमज़ोर समझ ऐसे आत्मघाती कदम उठाने लगता है।

एक्ज़ाम को ज़िन्दगी मानने का रवैया

अधिकतर ऐसे स्टूडेंट्स भी होते हैं जो जिस exam की तैयारी कर रहे होते हैं, भले ही वे उससे अतिरिक्त कुछ बेहतर करने की क्षमता रखते हों, फिर भी एक exam को पास न कर पाने के कारण हींनभावना का शिकार हो जाते हैं।

2018 के आईएएस अधिकारी बने अक्षत जैन के एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वयं IIT एक्ज़ाम कलीयर ना होने पर मेहनत और potential होने के बाद भी हीन भावना का शिकार होने की बात की थी।

ऐसे कई स्टूडेंट्स जिनके exam को ज़िन्दगी मान लेने वाले रवैये को समझने और समझाने का कोई साथी नहीं होता वो ज़िन्दगी से उम्मीद हारने लगते है।

रूचि से अलग पारिवारिक चाहतें

बड़े होने पर स्टूडेंट्स को उनकी पसंद या रूचि के अनुसार कार्य ना करने देने के कारण रुचिपूर्ण ढंग से वो जिस काम को करने की कोशिश केवल परिवार की उम्मीदों पर खरा उतरने हेतु करते हैं उसमें असफल होने पर भी उनमें कई तरह से मानसिक तनाव बढ़ता जाता है जिसका परिणाम घातक रूप में सामने आता है।

संभावनाओं की अज्ञानता

कुछ चुनिंदा क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों के प्रति अज्ञानता, तथा प्राइवेट क्षेत्रों के रोज़गार को सिक्योरिटी की तरह ना देखना भी बेरोज़गारी का कारण है। और प्राइवेट क्षेत्रों में काम के अनुसार पर्याप्त वेतन ना मिलना भी एक कारण हैं कि स्टूडेंट्स का रुझान इस ओर नहीं जाता है। जिसके चलते यदि उनके पास काम होता भी है तो वो उससे खुश नहीं होते।

पर्याप्त रोज़गार का ना होना

जनसंख्या के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में रोज़गार का ना होना भी बेरोज़गारी का एक कारण है। नौकरी की तलाश में युवाओं को मजबूरन कम दाम में अधिक कार्य करना पड़ता है, जिसके चलते उनका और उनके परिवार का भरण नहीं हो पाता और उनमें मानसिक तनाव उत्पन्न हो जाता है।

इन सभी के अलावा एक अन्य बात भी समस्या का विषय है जिसके बारे में बात करना आवश्यक है और वह है, विज्ञान के इस युग में सुविधाओं के साथ फैली असुविधाएं। जिस उम्र में स्टूडेंट्स का ध्यान केवल अपने लक्ष्य की ओर होना चाहिए, उस उम्र में लक्ष्य के अलावा ऐसी कई बातें होती हैं, जिनसे उनका ध्यान भटक जाता है।

कार्य में निपुण होने की बजाय जल्दी धन कमाने की लालसा, भौतिक दुनिया के प्रति झुकाव, डिजिटल दुनिया गैजेट्स की तरफ बढ़ता झुकाव भी लक्ष्य में बाधा डालता है। नतीजा समय पर लक्ष्य प्राप्त ना हो पाने के रूप में सामने आता है, जिसके बाद जल्दबाज़ी में हार मानने पर स्टूडेंट्स तनाव में आ जाते हैं। अपने समय का सदुपयोग ना कर पाना भी एक कारण है आत्महत्या का।

पढ़ने की उम्र में पढ़ाई के अलावा बाकी सब करते नज़र आ जायेंगे। जैसे पॉलिटिक्स, ड्रग्स इत्यादि में रुझान, मोबाईल फोन्स का बढ़ता क्रेज इन सभी में वे अपने करियर को लगभग दरकिनार कर देते हैं। और जब तक ध्यान देना शुरू करते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। नतीजा आंकड़ों के रूप में सबके सामने आता है।

बेरोज़गारी हटाने हेतु सरकार के कदम और देश में संभावनाएं

ऐसा नहीं है कि अपने देश में संभावनाओं की कमी है, क्योंकि भारत एक विकासशील देश है और विकासशील देशों में अन्य देशों की तुलना में अधिक संभावनाएं होती हैं।

देश में विभिन्न क्षेत्रों में बिज़नेस करने की अपार संभावनाएं हैं, किन्तु उनमें पूंजी की आवश्यकता होती है। ऐसे में सरकार द्वारा चलाये गए प्रधानमंत्री रोज़गार योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना इत्यादि की मुहिम द्वारा देश के युवाओं को स्वयं के रोज़गार हेतु उधार तथा उन्हें शिक्षित कर उन्हें रोज़गार देने के प्रयास किये जा रहे हैं।

इसके अलावा युवाओं को मन की आवाज़ के ज़रिये प्रधानमंत्री के समझाने के प्रयास भी सराहनीय हैं। किन्तु आत्महत्या की दर को कम करने हेतु समाज की मानसिकता में परिवर्तन लाना बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है। हम यदि चाहें तो छोटे से कार्य को भी सफल बना सकते हैं, क्योंकि अपने देश में संभावनाएं अपार मात्रा में व्याप्त हैं। ज़रूरत है तो स्टूडेंट्स को समझाने और एक क्षेत्र में हार जाने के बाद प्रयास को सही दिशा और अपने रूचि के अनुसार कार्यों में लगाने की।

इसके अलावा अपने समय का तथा डिजिटल दुनिया का इस्तेमाल हमें कितना और किस संतुलन से सदुपयोग हेतु किया जाना चाहिए इस बात की भी शिक्षा बहुत आवश्यक हो गई है। क्योंकि जैसे जैसे हमें सुविधाएं मिल रही हैं, कहीं ना कहीं उनका अति दोहन भी हमारे लिए घातक साबित होता जा रहा है।

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