सहम-सी गयी थी मैं उस दिन, जब मैंने सुना कि एक और लड़की का फिर से बलात्कार हुआ है। कुछ करना चाहती थी मैं उसके लिए, मगर भय था कि कल कहीं मैं उसकी जगह ना खड़ी रहूं। उस हादसें के बारे में सोचना ही किसी भी सोच से परे था। समझ नहीं पा रहीं थी मैं कि बलात्कार के बाद ज़िंदा कैसे जला दिया, क्योंकि बलात्कार तो अपने आप में जलने से भी ज़्यादा ख़ौफ़नाक होता हैं।
रूह कांप जाती है बलात्कार की घटना सुनकर
रूह कांप उठती हैं ऐसी कल्पना करने से भी, समझ नहीं पा रहीं थी मैं कि आख़िर हो क्या रहा है? वे कैसे जानवर हैं या फिर जानवर से भी बद्तर हैं?
कुछ सवाल उठे मन में मेरे और एक आवाज़ आई,
क्या उनकी हवस का अगला शिकार कहीं मैं तो नहीं हूं? कहीं उनको जन्म देने वाली माँ के साथ भी उन्होंने यहीं किया? या फिर वे बिना स्त्री के जन्में हैं इसलिए शायद महिला की आबरू की इज्ज़त करना सीख नहीं पाए?
कुछ समझ नहीं पा रहीं थी, उस हादसे को दिमाग से निकल नहीं पा रहीं थी। उतने में हीं एक और खबर आती हैं कि 4 वर्ष की लड़की का बलात्कार हो गया है। यह सुनकर तो मैं रो पड़ी।
एक गहरी सोच में लीन हो गई, क्यों ऐसा हो रहा हैं? क्या उनके घर में कोई महिला नहीं, जिसके कभी रात को घर न लौट कर आने का उनको भय हो ? कैसे हैवान होते हैं ये लोग, अपने मज़े के लिए क्या यह चीख़ नहीं सुन पाते? या फिर अंधे हो जाते हैं और उस बच्ची, महिला, या लड़की का दर्द नहीं देख पाते?
रोज़ 106 बलात्कार होते हैं
अगर हम आंकड़ो की बात करें, तो हम यह जानकार दंग रह जाएगें कि आंकडों के मुताबिक़ 106 बलात्कार रोज़ होते हैं। 10 में से 4 महिलाओं, लड़कियों या फिर किसी बच्ची के साथ यह हादसा होता है। हर साल बलात्कार की तीव्रता से घटनायें बढ़ती जा रही हैं।
हमारे कानून भी सख्त नहीं हैं। न्यायाधीश भी क्या न्याय देंगे। बलात्कार हुआ हैं यह सुनकर तो उल्टा सब लड़की को ही कोसने लग जाते हैं, जैसे उसने ही आमंत्रित किया हो बलात्कारियों को कि आओ मेरा बलात्कार करो।
इतने में हीं विचार आया, इस आज़ाद भारत से अच्छा होता कि हम अंग्रेज़ों की सरकार प्रणाली के राज में रहते। कम से कम हर समय भय तो नहीं रहता ऐसे बलात्कारियों से बचने का या फिर माता-पिता भी घर आने पर हर रोज़ यह नहीं सोचते कि चलो आज सही सलामत घर आ गई बिटिया।
मगर 4 वर्ष की लड़की की क्या गलती, शायद यही रही होगी कि उसको बलात्कार का मतलब नहीं पता होगा, इसलिए उन दरिंदो ने उसको भी नहीं छोड़ा। एक वृद्ध महिला के साथ भी बलात्कार हुआ। हर उम्र, हर वर्ग, हर श्रेणीं की महिलाओं के साथ ऐसे हादसें होते हैं, जिसमें 98% बलात्कारी जानकार होते हैं।
हाल हीं में सुनने में आया की टैक्सी ड्राइवर ने हीं बलात्कार कर दिया। अब बताइये सरकारी साधनों के साथ-साथ अब तो असार्वजनिक साधन भी खतरें से खाली नहीं हैं। ऐसे में घर पर बंद होकर बैठना भी व्यर्थ हीं हैं, क्योंकी बलात्कार तो घर पर खेलती हुई लड़की व घर की गृहणी के साथ भी हो रहे हैं।
कई केस दर्ज तक नहीं होते
बहुत से बलात्कार तो दर्ज भी नहीं होते, क्योंकि कोई न्यायालय के चक्कर और बदनामी से डर जाता है। ऐसे में इसके खिलाफ आवाज़ उठाने में भी क्या होगा क्योंकि हर इंसान तो आजकल बिकाऊ हो चुका है। समाज, इंसान, समस्त न्यायलय, समस्त जन बंधू व स्वयं को अपनी ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी। अकेले किसी पर इल्ज़ाम लगा देने से अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भाग सकते।
चंड़ीगढ़ में जो पुलिस कर्मचारियों ने कदम उठाया हैं, वह हर जगह होना चाहिये। हर लड़की को मार्शल-आर्ट्स व स्वयं-सुरक्षा का ज्ञान अर्जित करना अनिवार्य कर देना चाहिये। यही एक हल दिखाई देता हैं, क्योंकि कुछ हादसों के लिए स्वयं हीं ज़िम्मेदारी उठानी चाहिये। कभी-कभी कुछ चीज़ों में हम सबको अपने पास नहीं बुला सकतें, किसी की बुद्धि कब क्या सोच ले, हम दायित्व नहीं ले सकते।
परन्तु, आखइर कब तक यह भय हीं हमारी ज़िन्दगी में बना रहेंगा? आखिर कब तक हम असली आज़ाद भारत का चेहरा देख पाएगें? आखिर कब तक हमारी दुनिया सिर्फ अपने स्वप्न में जीने के मोहताज़ रहेंगे? मुझें मेरे सवालों का जवाब नहीं मिला, अगर आपको मिलें तो कृपया करके मुझे ज़रूर बताना।