लड़कियां आज हर एक क्षेत्र में एक अलग मुकाम हासिल कर रही हैं, क्योंकि अब उन्हें अपने लिए आवाज़ उठाना आ गया है। हालांकि यह बदलाव अचानक से नहीं आया है बल्कि इसके पीछे लड़कियों का संघर्ष छुपा हुआ है।
आज तमाम बंधनों को तोड़कर लड़कियां निडरता से बाहर निकल रही हैं और एक अलग मुकाम हासिल कर रही हैं। इस यूथ डे के मौके पर आइए हम मिलते हैं उन युवा लड़कियों से जिन्होंने ना सिर्फ एक अलग पहचान बनाई बल्कि लड़कियों के प्रति स्टीरियोटाइप रखने वाले समाज में एक चेंजमेकर का काम कर रही हैं।
शिवांगी, भारतीय नौसेना की पहली सब-लेफ्टिनेंट महिला पायलट
शिवांगी, बिहार के मुज़फ्फरपुर से ताल्लुक रखती हैं। वह भारतीय नौसेना की पहली सब-लेफ्टिनेंट महिला पायलट बन गई हैं। नौसेना के अफसरों के अनुसार वह ड्रोनियर सर्विलांस एयरक्राफ्ट उड़ाएंगी।
उन्होंने 2010 में डीएवी पब्लिक स्कूल से सीबीएसई 10वीं की परीक्षा पास की थी, जहां उन्हें 10 सीजीपीए प्राप्त हुआ था। साइंस स्ट्रीम से 12वीं करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग किया। एमटेक में दाखिले के बाद एसएसबी की परीक्षा के ज़रिये नेवी में सब लेफ्टिनेंट के रूप में चयनित हुईं और ट्रेनिंग के बाद पहली महिला पायलट के लिए चयनित हो गईं। इससे पहले साल 2019 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कांत फाइटर प्लेन उड़ाने वाली महिला पायलट बनी थीं।
संगीत की पुरुष वर्चस्व वाली शैली में अपनी पहचान बनाने वाली पेलवा नायक
पेलवा नायक संगीत के क्षेत्र में एक प्रेरणास्त्रोत की तरह उभरी हैं। पेलवा नायक ध्रुपद गायन शैली की गायिका हैं, जिस गायन शैली में पुरुषों का वर्चस्व माना जाता रहा है।
इस शैली के मिथक को तोड़ते हुए पेलवा आगे आ रही हैं ताकि अन्य लड़कियों और महिलाओं को सुर का आसमां मिल सके। पेलवा बताती हैं कि उनके गुरु उस्ताद जिया फरद्दुदिन डागर के अंदर स्त्रियों के गुण भी थे। मुझे यह समझ नहीं आता कि क्यों लोग ध्रुपद गायन को पुरुषों से जोड़कर देखते हैं जबकि यह भी एक आर्ट है।
ध्रुपद गायन के क्षेत्र में आने के उनके फैसले का परिवार वालों ने पूरा साथ दिया। पेलवा के माता-पिता स्वयं भी क्रिएटिव रहे हैं, जिस कारण से पेलवा को इस फील्ड में आने में मदद मिली, हालांकि यह पेलवा का संघर्ष ही है कि उन्होंने अपने सपनों के लिए खुद को समय दिया।
बाउंसर मेहरुन-निशा शौकत अली
“अरे लड़की है, ज़ोर से चोट लग जाएगी तो रोने लगेगी।” आपने इस तरह के वाक्य खूब सुने होंगे। वहीं अगर कोई लड़की किसी लड़के को मारे तो लोग कहते हैं, “उफ्फ लड़की से मार खाकर आ गया।” कभी फौज में जाने और पुलिस बनने का ख्वाब देखने वाली मेहरुन-निशा शौकत अली, आज ऐसे ही सवालों और वाक्यों पर घुसा मारती हैं, जो दर्शाता है कि लड़कियां कमज़ोर हैं।
उनकी मॉं ने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया तो वहीं दूसरी ओर उनके पिता को हमेशा यह डर लगा रहता कि लड़की है, कुछ ऊंच-नीच हो गई तो। हालांकि इसके बावजूद भी वह हमेशा अपने सपनों और पढ़ाई को लेकर आगे बढ़ते रहीं।
2007 में जब उनके परिवार में आर्थिक परेशानी हुई, उस वक्त उन्होंने एनसीसी ज्वाइंन किया था ताकि उन्हें नौकरी मिल जाए मगर उनके पिता इसके खिलाफ थे। इस कारण उन्होंने उनकी यूनिफॉर्म को आग के हवाले कर दिया था। कहते हैं ना, कितनी भी मुश्किलें आएं कदम नहीं रुकने चाहिए। इसके बाद निशा ने बाउंसर की जॉब में अप्लाई किया और वह एक बाउंसर बन गईं।
निधि गोयल, स्टैंड-अप कॉमेडियन
हमारे समाज में कहा जाता है कि लड़कियों को ज़्यादा नहीं हंसना चाहिए। अब अगर इस दौर में भी हम इस मानसिकता से ग्रसित रहें और इस मानसिकता की वजह से कोई महिला अगर खुलकर हंस-बोल नहीं पाए तो ऐसे समाज पर तो लानत है।
इसी विचारधारा को तोड़ती हुई निधी गोयल आगे बढ़ रही हैं। वह एक स्टैंड-अप कॉमेडियन होने के साथ-साथ नेत्रहिन लोगों के लिए कैंपेन भी चलाती हैं। इसके साथ ही वह पर्सन विथ डिसेबिलिटी के लिए और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ भी कार्य कर चुकी हैं।
बचपन में वह एक पोर्ट्रेट आर्टिस्ट बनना चाहती थीं मगर आंखों की रौशनी चले जाने के कारण उनका यह ख्वाब पूरा नहीं हो पाया। बावजूद वह आज अनेक लोगों को ख्वाब देखने के लिए आसमां प्रदान कर रही हैं। वह कहती हैं कि अब समय केवल आगे बढ़ने का है ना कि पीछे मुड़ने का, क्योंकि आगे बढ़ने से ही रास्ते खुलते हैं।
वर्तमान में निधी एक प्रोग्राम से जुड़ी हैं, जो सेक्शुआलिटी और विकलांगता जैसे मुद्दे पर कार्य करता है। इस एनजीओ का नाम प्वाइंट ऑफ व्यू है। इसके साथ ही वह सिविल सोसाइटी एडवाइज़री ग्रुप, यूएन वुमन इनिशिएटिव से भी जुड़ी हैं।
इस तरह ऐसी और भी कई युवा महिलाएं हैं, जो अपने हौसले से दुनिया जीतना जानती हैं। बात केवल खुद को ढूंढने और अपने लिए कदम बढ़ाने की है।