Site icon Youth Ki Awaaz

“केजरीवाल को आखिर 15 विधायकों की टिकट काटने की ज़रूरत क्यों पड़ी?”

अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव अब से कुछ ही दिनों के बाद होने वाले हैं और ऐसे में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने कामों के कारण सत्ता में वापसी चाहेंगे लेकिन क्या हम उनकी कार्यशैली का समर्थन करके एक निरंकुश सेटअप खड़ा कर रहे हैं?

आम आदमी पार्टी को सत्ता में वापस आने का भरोसा है, जिसका अंदाज़ा सर्वेक्षणों के ज़रिये लगाया जा सकता है। कुछ लोगों का कहना है कि मौजूदा दिल्ली सरकार ने बहुत काम किया है। जबकि अन्य लोगों का कहना है कि यह प्रचार-प्रसार और दिखावा है, वास्तविकता में कुछ भी नहीं किया गया है।

अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली पर एक नज़र

अरविंद केजरीवाल। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हालांकि केजरीवाल लोकतांत्रिक सेटअप और अधिकारों के बारे में बात करते हैं लेकिन लगता है कि वह सबसे अलोकतांत्रिक पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। केजरीवाल की कार्यशैली को करीब से देखने पर हम पाएंगे कि मतदाताओं को लुभाने के लिए उनकी सभी नीतियों को सही समय पर लॉन्च किया जाता है।

हाल ही में दिल्लीवासियों को 200 यूनिट बिजली सब्सिडी देना सबसे अच्छा उदाहरण है। सोचने की बात है कि उन्होंने यह सब्सिडी गर्मियों में क्यों नहीं दी? उन्होंने इसे अब क्यों लॉन्च किया? इसका जवाब यह है कि सर्दियों में 200 यूनिट एक अच्छी गिनती है, जिससे चुनाव में बेहतर माहौल तैयार होगा।

सवाल यह भी उठता है कि केजरीवाल ने आखिरी समय में महिलाओं को मुफ्त बस की सेवा क्यों दी? जवाब यही है कि वो वही कर रहे हैं, जिसके लिए वह दूसरों पर आरोप लगाते हैं।

CM बनने के बाद केजरीवाल की भाषा

अरविंद केजरीवाल। फोटो साभार- सोशल मीडिया

केजरीवाल ना केवल प्रधानमंत्री के लिए, बल्कि वरिष्ठ अधिकारियों के लिए भी खराब भाषा का उपयोग करते रहे हैं। चाहे वह मुख्य सचिव अंशु प्रकाश का मामला हो या यह मानकर चलना कि दिल्ली के मालिक वह खुद ही हैं, एक तरह से यह तानाशाही सोच को दर्शाता है। कई मामलों में हमने देखा है कि उनके खिलाफ बोलने की कोशिश करने वालों को पार्टी से बाहर निकाल दिया जाता है।

केजरीवाल के रिश्ते अधिकारियों से खराब रहने का सबसे बड़ा कारण उनका व्यवहार एवं सब कुछ अपने तरीके से कराने की ज़िद्द रही है।

केजरीवाल की किसी भी बात के लिए दोषारोपण करने में देरी ना करने की आदत सबको खलती है। उन्होंने ना केवल मुख्यमंत्री के पद की गरिमा को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के पद का भी राजनीतिकरण किया।

केजरीवाल ने सबसे पहले यह श्रेय लिया कि केन्द्र सरकार की एजेंसी यह खुद कह रही है कि दिल्ली की पानी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खड़ी उतरती है। वहीं, केंद्र ने जब कहा कि कुछ नमूने बुनियादी गुणवत्ता को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्होंने केंद्र को कोसना और आरोप लगाना शुरू कर दिया।

शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली पर बात

अब दिल्ली सरकार की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में बात करते हैं। हाल ही में आरटीआई के ज़रिये यह बात सामने आई कि केजरीवाल और उनके सहयोगी निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं।

दिल्ली में शिक्षा क्रांति का चेहरा बनने वाली आतिशी को अपना उपनाम बदलने की ज़रूरत क्यों पड़ी? हर तरह की गंदी राजनीति के बाद भी आतिशी अपनी लोकसभा सीट हार गईं और अब उन्हें पूर्वी दिल्ली की जगह कालकाजी क्यों जाना पड़ रहा है?

केजरीवाल की राजनीति

आशुतोष। फोटो साभार- सोशल मीडिया

सवाल यह उठता है कि अगर सब कुछ ठीक है, तो 15 विधायक की टिकट काटने की क्या आवश्यकता आन पड़ी? क्यों आखिरी वक्त में दूसरी पार्टी से आए लोगों को टिकट दिया गया? क्या सब कुछ ठीक है या कुछ है जिसे हम देख नहीं पा रहे है?

विधानसभा की 70 सीटों में से 23 नए चेहरों को क्यों शामिल करने की ज़रूरत पड़ी? तो क्या इतने सालों में केजरीवाल की अपने नेता से नहीं बनी? या इतनी सीटों पर पार्टी के नेता संतोषजनक काम नहीं कर रहे थे?

एक बात और गौर फरमाने लायक है कि जब राज्यसभा के लिए आशुतोष और कुमार विश्वास को पार्टी ने टिकट नहीं दिया, तो ऐसा लगा कि पार्टी वैसे लोगों को मौका नहीं दे रही है, जिन्हें लोकसभा में मौका मिला था।

अब जब आतिशी, दिलीप पांडेय और राघव को लोकसभा की हार के बाद फिर से दिल्ली विधानसभा 2020 के लिए टिकट दी गई, तो वह भ्रम भी टूट गया।

हमें यह समझना होगा कि केजरीवाल कितने अहंकारी हैं? वह व्यावहारिक रूप से अपना पहला कार्यकाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में समाप्त कर रहे हैं, तो वह तब क्या करेंगे जब एक बार फिर उनकी सरकार बनेगी? अगर हम उन्हें चाहते हैं, तो हमें उनके अहंकार को भी स्वीकार करना होगा या फिर एक अराजक नेता के लिए तैयार रहना होगा जो अपने आगे किसी की बात नहीं सुनेगा।

Exit mobile version