गॉंधी और अहिंसा कभी-कभी एक ही शब्द का भान देते हुए मालूम पड़ते हैं। हाल के दिनों में हुए अहिंसक प्रदर्शनों में हमने कई विविधताएं देखी हैं। कोई कविता गाकर सरकार से सवाल पूछ रहा है, जैसे पुनीत शर्मा की कविता “तुम कौन हो बे”, तो कोई सविनय अवज्ञा आंदोलन की तरह की एक कविता गा रहा है। इसका सटीक उदाहरण है वरूण ग्रोवर की लिखी कविता “हम कागज़ नहीं दिखाएंगे”।
यह कविता अब तक तमाम रूपों में प्रसारित हो चुकी है और कई भाषाओं में अनूदित भी हो चुकी है। कई जगहों पर कलात्मक ढंग से प्रर्दशन किए गएं, जैसे कि अपने जूते कॉलेज परिसर से बाहर रखकर अपना विरोध जताया या फिर ग्रैफिटी बनाकर।
गॉंधी ने इस देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया था। साथ ही उन्होंने देश को विरोध करने के शांतिपूर्ण तरीकों के साथ अहिंसा के रास्ते पर चलना सिखाया, इसलिए जब 4 फरवरी 1922 को चौरी- चौरा कांड हुआ, जिसमें क्रांतिकारियों ने एक पुलिस स्टेशन जला दिया था, तो उस घटना से द्रवित होकर गॉंधी जी ने असहयोग आंदोलन वापिस ले लिया।
दांडी मार्च और आज के आंदोलन में समानता
अंग्रेज़ों ने भारतीयों से नमक बनाने का अधिकार छीन लिया था। मोहनदास गॉंधी ने अपने 78 अनुयायियों के साथ 358 किलोमीटर की पैदल दूरी तय की। यह मार्च साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी पर खत्म हुआ। यह आंदोलन चौबीस दिन चला था।
“कागज़ नहीं दिखाएंगे” कविता में मुझे ऐसा ही साम्य नज़र आता है, जहां दो पंक्तियां हैं, जो लोगों की जिजीविषा को खूबसूरत ढंग से दिखाती हैंं,
तुम मेट्रो बंद कराओगे
हम पैदल-पैदल आएंगे
हम कागज़ नहीं दिखाएंगे।
अनशन यानी भूख हड़ताल पर बैठ जाना-
भारत में गॉंधी ने अनशन को लोकप्रिय बनाया। इस दशक की बात करें तो हमने अनशन के तरीके को अपना कर अपनी मांग रखने की कई घटनाएं देखी हैं।
अन्ना आंदोलन जो कि लोकपाल विधेयक के लिए हुआ था, जिसने दिल्ली की राजनीति को नई राजनीतिक पार्टी भी दे दी। गंगा की सफाई के लिए हुए जीडी अग्रवाल और आत्मबोधानंद के अनशन भी आप उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं।
कुछ दिनों पहले दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल महिला सुरक्षा को लेकर अनशन पर थीं, इसके पहले भी वह कठुआ दुष्कर्म के मामले में निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर अनशन पर थीं।
CAA के खिलाफ भी हो रहे हैं शांतिपूर्ण प्रदर्शन
हाल में चल रहे एंटी CAA विरोध प्रदर्शनों की घटनाओं पर निगाह डालें, तो हम पाएंगे कि ज़्यादातर प्रर्दशन शांतिपूर्ण तरीके से हुएं। 40 से भी ज़्यादा दिनों से चल रहा शाहीन बाग का प्रर्दशन इसका उदाहरण है।
मुंबई, जयपुर में लाखों की संख्या में लोगों शांतिपूर्ण मार्च में शामिल हुएं। दिल्ली के सीलमपुर, लखनऊ और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में हिंसात्मक प्रर्दशन हुएं लेकिन उन प्रदर्शनों की मियाद लंबी नहीं रही, कुछ घंटे या एक दो दिन।
इस देश में आज भी गॉंधी की विचारधारा बची हुई है
जबकि अहिंसक प्रर्दशन जिसे कि आंदोलन कहा जा सकता है, कई दिनों से चल रहा है। शाहीन बाग से प्रेरणा लेकर देश में कई शहरों में लोग इसी तरह अहिंसक प्रदर्शनों में बैठे हैं। इन प्रदर्शनों से लगता है कि इस देश में गॉंधी की विचारधारा बची हुई है, राजकुमार हिरानी की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई के शब्दों में कहें तो लोगों के बीच गॉंधीगिरी दिखाई देती है।
हिंसा के साथ बात रखने पर हम अपनी बात का वज़न कम कर देते हैं और जो बहस हमारे मुद्दों पर होनी चाहिए वे हमारे हिंसात्मक व्यवहार पर सिमट जाती हैं।
शायद, गॉंधी इस बात को बखूबी जानते थे। गॉंधी जैन धर्म के सूत्र अहिंसा परमो धर्म: में विश्वास रखते थे। मुझे लगता है यह देश जिसे देखते वक्त दुनिया एक बार गॉंधी को ज़रूर याद करती है, इसे अहिंसा के रास्ते पर ही चलने देना चाहिए।