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“बहराइच के बाल मेले ने हमारा भी बचपन दोहरा दिया”

ग्रामीण अंचल, जहां बच्चा 8 से 10 साल का होता नहीं कि काम के लिये, सब्ज़ी बेचने, खेती करने, ईंट भट्टे पर काम करने या छगडी चराने निकल पड़ता है। उसको या उसके अभिभावक को, दो जून की रोटी और केवल आज से मतलब होता है क्योंकि उनकी दुनिया मे बचपन, जीवन जीने के तरीक, खुशी–गम या कोई तीज-त्योहार से मतलब नहीं  होता। उनको केवल पेट भरने से  मतलब होता है, क्योंकि उनका समय उन्हे इसके आगे-पीछे का सोचने नहीं देता।

वह कहते हैं ना कि ‘पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा’ ऐसे में मैं लगभग 6000 बच्चों के पेट तो भर नहीं सकती पर हां, उनको उनके बचपन की कुछ झलकियों से रूबरू ज़रूर करा सकती हूं।

बाल मेले का आया ख्याल

भई, बच्चों को कैसे उनके बचपन से जोड़ा जाए, सभी यह सोच रहे थे कि मेरे ध्यान में आया कि क्यों ना बच्चों के लिए स्कूलों में मेला लगाया जाए, जिसे ‘तरंग बाल मेला’ का नाम दिया जाए और जिसका उद्देश्य केवल बच्चों को खुशी, उल्लास का माहौल देना होगा।

चलो भई, यह तो हो गया पर यह होगा कैसे? बहराइच में 3,453 विद्यालय में से 225 डेमोंस्ट्रेट विद्यालय हैं और सबमें ‘तरंग बाल मेला’ करना नामुमकिन है। तभी एक ख्याल आया कि क्यों ना अपने ज़िले को ‘तरंग बाल मेला’ का एक डेमो दिया जाए।

तभी तेज़वापुर ब्लॉक के अंतर्गत यादवपुर ग्राम पंचायत में राजेश सर के विद्यालय में एक ‘तरंग बाल मेला’ लगाया गया। जिसमें ज़िले के सभी ब्लॉक के खण्ड शिक्षा अधिकारी, सह–समन्वयक ,संकुल प्रभारी व अध्यापकों को बुलाया गया जिससे कि वे अपने विद्यालयों मे ऐसे कुछ बाल मेलों का आयोजन कर अपने बच्चों को ऐसा माहौल प्रदान करें।

समय बीता। अध्यापकों से बात करने पर एक परेशानी समझ आ रही थी कि यादवपुर स्कूल का वातावरण, वहां के बच्चे, वहां के स्कूल का परिसर बहुत बड़ा है और लोग भी काफी सहयोगी हैं, जो यहां नहीं है। हमारे विद्यालय का परिसर काफी छोटा है। हमें बाल मेले के बारे में कुछ पता भी नहीं, तो हम कैसे करेंगे बाल मेला?

भई एक चुनौती आ गयी थी। बहराइच के नवाबगंज़ ब्लॉक के लिए कुछ तो सोचना पड़ेगा।

छोटे परिसर की थी चुनौती

फिर आया 23 दिसंबर 2018 का दिन जब खण्ड शिक्षा अधिकारी से बात करते हुए एक सुझाव रखा कि नवाबगंज ब्लॉक के केवलपुर न्यायपंचायत के प्राथमिक रुपईडीहा गाँव विद्यालय को बाल मेला कराने के लिए चयनित करते हैं। परन्तु फिर से वही सवाल  कि जगह छोटी है, यहां कैसे होगा? मैने कहा “अरे सर करते हैं ना, बहुत जगह है हमारे विद्यालय में”।

चलो भई, जगह का तो हो गया पर ब्लॉक के 15 चयनित विद्यालयों को कैसे एक साथ लाया जाए, जिससे उन सभी को एक साथ पता चल सके कि कैंसे सभी को अपने विद्यालयों में बाल मेला करना है। इसके लिए दिनांक 26/12/2018 को बीआरसी पर 15 चयनित डेमोंस्ट्रेट विद्यालयों से एक–एक अध्यापक, संबन्धित संकुल प्रभारी और सह-समन्वयक की उपस्थिति में एक दिवसीय कार्यशाला कराई गई। जिसका उद्देश्य सभी अध्यापकों, संकुल प्रभारी और सह–समन्वयकों को एक साथ लेकर, ब्लॉक के लिए उसके समान वातावरण में संपन्न किए गए बाल मेला को दिखाया जाए।

साथ ही ब्लॉक के सभी अध्यापकों, संकुलो और बीआरसी के बीच की दूरियों  को कम करना था। आज की कार्यशाला की सबसे अच्छी बात थी कि चीज़ें अध्यापकों और संकुल प्रभारियों से ही निकल कर आ रही थी। आज सबने अपने-अपने और अपने बच्चों की रुचि के अनुसार स्टॉल लगाने का प्लान किया और साथ ही ये भी तय किया कि सभी एक साथ रुपईडीहा गाँव विद्यालय में आकर ही बाल मेला की तैयारी करेंगे।

ये सारी चीजें देखकर मयंक सर (जामदान न्यायपंचायत के अंतर्गत आने वाले गंगापुर गुलरिहा ग्रामपंचायत के अध्यापक), और कैलाश सर (सह-समन्वयक) बोले कि जिन लोगों ने कभी भी एक-दूसरे का नाम और चेहरा तक नहीं देखा था, आज सब एक साथ आ गए हैं।

आ गया मेले का दिन

लो भई आ गया बाल मेले का दिन।

दिन- शनिवार, दिनांक-12/01/2019

आज तो सब अपने स्टॉल और अपने बच्चों के साथ लगे हैं, किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है कि क्या करना है। आज यहां पर बच्चों के लिए तो काफी कुछ लग रहा है, जैसे :-

वाह, इतना कुछ देखने को, खेलने को। भाई, बहुत ही अच्छे से यह बाल मेला सफल रहा, जिसमें 800 से ज़्यादा छात्र, 100 से ज़्यादा अध्यापक, ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी, खण्ड शिक्षा अधिकारी, सशस्त्र सीमा बल के जवान और 100 से ज़्यादा समुदाय के लोगो ने प्रतिभाग कर इस बाल मेला को सफल बनाया। जिसके पश्चात नवाबगंज़ मे लगभग 10 ऐंसे ही ‘तरंग बाल मेला’ का आयोजन कर 3000 से ज़्यादा बच्चों को प्रभावित किया गया, जिसमें बच्चों ने अपनी नई-नई प्रतिभाओं का प्रदर्शन कर अपने साथ-साथ अध्यापकों को भी उनके बचपन याद दिला दिये।

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