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क्या राज्य चुनावों में वोटरों को लुभाने में नाकाम हो रही है BJP?

अमित शाह और नरेन्द्र मोदी

अमित शाह और नरेन्द्र मोदीन

आपको याद होगा 2014 में बीजेपी ने काला धन वापस लाने को लेकर पूरा चुनावी समीकरण रचा था। तब देश को सपना दिखाया गया था कि हम बिल्कुल साफ हैं और हम कालेधन के बिल्कुल खिलाफ हैं। आज 2019 में बीजेपी खुद इलेक्टोरल या चुनावी बांड लेकर आई है जिसमे चंदा देने वाले की पहचान गोपनीय रखी जाएगी।

इसके अलावा नोटबंदी और आधी अधूरी GST ने भी यह साबित कर दिया कि सरकार का हमारे देश के गरीबों से कोई वास्ता नहीं है। मीडिया द्वारा दिन और रात एक कर हिन्दू-मुस्लिम और पाकिस्तान चलाकर जनता को रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों से दूर रखने की कोशिश की जाती है।

इसके अलावा पार्टी का अमित शाह पर अत्यधित विश्वास करना और हर फैसले के लिए राज्य की कमेटी के नेताओं का शाह के फैसलों का इंतज़ार करना पार्टी के भीतर भी उथल-पुथल की स्थिति तैयार कर रहा है जिसका ताजा उदाहरण है झरखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी शिकस्त।

वहीं, सरकार के अलावा संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तित्व जैसे राष्ट्रपति और राज्यपाल का रात के अंधेरे में गलत इस्तेमाल जनता की नज़रो में खटकने लगा है। इसके अलावा भारतीय धरोहर और सरकारी कंपनिया जैसे- बीएसएनल, बीपीसीएल और एयर इंडिया को बेचने के फैसले से केवल यही साबित हो रहा है कि पार्टी केवल किसी भी तरह, किसी भी कीमत पर और किसी को भी बेचकर सत्ता और पैसा चाहती है।

यह कहा जा सकता है कि सत्ता का केन्द्रीयकरण तो काँग्रेस में भी था फिर पैसा तो हर राजनीतिक पार्टी चाहती है फिर बीजेपी को ही ज़िम्मेदार ठहराना कितना सही है? इसका जवाब बस यह है कि जिस व्यापकता से आपने इंटरनेट और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी का इस्तेमाल कर खुद को अन्य पार्टियों से साफ और स्वच्छ दिखाया था, आप उस छवि को बानाए रखने में सफल नहीं हो रहे हैं।

आपकी आर्थिक नीतियां लगातार असफल हो रही हैं और मतदाता सब बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अर्थव्यवस्था का गिरना सीधे उसके जीवन पर प्रहार करता है और मौजूदा स्थिति में यह प्रहार गहरा होता जा रहा है। सरकार के पास कोई समाधान फिलहाल तो दिखाई नहीं पड़ रहा है।

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