अहिंसा परमो धर्म:! यानी अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। बचपन से हमें इन सिद्धांतों पर चलने की सीख दी जाती है। वहीं, आज के हालातों को देखते हुए ये सब किताबों में छपा हुआ ज्ञान मात्र नज़र आता है लेकिन जो लोग इसे सिर्फ किताबी ज्ञान की संज्ञा देते हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि महात्मा गाँधी ने सिर्फ अहिंसा के बल पर भारत जैसे राष्ट्र को आज़ादी दिलाई थी।
इसलिए आज भी दुनिया उन्हें अहिंसा के पुजारी के नाम से जानती है। यही नहीं, अहिंसा के बल पर गाँधी जी ने महिलाओं के पुनरुत्थान, सामाजिक भेदभाव, कुरीतियों एवं वर्षों से चली आ रही रूढ़ियों का अंत किया।
क्या कोहराम मचाना ही विरोध का पर्याय है?
आज देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा ने चरम रूप ले रखा है। कहीं CAA को लेकर विरोध प्रदर्शन, कहीं सरकार के फैसलों को लेकर धरना प्रदर्शन, तो कहीं JNU जैसे शिक्षण संस्थाओं में उपद्रव होते हुए देखे जा रहे हैं।
इसलिए JNU स्टूडेंट्स अब क्लासेज़ से ज़्यादा प्रोटेस्ट्स में शामिल होते नज़र आते हैं। चलिए एक तरीके से मान लेते हैं कि शायद आपका विरोध करना जायज़ हो सकता है लेकिन क्या यह कोहराम मचाना ही आपके विरोध का एकमात्र पर्याय है?
आप प्रदर्शन करिए, सरकार तक अपनी बात पहुंचाइए या जो भी वैध तरीका हो उसका पूर्ण प्रयोग करिए, क्योंकि हम एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं लेकिन ध्यार रहे कि हिंसा का रास्ता हम कतई ना अपनाएं।
देश में हर एक व्यक्ति को अपने हक के लिए आवाज़ उठाने की पूर्ण आज़ादी है लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि हम सरकार के खिलाफ हिंसक रूप अपनाएं।
आने वाली पीढ़ी के साथ हम खिलवाड़ कर रहे हैं
आपके लिए शायद शक्ति प्रदर्शन ही एकमात्र तरीका हो लेकिन हमारे देश में अहिंसक प्रदर्शनों का भी लंबा इतिहास रहा है। बसें फूंकना, कारें जलाना, पब्लिक प्रॉपर्टी ध्वस्त करना, क्या यही सब आपके लिए प्रदर्शन की श्रेणी में आता है? माफ कीजिएगा, इसे कभी आंदोलन का नाम नहीं दिया जा सकता है।
याद रखिए कि इन सबसे आप किसी और का नहीं, बल्कि खुद का और खुद के देश का ही नुकसान कर रहे हैं। यहां तक कि अपनी आने वाली पीढ़ी के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
ना जाने कितने संघर्षों और प्रयत्नों के बाद आज देश बुलंदियों पर अग्रसर हो रहा है। आज हमारा देश हर क्षेत्र में नए-नए झंडे गाड़ रहा है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व आज भी झंड़े की अखंडता को खंडित करने में लगे हुए हैं। मैं यही कहना चाहूंगी कि सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए देश से खिलवाड़ मत करिए।
यह आज भी वही भारत है, जहां विभिन्न धर्म-समुदाय के लोग साथ मिकलर रहते हैं, एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागिता निभाते हैं। यहां आज भी भाईचारा सर्वोपरि है। कुछ तुच्छ मुद्दों की वजह से रिश्तों में कड़वाहट मत आने दीजिए।
अहिंसा और प्रेम से कोई भी जीत सुनिश्चित की जा सकती है। वरना हिंसा ने तो सिर्फ लाशें ही बिछाई हैं। यह हम सभी लोगों पर निर्भर है कि हम अपने भविष्य को किस ओर ले जाना चाहते हैं।
मुद्दे कुछ भी हों, देश के नागरिकों के बीच एकता बनी रहनी चाहिए। हम देश से हैं, देश हमसे नहीं है। देश के निर्माण में अगर सहभागिता नहीं निभा सकते, तो कम-से-कम इसके विनाश में सहभागी मत बनिए।