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इन 5 वजहों से पहाड़ी युवाओं को अपना घर छोड़ना पड़ता है

मैं, उत्तराखंड राज्य का निवासी हूं। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसे ख्याति प्राप्त है देवभूमि के नाम से, जो अत्यंत ही नैसर्गिक सुंदरता को स्वयं में समेटे हुए है।

उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी, फोटो साभार- प्रियंका

यहां की खूबसूरती इसे स्वर्ग बना देती है। किसी भी ऋतू में आप उत्तराखंड आएंगे तो अलग ही अनुभव पाएंगे। परन्तु वर्तमान में इस राज्य में कुछ समस्याएं इस तरह से प्रभावी हो रही हैं जो कि इस किवदंती को सत्य साबित कर रही है की “पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नहीं आती।

पहाड़ का युवा क्यों पहाड़ में नहीं रुक पाता

पहाड़ की “जवानी” से अर्थ यहां के युवा वर्ग से है, जो पैदा तो यहां होता है, यहीं की मिट्टी  में खेलकर बड़ा होता है लेकिन जब युवा होता है तो स्वयं को इस प्रदेश में रोककर नहीं रख पा रहा है। आखिर ऐसा क्यों?

जब मैंने इस बात का विश्लेषण करने की कोशिश की तो पाया कि यहां के युवा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से प्रमुख परेशानियों को आगे उल्लेखित कर रहा हूं।

खंडहर में तब्दील हो चुका उत्तराखंड के गॉंव का एक घर। फोटो सोर्स- प्रियंका गोस्वामी

पहला शिक्षा

प्रदेश में काफी जगह या तो स्कूल नहीं है और अगर हैं भी तो बहुत दूर-दूर जहां पहुंचने के लिए बच्चों को मीलों पैदल चलना पड़ता है और जिन कस्बो में स्कूल हैं भी तो वहां पर उत्तम गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध नहीं है।

दूसरा बेरोज़गारी

प्रदेश में रोज़गार उपलब्ध न होना एक प्रमुख कारक है, जिसका यहां के युवा वर्ग को सामना करना पड़ता है और इस कारण युवा वर्ग को रोज़गार की तलाश में महानगरों यथा दिल्ली, मुंबई, पूना आदि स्थानों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। फिर ज़्यादातर युवा इन्हीं  महानगरों के बनकर रह जाते हैं और कभी अपने प्रदेश, अपने घर स्थायी तौर पर  वापस नहीं लौट पाते।

तीसरा स्वास्थ्य सुविधा

प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधा की दशा अत्यंत ही खराब है। कई जगहों पर या तो अस्पताल नहीं हैं और जहां हैं भी वहां या तो आधुनिक स्वास्थ  उपकरण या मशीने हैं ही नहीं और फिर डॉक्टर्स ऐसे दूर-दराज इलाकों में नहीं जाना चाहते क्योंकि उनका शहर की चकाचौंंध और शहरो में उनके द्वारा खोले गए क्लीनिक से होने वाली कमाई का मोह नहीं छूट पाता।

उत्तराखंड के गॉंव का एक घर। फोटो सोर्स- प्रियंका गोस्वामी

ना जाने कितने लोगो की मौत सिर्फ इसी वजह से हो जाती है क्योंकि उनके गाँव से अस्पताल इतनी दूर हैं कि मरीज़ के समय रहते अस्पताल तक ना पहुंच पाने के कारण मरीज़ की रास्ते में ही मौत हो जाती है और जो समय रहते पहुंच भी जाते हैं।

उनकी मौत अस्पताल में डॉक्टर्स की कमी के कारण या फिर स्वास्थ्य उपकरण की कमी की वजह से हो जाती है। (ऐसी मौतों की खबरें यहां की  लोकल खबरों में समाचार पत्रों में आती रहती हैं)

चौथा आपदा

राज्य अक्सर ही प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता रहता है। भूकंप,भू-स्खलन,अतिवृष्टि ,बादलो का फटना इत्यादि यहां की आपदा के कारक हैं, जिससे राज्य को जन-धन की बहुत ज़्यादा क्षति होती है। (2013 की केदरनाथ आपदा को पूरे विश्व ने देखी थी )

उत्तराखंड में आपदा के दौरान का दृश्य, फोटो साभार- अजय पुरी

पांचवा पलायन

उपरोक्त सारे कारण प्रदेश में पलायन जैसी भयावह चिंता को जन्म दे रहे हैं। युवा गाँवों को छोड़कर यहां के शहरों और बेहतर विकल्पों के लिए दूसरे राज्यों के शहरों  की और पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं, जिस कारण आज प्रदेश के ज़्यादातर गाँव खाली हो गए हैं या फिर किन्ही-किन्ही  गाँवो में आबादी दो से पांच परिवारों तक सिमट कर रह गई है और ये परिवार भी पलायन के लिए तैयार बैठे हैं।

यह पलायन जितना सामाजिक तौर पर बुरा है उससे ज़्यादा बुरा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी हो सकता है क्योंकि इस राज्य की भौगोलिक सीमाएं दूसरे देशों से लगी हुई हैं जिनमे चीन प्रमुख है।

इन सारी समस्याओं से जूझता यह राज्य और इसके युवाओं के लिए समस्याएं घटने की बजाय बस बढ़ ही रही हैं।

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