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“शिक्षा से लेकर हमारी नागरिकता पर हमले वाला साल रहा 2019”

हमने बीते साल इंसान को भगवान बनने दिया, बसाने दिया कैलाशा देश

हमने ही बनाए नित्यानंद, चिन्मयानंद, आशाराम, राम रहीम

देश को “नया भारत” घोषित किया जा चुका है।

 

पिछला साल बीत चुका है,

प्याज की कीमतें बांध के जलस्तर सी बढ़ी हैं

नेताओं के ऊपर से केस हट चुके हैं

हमने हत्या के आरोपियों को बैठने दिया है संसद में

हम पास होने दे रहे हैं संसद में मनमाने बिल।

 

पिछला साल बीत चुका है

हम नफरत का कोर्स ‘ए’ ग्रेड से पास कर चुके हैं

हमने किसानों को मजबूर होने दिया आत्महत्या के लिए

कत्ल के दाग छुपने दिए जुमलों में, स्कीमों में, सरहद की बातों में।

 

पिछला साल बीत चुका है

हमने हथियाने दिया खुद को, अपनी आवाज़, पूर्वजों को,

अपने इंस्टिट्यूशन को, अपनी नौकरियों को,

टीवी चैनलों, एंकरों को, कानून-व्यवस्था को, संविधान को,

हथियाने वाले आदमखोर शेर की तरह

हर शिकार पर दहाड़कर हंस रहे हैं

हमारे पास बची हैं मात्र विडम्बनाएं।

 

पिछला साल बीत चुका है,

हमने खुद को आसानी से तब्दील करवा लिया है भीड़ में

चुनाव में नोट लेकर वोट देने के लिए

भाषणों को सुन तालियां बजाने के लिए 

जाति-धर्म के नाम पर दंगे भड़काने के लिए

बुद्ध, गाँधी, सुभाष को कलंकित करने के लिए।

 

पिछला साल बीत चुका है,

हमने मारने दिया है ससुराल में बहुओं को

हमने दिया साहस, भेड़ियों को बलात्कार के लिए

जो जला दे रहे हैं सरेआम हमारी बेटियां

परम्पराओं, राष्ट्रवाद की चादर ताने हम सो रहे हैं।

 

पिछला साल बीत चुका है,

कश्मीर को डिटेंशन कैम्प में जाने दिया हमने

अब असम को, त्रिपुरा को भी भेजने में मदद की हमने

नागरिक होने की है ज़िम्मेदारी निभाई हमने

हम चुप हैं, लिख नहीं रहे हैं, विरोध नहीं कर रहे हैं

हम वोट दे रहे हैं आँख बंद करके।

 

सरकार और क्या चाहती है नागरिक से? 

यह समय हमारे आत्मबोध का है, प्रतिरोध के साहस का है

समय संसद में कैद नीतियों को आज़ाद कराने का है

समय जनता का है,

जो जंग शुरू की गई, तुम्हें हथियाने के लिए

उसे खत्म करने का समय है

याद रहे पिछला साल बीत चुका है।

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