Site icon Youth Ki Awaaz

“सरकार का विरोध करना देशद्रोह है, तो देशप्रेम की परिभाषा को चेक करने का वक्त है”

जेएनयू में पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओं ने देश के इस अग्रणी संस्थान की छवि कहीं ना कहीं बिगाड़ दी है और अब स्थिति यह है कि लोगों को लगने लगा है कि जेएनयू में ये सब चीज़ें आम हैं।

एक शिक्षण संस्थान में जो चीज़ें नहीं होनी चाहिए, उसको एक सामान्य बात मानना ठीक नहीं।

अध्यक्ष आयशी घोष हमले में घायल, फोटो साभार- सोशल मीडिया

हिंसा को जस्टिफाई करना बहुत ही खतरनाक

जेएनयू में बीते दिनों जो गुंडागर्दी हुई वह शर्मनाक थी लेकिन कुछ लोग जेएनयू के संदर्भ में इस बात को सामान्य मान रहे हैं। यह बात शिक्षा, स्टूडेंट्स और विश्वविद्यालयों के भविष्य के लिए खतरनाक है। कैंपस में इस तरह की गुंडागर्दी से बहुत सारे स्टूडेंट्स का भविष्य अधर में चला जाता है। जो स्टूडेंट्स सिर्फ पढ़ने के लिए आया है, उसे इस तरह की घटनाओं से डर लगता है।

हॉस्टल में स्टूडेंट्स को टारगेट करके उनपर हमला करना और उसको जस्टिफाई करना बहुत ही खतरनाक है। यहां दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि झगड़ा किसने शुरू किया लेकिन इसी बीच एक संगठन का ज़िम्मेदार मुखिया आता है और आतंकी संगठनों की तर्ज़ पर इस हमले की अपने होशो हवास में ज़िम्मेदारी लेता है। वह सिर्फ ज़िम्मेदारी नहीं लेता बल्कि आगे भी इस तरह के हमले करने की धमकी देता है।

खुलेआम किसी हिंसात्मक कार्रवाई की ज़िम्मेदारी लेना और आगे इस तरह के हमले करने की धमकी देना दिखाता है कि ऐसे लोगों के मन में पुलिस प्रशासन और सरकार का कोई डर नहीं है और उन्हें पूरा विश्वास है कि उनका कोई कुछ नहीं कर सकता।

बात यह है कि यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स पर ही हमला नहीं है। यह हमला है देश के छात्रों पर, शिक्षा पर, विश्वविद्यालयों पर, देश के भविष्य पर।

ऐसे डर के माहौल में कौन अपने बच्चों को पढ़ने भेजेगा और कौन पढ़ने आएगा? और अगर यह सिर्फ जेएनयू को टारगेट करके किया गया तब भी देश का बहुत बड़ा नुकसान है। वर्तमान में भी इस सरकार के कई मंत्री हैं, जो इस संस्थान से पढ़कर निकले हैं लेकिन अब उनको यह संस्थान देशद्रोहियों का अड्डा लगने लगा है।

हमारे देशप्रेम की परिभाषा ही गलत है

जेएनयू में नकाबपोश लोगों द्वारा स्टूडेंट्स पर हमला करने के बाद विरोध प्रदर्शन

किसी सरकार या पार्टी में शामिल होकर अपने आप को उसका तोता बना लेना आम बात हो गई है। जब कोई नेता मंत्री बनता है तो वह अपने स्वतंत्र विचार खो देता है। वह अपने विचारों को पार्टी को समर्पित कर देता है।

अब अगर सरकार का विरोध करना देशद्रोह है, तो फिर आपकी देशप्रेम की परिभाषा ही गलत है। सरकार और प्रधानमंत्री देश नहीं होते, देश कुछ और ही होता है जिसका दायरा इतना छोटा नहीं है।

इन सबसे जो सबसे बड़ा नुकसान हो रहा है, वह है देश के लोगों के बीच राय बनना। राय भी ऐसी जो कहती है,

जेएनयू गेट पर खड़े पुलिसकर्मी, फोटो साभार- सोशल मीडिया

राय ऐसे ही बनती है। इस तरह की राय बनने का पैटर्न और प्लैनिंग भी परत दर परत है। मसलन,

यह नई राय झूठ की बुनियाद पर टिकी होगी लेकिन उसे आप झूठा साबित नहीं कर पाएंगे क्योंकि जब आप उसे झूठा साबित करने जाएंगे और सच समझाने की कोशिश करेंगे तो लोग आपको ही झूठा साबित करके अलग कर देंगे।

जेएनयू प्रोटेस्ट, फोटो साभार- सोशल मीडिया

राय बनाने की यह जो प्रक्रिया है, वह समझ में तो नहीं आती है लेकिन बहुत ही घातक है। 10 झूठी बातों के आधार पर एक नया झूठ खड़ा करना और बार-बार उसे याद दिलाकर उसे सच बना देना, एक नया धंधा है और बहुत बड़ा खेल है।

कोई भी सरकार इस तरह के दो चार शिगूफे उछालती है, जिससे जनता का ध्यान ज़रूरी और बुनियादी चीज़ों से हटकर इन सब में लगा रहे और वास्तविक दुनिया के साथ-साथ एक नई दुनिया खड़ी हो जाए, जो उनके हिसाब से चले।

Exit mobile version