Site icon Youth Ki Awaaz

“मुंबई लोकल में ना बाथरुम ना सफाई और आ गए मेरे पीरियड्स”

फोटो साभार- Flickr

फोटो साभार- Flickr

बचपन से मैं कई मुद्दों पर बातों को सुनकर, समझकर और पढ़कर बड़ी हुई हूं। कुछ बातों के लिए लड़ना सिखाया गया, तो वहीं कुछ बातों के लिए चुप रहना। हालांकि मैं लड़की हूं, इसलिए मुझे अधिकांश बातों पर चुप रहना ही सिखाया गया।

उसमे से एक मुद्दा था, पीरियड्स। हां, सही पढ़ा आपने। मेरे लिए आज यह बड़ी बात है कि मैं एक ऐसे मुद्दे पर खुल कर लिख रही हूं, जिस पर सिर्फ आज तक चुप रहना ही सिखाया गया है।

पीरियड्स को लेकर कई सारी भ्रांतियां हैं और कई सारी समस्याएं भी। इससे जुड़ा में एक समस्या है साफ-सफाई।

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुंबई लोकल में पीरियड्स के दौरान सफर

मैं मुंबई में रहती हूं। काम के सिलसिले में अधिकांश लोकल ट्रेन या ऑटो से ही ट्रैवल करती हूं। बाकी दिन तो सब ठीक होता है, लेकिन महीने के वे 4 दिन हमारे लिए हमेशा से परेशानी वाले रहे हैं।

मुंबई में समान्य दिनों में लोकल ट्रेन की भीड़ काफी तनाव व थकावट से भरपूर होती है, तो ज़रा सोचिए कि महीनों के उन दिनों में लगातार तेज़ दर्द के बीच में आपको ट्रैवल करना पड़े तो? यह तो सिर्फ एक मसला है।

ज़रा यह सोचिए कि कभी आप प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के इंतज़ार में हैं और अचानक से आपके पीरियड्स आ जाएं लेकिन आसपास बाथरूम ना हो। वह भी तब जब आपकी सरकार बुलैट ट्रैन की तो बात करती है लेकिन मुंबई लोकल से प्रतिदिन 25 लाख के आसापास लोकल ट्रेन से ट्रैवल करने वाली महिलाओं को स्वच्छ बाथरूम की व्यवस्था मुहैया नहीं करवा पाती है।

मुंबई में आपको सबकुछ मिलता है, लेकिन समय नहीं मिलता। यही हाल मेरा भी है, ऑफिस पर सही समय पर पहुंचना, काम के लिए फील्ड पर जाना मेरे लिए रोज़मर्रा के कामों में शामिल है। लेकिन मेरा हाल तब बेहाल हो जाता है, जब स्टेशन परिसर में या उसके आस पास मुझे पीरियड्स के समय साफ वॉशरूम नहीं मिलता है।

अचानक स्टेशन पर पीरियड्स आए

यह 6 महीने पुरानी घटना है। जब मैं एक स्टेशन पर खड़ी अपनी ट्रेन का इंतज़ार कर रही थी। मुझे पनवेल जाना था, मेरे यहां से वहां जाने के लिए सीमित ट्रेनें हैं। इसलिए मैं अपनी आने वाली ट्रेन मिस नहीं कर सकती थी, नहीं तो पूरे दिन का टाइम टेबल तहस-नहस हो जाता लेकिन ट्रेन का इंतज़ार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मेरे पीरियड्स आ गए हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पनवेल पहुंचने में मुझे 1.30 घंटे लगने वाले थे, इसलिए मैं बिल्कुल भी इंतज़ार नहीं कर सकती थी। मैं जिस प्लेटफॉर्म पर थी वहां आसपास कोई वॉशरूम नहीं था और जहां था वहां जाने पर लगा कि उल्टी हो जाएगी क्योंकि वह हद पार गंदा था।

मेरा दिल और दिमाग बंद हो गया, मैं रोने ही वाली थी पर क्या करती कोई और ऑप्शन नहीं था। मेरा मन पूरा घिना गया और पूरे दिन में एक अजीब उदासी के साथ अपना काम करती रही।

इसके बाद मैंने कई बार ऑथॉरिटी तक यह बात पहुंचाने के कोशिश की, क्योंकि यह सिर्फ मेरी ही समस्या नहीं है। मुंबई लोकल से ट्रेवल करने वाली लाखों महिलाओं की बात है। पर दुखद बात यह है कि आज भी हाल उतना ही बेहाल है।

मैं अब जब भी नैशनल हेल्थ पॉलिसी की बात सुनती हूं और सरकार बड़े-बड़े दावे पेश करती है, तो मुझे हंसी आती है। मेरा मानना है कि सालों से हम हेल्थ पॉलिसी के नाम पर जुमलेबाज़ी ही कर रहे हैं क्योंकि हम बेसिक सुविधाएं भी मुहैया कराने में सक्षम नहीं है। हम कोई बड़ी मांग नहीं कर रहे हम बस साफ- सुथरे वॉशरूम की बात कर रहे हैं।

Exit mobile version