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डाकुओं की दुनिया की संवेदना और दर्द को दिखाती है फिल्म सोनचिड़िया

अभिषेक चौबे की ‘सोनचिड़िया’ देश में लगे आपातकाल के समय की कहानी है। फिल्म की कथा से महत्वपूर्ण किरदार बन पड़े हैं। यह फिल्म किरदारों के लिए देखी जानी चाहिए।

अभिषेक चौबे ने सुदीप शर्मा के साथ मिलकर चंबल की खाक छानी और फिर किरदारों का यथार्थपूर्ण खाका खींचा। ‘सोनचिड़िया’ डकैत या यूं कहें कि डकैतों के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। हिंदी सिनेमा में ‘बैंडिट क्वीन’ और ‘पान सिंह तोमर’ की परंपरा की यह फिल्म चंबल के बीहड़ों को किरदार बनाती है। उसके दुख दर्द को बयां करती है। ‘सोनचिड़िया’ के डकैत किरदार वास्तविक पात्रों से प्रेरित हैं। उनके जीवन एवं व्यवस्था से प्रेरित हैं।

अभिषेक चौबे की फिल्म में स्थानीयता की झलक

अभिषेक फिल्मकारों की वर्तमान परिधि के उम्दा फिल्मकारों में से एक हैं। आपकी फिल्मों में स्थानीयता या कहें आंचलिकता रहती है। हिंदी साहित्य के पाठकों को फणीश्वर नाथ रेणु की शैली और शिल्प के हवाले से याद दिलाई जाए तो वे फिल्मों में आंचलिकता के महत्व को समझ सकते हैं।

अभिषेक ने ‘इश्किया’ से लेकर ‘डेढ़ इश्किया’, ’उड़ता पंजाब’ तथा ‘सोनचिड़िया’ तक में स्थानीयता को मज़बूती से पेश किया है। ‘सोनचिड़िया’ चंबल के डकैतों की धूसर और मटमैली दुनिया को करीब से दिखाती है, वहां मौजूद धर्म चिंता एवं ग्लानि का अध्य्यन करती है। यह किरदार कानून-व्यवस्था के खिलाफ होते हुए भी नैतिकता का पालन करते हैं।

‘सोनचिड़िया’ मुख्य रूप से पांच किरदारों की कहानी है

मान सिंह (मनोज बाजपेयी), वकील(रणवीर शोरी), लाखन (सुशांत सिंह राजपूत), इंदुमती तोमर (भूमि पेडणेकर) तथा वीरेंदर सिंह गूजर व (आशुतोष राणा) के ज़रिए फिल्म स्वयं को गढ़ती है।

सुशांत सिंह राजपूत यानी लखन फिल्म के नायक हैं। मान सिंह (मनोज बाजपेयी) यानी मान सिंह डकैतों के गिरोह मुखिया हैं। वकील और लाखन उसके दाएं-बाएं हाथ हैं।

मान सिंह उसूलों का पक्का नैतिक व्यक्ति है

उसूल व कही गई बात पर जमा रहता है, उसके लिए जान की भी परवाह नहीं करता है। वह चाहता है कि गिरोह के सभी सदस्य उसकी बात मानें। मान सिंह ग्लानि से पीड़ित हैं। अनजाने में उससे जो नैतिक अपराध हुआ, उससे वह मुक्त होना चाहता है।

लाखन भी ऐसी ही पीड़ा महसूस करता है, इसलिए वह मान सिंह का करीबी है। मनोज बाजपेयी ने मान सिंह के द्वंद्व, पीड़ा और अंतर्विरोध के भाव को अदाकारी से आत्मसात कर लिया है, जिससे एक बार फिर साबित हुआ कि वह मंझे हुए कलाकार हैं।

मनोज बाजपेयी ने काफी पहले भी मशहूर ‘बैंडिट क्वीन’ में फूलन देवी (सीमा बिश्वास) के साथी का रोल निभाया था लेकिन वह अलग प्रकृति का पात्र था। ‘सोनचिड़िया’ के मान सिंह से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन कहना होगा कि मनोज ने दोनों किरदार को ज़िम्मेदारी से निभाया है।

मान सिंह की गैर मौजूदगी में गिरोह को संभालने वाला किरदार है वकील

वकील (रणवीर शोरी) को मालूम है कि मान सिंह उस पर भरोसा नहीं करता है, फिर भी वफादारी में कहीं कोई कमी नहीं रखता है। वकील के किरदार को बहुत पावरफ़ुल अंदाज़ में निभा जाने के लिए रणवीर की प्रशंसा करनी चाहिए। गिरोह में वरिष्ठ और आक्रामक होने की वजह से वकील खास महत्व का किरदार है।

मान सिंह की गैर मौजूदगी में वह गिरोह को संभालता है। अधूरे संकल्पों की ओर पूरी कुव्वत से बढ़ता है। रणवीर अनोखे कलाकार हैं, सक्षम कलाकार हैं। शहरी परिवेश और चाल-चलन के बावजूद बीहड़ में रचे बसे किरदारों को भी प्रभाव से अदा करने की कला रखते हैं।

रणवीर एक मंझे हुए कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं, वे सदा से मुख्य किरदारों को मज़बूती देते आए हैं। भाषा और लहज़ा पर उनकी सटीक पकड़ है। इस फिल्म में वह मनोज और आशुतोष राणा के सामने कमतर नहीं दिखाई दिए हैं।

अन्तर्द्वन्द से जूझता हुआ किरदार है लाखन

लाखन (सुशांत सिंह राजपूत) एक बागी चरित्र का पात्र है। लाखन बागी का धर्म समझना चाहता है। असमंजस में भी वह भागता नहीं है, क्योंकि शायद उसे मालूम है कि स्वयं से नहीं भागा जा सकता है। वह नई पीढ़ी का हताश सदस्य है।

बीहड़ के भटकाव से ऊबा लाखन खुद को हवाले करने के लिए भी तैयार है। वह गिरोह के दूसरे सदस्यों से अधिक मानवीय और आत्मिक है। वह परंपरा का बोझ नहीं चाहता है लेकिन गिरोह और खुद की रक्षा के लिए हथियार उठाने से पीछे नहीं हटेगा। मगर लाखन अंततः तनहा और भंगुर है।

सुशांत सिंह राजपूत ने लाखन के किरदार को सयंत और संतुलित तरीके से निभाया है। सुशांत किरदारों का संभलकर चयन कर रहे हैं। स्वयं खुद को तलाश रहे हैं।

पितृसत्तामक व्यवस्था की पीड़ित और उनसे बिफरी हुई है इंदुमती

इंदुमती तोमर (भूमि पेडणेकर) एक सामान्य किरदार में हैं, इंदुमती की स्वयं खास पहचान नहीं है। वह सताई और नाराज़ है। पितृसत्तामक व्यवस्था की पीड़ित है, उनसे बिफरी हुई है।

वह एक रेप सर्वाइवर किशोरी को लेकर यहां शरण के लिए आई है। मान सिंह के गिरोह से मिलने बाद उसकी उम्मीद जगती है लेकिन वह चोट खाए सिपाही की तरह सतर्क रहती है। एक प्रसंग में परिवार के सदस्यों से जब सामना हुआ तो डिगी नहीं, वह प्रहार करती है। इंदुमती का सच दरअसल उसे ऐसा ही करने को कहता है।

भूमि ने इंदुमती के किरदार को जिस सहजता से निभाया वह प्रशंसनीय है। वह अभिनय की चुनौतियों से ना डगमगाने वाली अभिनेत्री बन गई हैं।

वीरेंदर सिंह गूजर को डाकुओं के घिरने व मरने पर सुकून मिलता है

वीरेंदर सिंह गूजर (आशुतोष राणा) पुलिस अधिकारी गूजर मान सिंह के गिरोह को मिटा देने का मंसूबा लिए चल रहा है। ठाकुरों के इस गिरोह से उसकी जातिगत रंजिश है। डाकुओं के घिरने व मरने पर उसे सुकून मिलता है। आशुतोष राणा की बुंदेली भाषा पर ज़बरदस्त पकड़ है। किरदार के भाव को बुंदेली में ज़बरदस्त लहज़े और ठहराव के साथ बोलते हैं। जटिल से जटिल किरदारों को परदे पर जीवंत करने में माहिर आशुतोष ने ‘सोनचिड़िया’ में भी प्रभावशाली काम किया है।

फिल्म का नाम ‘सोनचिड़िया’ है यानी कि सोने की चिड़िया की तलाश। रेप सर्वाइवर किशोरी लड़की के हाथ पर उसका नाम सोनचिड़िया लिखा हुआ है मगर फिल्म की कहानी में उसे ज़्यादा स्पेस नहीं मिलना खलता है। कमियों के बावजूद ‘सोनचिड़िया’ को देखकर हम एक निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि डाकुओं की दुनिया को समझने के लिए यह फिल्म बहुत कारगर है। रस्टिक परिवेश व किरदारों के दम पर खड़ी ‘सोनचिड़िया’ बागी व्यवस्था को करीब से देखती है।

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