महिला सुरक्षा को लेकर क्या हमारी केंद्र और राज्य की सरकारें गंभीर है? आज यह सवाल पूछना बहुत ज़रूरी है, वह इसलिए क्योंकि रेप की खबरें जब मीडिया से गायब हो जाती हैं, तब लोगों का गुस्सा ठंडा हो जाता है और तब हमारी सरकारें महिला सुरक्षा को ठंडे बस्ते में डाल देती है। फिल जैसा पहले चल रहा था, वैसा ही आगे भी चलता रहता है।
मैं ऐसा इसलिए कह रहां हूं क्योंकि निर्भया की घटना से लेकर हैदराबाद और उन्नाव की घटना तक कुछ नहीं बदला है। अगर कुछ बदला है, तो वह है बस शहर का नाम, जगह का नाम और लड़की का नाम।
मुझे आज यह लग रहा है कि हमारी सरकारें महिला सुरक्षा को लेकर ना तब गंभीर थी और ना ही आज गंभीर दिख रही है। अगर तब गंभीर होती तो आज महिलाओं की यह परिस्थिति नहीं होती और आज हैदराबाद और उन्नाव की घटनाएं नहीं होती।
सरकारों का समय निकालने वाला रवैया
सरकार का समय निकालने वाला रवैया बेहद शर्मनाक है लेकिन सच यही है कि कोई भी सरकार क्यों ना हो, वह ऐसी घटनाओं के बाद संवेदना दिखाती है।
असल में वह बस समय बीतने का इंतज़ार करती है। वह मीडिया से खबर जाने का इंतज़ार करती है। लोगों का गुस्सा ठंडा होने का इंतज़ार करती है और एक बार जब यह समय बीत जाता है, तो इन सरकारों का रवैया समय निकालने वाला होता है और यही दिखाता है कि ये लोग महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है।
ये लोग गंभीर होने का बस नाटक कर रहे होते हैं इससे ज़्यादा कुछ नहीं। मै ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि अगर ये लोग गंभीर होते तो,
- रेप जैसी घटनाओं को रोकने की कोशिश करते,
- कायदे और कानून को सही तरीके से इम्प्लीमेंट करते,
- आरोपियों को कानूनी तरीके से जल्द से जल्द सज़ा मिले इसलिए सिस्टम में ज़रूरी बदलाव लाने का प्रयास करते,
- रेप सर्वाइवर और उसके परिवार को ज़रूरी मदद करते,
- समाज का महिलाओं के प्रति जो रवैया है, उसे बदलने की कोशिश करते और
- इतना ही नहीं रेप के आरोपी को चुनाव लड़ने का टिकट नहीं बल्कि उसे बाहर का रास्ता दिखा देते।
लेकिन क्या हमारी सरकारें और इससे जुड़े लोग ऐसा करते हुए आपको आज कहीं दिख रहे हैं? अफ़सोस ऐसा नहीं हो रहा है और इसलिए मैं यह सवाल पूछ रहा हूं कि महिला सुरक्षा को लेकर क्या हमारी केंद्र और राज्य की सरकारें गंभीर हैं?
निर्भया फण्ड का उपयोग नहीं कर रही सरकार
आपको बता दें कि पिछले 5 सालों में निर्भया फण्ड में से केवल 20 प्रतिशत फण्ड इस्तेमाल किया गया है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि महिला सुरक्षा को लेकर हमारी सरकारें कितनी गंभीर है।
अब फिर से ये लोग फास्ट ट्रैक कोर्ट की तथा जल्द से जल्द न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं। इनसे सवाल यह है कि निर्भया की घटना के बाद सिस्टम में बदलाव लाने के लिए आपने क्या किया है? केवल घोषणाओं से बदलाव नहीं होता, इसे इम्प्लीमेंट करने की ज़रूरत है।
अभी आंध्र प्रदेश सरकार ने रेप के दोषियों को 21 दिन में सज़ा देने का कानून बनाया है। यह सराहनीय है पर क्या ऐसा करने के लिए सिस्टम में ज़रूरी बदलाव की शुरुआत की गई है या यह भी बस एक घोषणा बनकर रह जायेगा।
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस रातोंरात सरकार बनाने की जल्दबाज़ी तो दिखा सकते हैं लेकिन पूरे पांच साल की उनकी सरकार में निर्भया फण्ड को उपयोग में लाने की जल्दबाज़ी नहीं दिखी। महाराष्ट्र ने निर्भया फण्ड का एक रुपया भी यूज़ नही किया है। अब जाकर महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने निर्भया फण्ड को यूज़ में लाने की सूचना अधिकारियों को दी है।
ऐसी खबर आ रही है कि जिस दिल्ली को रेप कैपिटल कहा जाता है। जहां महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, वहां हमेशा खुद को ‘बेचारे’ साबित करने वाले अरविन्द केजरीवाल भी निर्भया फण्ड को यूज़ करने के बारे में बेचारे ही निकले। उन्होंने केवल 5 प्रतिशत निर्भया फण्ड का उपयोग दिल्ली के लिए किया है और यही हाल बाकी राज्यों का और केंद्र शासित प्रदेशों का भी है।
यह दिखाता है कि महिला सुरक्षा को लेकर हमारी सरकार कितनी गंभीर है।
सिस्टम में बदलाव ना करने वाली सरकारों के लिए भी कानून हो
मैं तो यहां यह कहना चाहता हूं कि महिला सुरक्षा के लिए जो भी कानून या नीतियां बनाई गई हैं। उसको सही से इम्प्लीमेंट ना करने वालों के लिए और सिस्टम में ज़रूरी बदलाव ना करने वाली सरकारों के लिए भी कानून बनाया जाए और उसमें ऐसे लोगों के लिए भी सज़ा का प्रावधान होना चाहिए।
तब देखते हैं कि ये लोग महिला सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर है। क्या सरकार में बैठे हुए ये लोग ऐसा कानून ला सकते हैं? इसका जवाब भी आपको ना में ही मिलेगा। इसका कारण यह है कि सरकारें घोषणाएं तो कर सकती हैं लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी नहीं ले सकती है।
यदि आप महिला सुरक्षा के बारे में वास्तव में गंभीर हैं और इस स्थिति को बदलना चाहते हैं, तो change.org पर मेरी इस याचिका पर हस्ताक्षर करें।