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“नागार्जुन ‘मानसिक तौर पर बीमार’ थे या शातिर?”

मृत्यु के 22 साल बाद बाबा नागार्जुन पर कथित तौर पर यौन शोषण का आरोप लगा है। इन आरोपों ने साहित्य की दुनिया में भूचाल ला दिया है। बाबा नागार्जुन के समर्थन में आने वाले प्रबुद्ध लोग जहां इन आरोपों की सत्यता पर सवाल उठा रहे हैं, तो वहीं बहुत सी महिला लेखिकाएं और साहित्य प्रेमी आरोप लगाने वाली महिला गुनगुन थानवी के समर्थन में भी आ रही हैं।

कला बनाम कलाकार

साहित्य की दुनिया फिर से एक बार दो धड़ों में बंट गई है। फिर से सवाल उठने लगा है कि क्या लेखक की कृति महान होती है या फिर लेखक खुद की महानता की श्रेणी में आ खड़ा होता है।

किसी भी लेखक की रचनाओं का सम्मान क्या लेखक के भीतर के व्यक्तिगत दोषों, खामियों और मानवीय अवगुणों का भी सम्मान होता है। क्या लेखक की रचनाएं उसके भीतर के मानवीय अवगुणों को ढंक देती है या फिर साहित्य प्रेमियों को किसी लेखक के व्यक्तित्व को छोड़ सिर्फ कृतित्व पर ही बात करनी चाहिए।

खेर, गुनगुन थानवी ने बाबा नागार्जुन को मानसिक तौर पर बीमार बताया है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए सालों पहले अपने साथ घटी एक घटना साझा की है।

बाबा नागार्जुन

यह लिखा है गुनगुन थानवी ने

नागार्जुन आप सबके प्रिय बाबा तो बहुत बड़े आदमी थे। देश के इतने बड़े कवि भी इस तरीके से गर्त में गिर सकते हैं। एक ऐसा व्यक्ति है जिसके साथ जुड़ने के लिए शायद भारत देश की कई महिलाएं सहर्ष राज़ी होती जाती।

महिलाओं के साथ उनके संबंध कैसे थे मुझे नहीं मालूम मैं जानना भी नहीं चाहती। परंतु वो मेरे साथ क्या कर रहे थे? 7 साल की बच्ची के साथ? बहुबहुत बड़े आदमी थे, शायद इंसान ऐसे ही बनता है बडा। वरना मामूली लोग रेप करते हैं पकड़े जाते हैं मार दिए जाते हैं और बड़े लोग आपके ही घर में घुसकर आप की ही रोटियां खाकर आपकी ही बेटियों को खा जाते हैं।

श्री रमेश थानवी और श्रीमती उर्मिला दोनों ने भरोसा किया था और यबह बड़ा आदमी उन्हीं की बच्ची को ज़िंदगी भर का डर भेंट में देकर चला गया। डर मेरे जीवन का एक बड़ा भाव है न जाने में किन किन चीज़ों से डरती हूं, ना जाने कौन कौन लोग मुझे डरा जाते हैं शायद कोई सुनना पसंद नहीं करेगा और न ही कोई पूछना पसंद करेगा कि यह डर कैसा है।

मैं रोज़ इस डर से झगड़ती हूं ,कब कब और कैसे कैसे बेवजह डर जाती हूं इसका मेरे पास हिसाब भी नहीं।

नागार्जुन का नाम सुनकर मैं फिर से डर गई थी

गुनगुन थानवी अपने पोस्ट में आगे लिखती हैं,

कुछ रोज़ पहले की बात है एक दोस्त को मैं नेरूदा की कविता सुना रही थी। कविता के जवाब में दोस्त भी कविता सुनाने लगा। उसने सुंदर- सी कविता पढ़ी। वो कविता पिता के मन में बसी ममता को दर्शाती थी। सरल और सहज थी। खत्म होते ही मेरा दोस्त बोला कविता नागार्जुन की है। नागार्जुन का नाम सुनकर मैं फिर से डर गई थी। जहां बैठी थी वहीं बैठे रह गई।

कितनी बार नागार्जुन। जन्मदिन से लेकर मरणदिन, किताबों से लेकर साहित्यिक चर्चाओं और फेसबुक, हर जगह तो रोज़ ही चले आते हैं हमारे देश के नागार्जुन बाबा। जब भी मैं यह नाम सुनती हूं, तो मेरी सारी इंद्रियां जैसे सुप्त अवस्था में चली जाती हैं। मेरे भीतर सिर्फ क्रोध रह जाता है।

लोग कहते हैं कि बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले मानसिक रूप से बीमार होते हैं। सवाल आज यह हैं कि क्या हमारे देश के इतने बड़े कवि नागार्जुन भी बीमार थे? मुझे नहीं लगता कि वो बीमार थे। मेरी समझ से अगर कोई पूछे तो वो तो बहुत शातिर थे।

बाबा को मेरे पापा घर ले आए थे। पापा उन्हें बहुत प्यार और समान देते और मेरी मम्मी उनके नकली अनुशासन का पूरी गंभीरता से पालन करती रहीं। इस व्यक्ति ने हमारे घर में कर्फ्यू लगा दिया था।

गलती मेरे मां- पापा की थी जो ऐसे मुफ्तखोर को अपने घर में रखकर उसकी सेवा करते रहे। वह बड़े आदमी थे लेकिन क्या इंसान बड़ा आदमी ऐसे ही बनता है? रेप करने वाले लोग तो शायद बहुत मामूली होते हैं और देखिए बड़े लोग आप ही के घर में घुसकर, आप ही का खाकर, आप ही पर रोब जमाकर आप ही की बेटियों को खा जाते हैं ।

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