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अमेरिका-ईरान विवाद में रणक्षेत्र बना इराक किसके पक्ष में जाएगा?

पिछले एक हफ्ते से विश्व की सारी आंखें मध्य एशिया पर जाकर टिक गई हैं, जहां से उठता धुआं पूरी दुनिया में तीसरे विश्वयुद्ध की बू फैला रहा है। मध्य एशिया के दो प्रमुख पड़ोसी देश, ईरान और इराक इन सारी चर्चाओं का केंद्र हैं।

इस केंद्र से निकलती एक रेखा सीधे अमेरिका तक पहुंचती है। इन तीनों देशों के रिश्ते और अभी की स्थिति को समझने के लिए हमें घड़ी की सुइयों को कुछ वर्ष पीछे घुमाना होगा।

राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, व्हाईट हाउस में। फोटो साभार – ट्विटर The White House

क्या कहते हैं रिश्ते?

ईरान और इराक दोनों इस्लामिक गणराज्य हैं। ईरान पूरी तरह से शिया शासित देश है, जबकि इराक भी एक शिया शासित देश है लेकिन वहां लगभग एक चौथाई जनसंख्या सुन्नी मुस्लिमों की है, जिसके कारण वहां शिया-सुन्नी टकराव होते रहते हैं।

वर्ष 2003 से पहले इराक में सुन्नियों का राज था। 1979 से 2003 तक सद्दाम हुसैन ने इराक पर राज किया लेकिन वर्ष 2003 में अमेरिका के हमले के बाद सद्दाम हुसैन को गद्दी छोड़नी पड़ी और उसके बाद से शिया मुसलमानों के बहुसंख्यक होने के कारण वहां शिया नेताओं का ही वर्चस्व रहा।

ईरान हमेशा से इराक़ के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश में रहा, कारण कई थे लेकिन इराक की भौगोलिक स्थिति और वहां शिया मुस्लिमों का बहुसंख्यक होना मुख्य कारण थे।

बगदाद में सद्दाम हुसैन की मूर्ति ढहाते हुए आंदोलनकारी, फोटो साभार – Flickr

दृश्यों में अमेरिका कब आया?

9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने आतंक के खिलाफ एक युद्ध छेड़ दिया, जिसमें उनका मुख्य निशाना हथियारों से लैस सुन्नी चरमपंथी समूह थे।

वर्ष 2003 में इसी ‘वॉर ऑन टेरर’ ने इराक में ‘इराक युद्ध’ को जन्म दिया जिसमें सद्दाम हुसैन को हार माननी पड़ी। इसके बाद इराक में नई गणतांत्रिक सरकार का गठन किया गया। उस वक्त सरकार विरोधी ताकतें वहां हावी थीं, जिनसे निपटने के लिए अमेरिका ने अपने सैनिक इराक में भी स्थापित कर दिए, जो 2010 तक इराक की ज़मीन पर इराकी सेना की मदद में कार्य करते रहे।

इसी बीच अमेरिका ने इराक की राजधानी बगदाद में विश्व का सबसे बड़ा दूतावास बना लिया, जो कि खुद में एक छोटा सा शहर है। वर्ष 2010 के बाद अमेरिका, इराक में एक बार फिर 2014 में सक्रिय हुआ। जब उसने वहां आईएसआईएस (ISIS) के खात्मे के लिए अपने हवाई जहाज़ों की मदद से उनके ठिकानों पर हमले किए जिससे आईएसआईएस (ISIS) की कमर टूट गई।

वर्तमान स्थिति की पटकथा

इराक में आईएसआईएस (ISIS) के खात्मे के लिए जो जंग छेड़ी गई उसके मुख्यतः तीन नायक थे,

  1.  इराक़ी सेना
  2.  अमेरिकी सेना
  3.  हश्द-अल-शाबी

उपरोक्त तीसरा नायक हश्द-अल-शाबी ही अभी की स्थिति का एक मुख्य किरदार है।

हश्द-अल-शाबी ईरान समर्थित एक इराक प्रायोजित सशस्त्र संगठन है, जिसे PMF (Popular Mobilization Force) के नाम से भी जाना जाता है। PMF के लड़ाके जिन्हें मिलिशिया कहा जाता है, उन्होंने इस लड़ाई में इराक के लिए अहम भूमिका निभाई।

ईरान ने इसी संगठन के माध्यम से आईएसआईएस (ISIS) के खिलाफ युद्ध में इराक का साथ दिया था। इन सारी शक्तियों ने एकसाथ मिल कर आईएसआईएस को इराक से लगभग खत्म कर दिया। इसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच इराक में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई। 

हमदनिएह के पश्चिम में स्थित शिया मिलिशिया

अमेरिका इराक में आतंक के नाश के लिए और इराकी सैनिकों को प्रशिक्षण देने के लिए, हज़ारों अमेरिकी सैनिक, हमेशा इराक में तैनात रखता है और यब बात ईरान के लिए नागवार है।

इस बीच इराक के  संगठन PMF ने भी अमेरिकी दूतावास को बंद करने की बात की और धीरे-धीरे हिंसक होते चले गए क्योंकि,

पिछले तीन महीनों से PMF इराक में रह रहे अमेरिकी सैन्य अधिकारियों पर हमले करता आ रहा है, इन्हीं हमलों ने वर्तमान स्थिति की पटकथा लिखनी शुरू की।

हालिया घटनाक्रम

पिछले 10 दिनों से स्थितियों में तेज़ी से बदलाव हुआ है।

27 दिसंबर 2019

27 दिसंबर 2019 को ईराक के शहर किरकुक स्थित एक सैन्य ठिकाने पर हमला हुआ, जहां इराकी और अमेरिकी सैनिक दोनों थे। इस हमले में अमेरिका के एक सैन्य सदस्य की मौत हो गई और कई अमेरिकी और इराकी सैनिक घायल हो गए।

अमेरिकी अधिकारियों ने इस हमले के लिए PMF के एक सदस्य संगठन ‘कतिब हिज़्बुल्लाह’ को ज़िम्मेदार मानते हुए कहा कि हिज़्बुल्लाह के संबंध ईरान के कुद्स सेनाओं के साथ हैं।

यहां यह जानना ज़रूरी है कि अमेरिका ने ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड को एक आतंकी संगठन घोषित कर रखा है, कुद्स सेना भी इसी रेवोल्यूशनरी गार्ड का एक अंग है।

29 दिसंबर 2019

जवाबी करवाई करते हुए 29 दिसंबर 2019 को अमेरिका ने कातिब हिज़्बुल्लाह के मुख्य कार्यालय पर बम गिराए जिसमें 25 हिज़्बुल्लाह के लड़ाके मारे गए और 55 घायल हो गए।

इस हमले के बारे में PMF ने कहा कि अमेरिका हमारे ही देश में रहकर हमपर हमले कर रहा है। इस हमले के विरोध में PMF के समर्थक 31 दिसंबर 2019 को बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास के पास विरोध के लिए जमा हुए।

यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी दूतावास इराक़ के सबसे सुरक्षित जगह जिसे ‘ग्रीन ज़ोन’ कहा जाता है वहां स्थित है। इस इलाके में बिना इराकी सेना की अनुमति प्रवेश नहीं किया जा सकता है, बावजूद इसके PMF समर्थक उस क्षेत्र में प्रवेश कर गए। धीरे धीरे इनका विरोध हिंसक होने लगा।

अमेरिका विरोधी नारे लगाते हुए लोग अमेरिकी दूतावास में दाखिल हो गए और रिसेप्शन क्षेत्र को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जिसकी तस्वीरें इंटरनेट पर मौजूद हैं। हालांकि इस हमले में किसी के घायल होने की खबर नहीं है।

1 जनवरी 2020

अगले दिन 1 जनवरी 2020 को PMF ने अपने समर्थकों को वापस बुला लिया और कहा कि उनका मकसद पूरा हो गया है, वो सरकार तक अपनी बात पहुंचना चाहते थे।

इस हमले के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान को प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार माना और कहा कि उचित कार्यवाही की जाएगी।
अमेरिका ने जवाबी कार्यवाही 3 जनवरी 2020 को की जिसमें उसने ईरान के क़ुद्स सेना के एक आला अधिकारी कासिम सुलेमानी को एक ड्रोन हमले में मार दिया।

अमरीका ने कहा कि ‘सुलेमानी ही अमेरिकी अधिकारियों पर हो रहे हमले के लिए जिम्मेदार था। किरकुक में हुआ हमला भी सुलेमानी की निगरानी में हुआ था। हमनें उसे ढूंढ निकाला और मार गिराया।’ ईरान ने सुलेमानी की मौत पर कड़ी आपत्ति ज़ाहिर करते हुए बहुत बड़े बदले की कार्यवाही की बात कही है।

4 जनवरी 2020

4 जनवरी 2020 को फिर से बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमले हुए, हमलावरों से दूतावास पर मोर्टार दागे। हालांकि इस हमले की ज़िम्मेदारी किसी भी संगठन ने नहीं ली है।

कासिम सुलेमानी, ईरान मेजर जनरल। फोटो साभार- ट्विटर

5 जनवरी 2020

5 जनवरी 2020 को सुलेमानी को पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ ईरान में विदाई दी गई। इसके साथ ही बयानों और धमकियों की बमबारी भी जारी है। ट्रम्प ने ईरान को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि एक भी अमेरिकी नागरिक पर ईरान हमला करता है तो ईरान के 52 जगहों पर अमेरिका हमला करने से बिल्कुल परहेज़ नहीं करेगा।

इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य की किसी भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। यदि यह परिस्थिति एक युद्ध के रूप में बदलती है तो पूरा विश्व इससे प्रभावित होगा। इसमें यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वर्तमान में रणक्षेत्र बना इराक इन दो देशों में किसके साथ जाता है।

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