Site icon Youth Ki Awaaz

आखिर क्यों आदमखोर हो रहे हैं सुंदरबन के बाघ?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा हेरिटेज साइट के रूप में चिन्हित सुंदरबन आज भी बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। खासकर, सुंदरबन घूमने जाने वाले वहां के बंगाल बाघ को देखने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं।

लेकिन इन आकर्षणों के परे वहां एक डरावनी सच्चाई भी बसती है। वह सच्चाई है ‘बाघ विधवा’ यानी ‘टाइगर विडोज़’ की। टाइगर विडोज़ वे महिलाएं हैं, जिनके पति बाघों के शिकार हो चुके हैं और अब वे महिलाएं विधवाओं का जीवन व्यतीत कर रही हैं। विशाल सुंदरबन भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग 20,000 किमी तक फैला हुआ है।

पश्चिम बंगाल का बिजॉयनगर, सुंदरबन मैंग्रोव क्षेत्र में बसी सबसे खतरनाक मानव बस्तियों में से एक है, जो 102 द्वीपों तक फैला हुआ है और भारत में 4,000 से अधिक वर्ग किमी को कवर करता है। जंगल से निकटता के कारण गाँव में मगरमच्छों और बाघों का लगातार खतरा रहता बना रहता है, यह गॉंव जल स्तर से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

सुंदरबन बाली द्वीप पर पिछले 15 वर्षों में बाघों और मगरमच्छों के हमलों में 500 लोग मारे गए हैं।

मरने वाले लोगों में मुख्यत: वे लोग शामिल हैं, जो अपने भरण-पोषण के लिए जंगलों और नदियों पर निर्भर हैं (जैसे शहद निकालने, मछली पकड़ने जैसी प्रक्रियाएं) और इस दौरान वे बाघों या मगरमच्छों के शिकार हो जाते हैं।

टाइगर विडोज़। फोटो सोर्स- TijanaLilic

जब ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं, तो हमें लगता है कि सारी गलती बाघों की होगी, जबकि सच्चाई इससे उलट है। इंसान ही खुद का दुश्मन बनता जा रहा है। औद्योगिकरण के बहाव में हम इतना बहते जा रहे हैं कि हम अपना जीवन ही नष्ट कर रहे हैं, ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बन रहे हैं और इसका असर पूरे इको सिस्टम पर देखने को मिल रहा है। इसी का एक उदाहरण सुंदरवन भी है।

आइए जानते हैं कि क्यों बाघ बना रहे हैं मनुष्य को अपना शिकार

इस बात को समझने के लिए पहले यह समझते हैं कि सुंदरबन में जलवायु परिवर्तन का किस तरह असर हो रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग, हिमालय पर्वतमाला में गंगोत्री ग्लेशियर के क्षरण की वजह बन रहा है। इसका परिणाम फरक्का बैराज और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के रूप में देखने को मिल रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग की एक बड़ी वजह कार्बन उत्सर्जन है, जिससे लगातार पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है।

सुंदरबन। फोटो सोर्स- flickr

जैसे-जैसे मानव आबादी का विस्तार हुआ है, कई विकासशील देशों में उत्पादक भूमि की कमी के कारण कृषि और जलीय कृषि उत्पादन के लिए मैंग्रोव के बड़े क्षेत्रों में कब्ज़ा बढ़ा है। साथ ही अन्य विकास के कार्यों के लिए भी इन मैंग्रोव क्षेत्रों में हस्तक्षेप धड़ल्ले से हुआ है। कुछ ऐसा ही प्रभाव सुंदरबन इलाकों में भी देखने को मिला है।

बांग्लादेश और भारत के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में होने के कारण जलवायु परिवर्तन के विभिन्न परिणाम यहां देखने को मिलते हैं, जैसे-तापमान और वर्षा में वृद्धि। इसके साथ ही मौसम में भयावह बदलाव की वजह से होने वाले परिणाम जैसे- बाढ़, चक्रवात और सूखे जैसी स्थिति जंगली इलाकों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।

सुंदरबन क्षेत्र में भी इन प्रभावों को देखा जा सकता है। स्थानीय लोगों के अनुसार,

इस बार सुंदरबन इलाके में पिछले साल बारिश तय समय पर ना आकर कुछ महीने की देरी से आई है, जिससे कई पेड़-पौधों की प्रकृति में भी अंतर देखने को मिला है।

कई अध्ययनों से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवात काफी हद तक मैंग्रोव जंगलों को नष्ट कर देते हैं। उदाहरण के लिए,

हाल के दिनों में, cyclone Sidr ने सुंदरबन के एक तिहाई हिस्से को नष्ट कर दिया था।

सुंरदबन में खारेपन की वृद्धि

सुंदरबन में समुद्री जलस्तर में वृद्धि से वहां के इको सिस्टम में खारेपन की वृद्धि हो रही है, समुद्री जलस्तर में जितनी वृद्धि होगी, खारेपन में भी उतनी वृद्धि होगी। इससे कई तरह के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें सुंदरी पेड़ के साथ ही अन्य कई पेड़-पौधों पर नकारात्मक प्रभाव हुआ है। इसके साथ ही इसने वहां के जलीय जीव-जंतु को भी प्रभावित किया है।

सुंदरबन में पानी में खारापन नदी के ऊपर से आने वाले फ्रेश वॉटर की मात्रा पर निर्भर करता। सुंदरबन के अंदर खारापन की मात्रा में परिवर्तन का वार्षिक पैटर्न भी ऊपर से आने वाले फेश वॉटर के प्रवाह के परिवर्तन के साथ परिवर्तित होता है।

जलवायु परिवर्तन का टाइगर विडोज़ से कनेक्शन

  1. पानी में बढ़ रहे खारेपन की वजह से मछलियों की मात्रा कम हो रही है, जिसकी वजह से मछली पालन पर निर्भर लोगों को मीठे पानी की तलाश में जंगल के अंदरूनी इलाके में जाना पड़ता है, मतलब बाघों के नज़दीक। परिणामस्वरूप वे बाघों के शिकार हो जाते हैं।
  2. जलस्तर बढ़ने से पानी में बढ़ रहा खारापन कई जीव-जंतुओं के घरों और भोजन को भी नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे वे मनुष्य के इलाकों में भी शिफ्ट हो रहे हैं।

बाघों और मनुष्यों के बीच के इस द्वंद की एक और बड़ी वजह जंगली इलाकों में मनुष्यों का हस्तक्षेप और अंधाधुध पेड़ों की कटाई भी है।

फोटो सोर्स- https://pixabay.com/

अब मानव ने जंगली इलाकों में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है। मनुष्य जंगलों को काटकर अपना निवास स्थान बनाने लगे हैं। टूरिस्ट स्पॉट के नाम पर जंगलों के इलाके में घेराव करके मनुष्यों के रहने के इंतज़ाम किए जा रहे हैं। अब यहां वही बात हो गई कि पहले हम उनके घरों पर कब्ज़ा जमाएंगे, उनके घर, भोजन पर कब्ज़ा करेंगे और फिर हम उनपर ही इल्ज़ाम लगाएंगे।

कार्बन उत्सर्जन में तीसरे नंबर पर भारत

हम जानते हैं कि भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्पादन करने वाला देश है, इसी तरह से भारत भी धरती के बढ़ते तापमान में अपना योगदान दे रहा है। वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की विस्तृत कार्य योजना संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण निकाय (यूएनएफसीसीसी) को हमारी सरकार ने भले ही आखिरी वक्त में सौंपी हो पर इसके मसौदे से जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने की हमारी प्रतिबद्धता का पता चलता है।

भारत के मसौदे में जो तीन प्रमुख घोषणाएं हैं, उसमें एक यह है कि अगले पंद्रह वर्षों में यहां ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 2005 के स्तर से 33 से 35 प्रतिशत कम किया जाएगा। यह पिछले लक्ष्य का ही विस्तार है, इससे पहले जब उत्सर्जन पर वैश्विक समझौता होते-होते रह गया था, तब भारत ने 2020 तक 2005 के स्तर से बीस से पच्चीस फीसदी उत्सर्जन कम करने की ना सिर्फ प्रतिबद्धता जताई थी, बल्कि 2010 तक इसमें बारह फीसदी की कमी भी आई थी।

वर्ष 1850 से लेकर अब तक भारत के सालाना तापमान में करीब 1.0 सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। वर्ल्ड बैंक द्वारा किए गए एक अध्ययन के‌ मुताबिक, 2050 तक भारत को 1.2 ट्रिलियन डॉलर का GDP घाटा हो सकता है। इसके‌ अलावा, अगर जलवायु परिवर्तन से पहले के हालातों से तुलना करें, तो 2050 तक उसकी आधी आबादी के‌ जीवन स्तर में और गिरावट देखी जा सकती है। अध्ययन के अनुसार, इस नुकसान का कारण बढ़ता तापमान और मौनसून में होने वाली बारिश का बार-बार बदलता मिजाज़ होगा।

आइए जानते हैं किस तरह से हम कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं-

1. सौर व पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्त्रोतों के इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन काफी हद तक कम किया जा सकता है।
2. फ्लोरेसेंट बल्बों से हम कार्बन पद चिन्हों को कम कर सकते हैं।
3. जन परिवहन का और कार पूलिंग करना।
4. सामुदायिक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने वाले व्यवहारिक कार्य करें।

यदि हमने अभी ठोस कदम नहीं उठाएं तो निश्चित रूप से हम अपने आपको ही खत्म पाएंगे। पेरिस समझौते पर भारत को जल्द-से-जल्द काम करना होगा, मात्र हस्ताक्षर करने से बात नहीं बनेगी, जो वादा किया गया है वह पूरा करना होगा, जिससे कि भारत कम-से-कम कार्बन उत्सर्जन करें।

This post has been written by a YKA Climate Correspondent as part of #WhyOnEarth. Join the conversation by adding a post here.
Exit mobile version