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क्या हमारे जैसे अच्छे दिन शरणार्थियों को भी मिल पाएंगे?

कुछ दिनों से उन्होंने हव्वा खड़ा कर रखा है, जिन्हें अभी हाल फिलहाल में, दूसरे देशों में बसे नागरिकों के ऊपर हुए उत्पीड़न से पीड़ा हुई है। वे हिंदुस्तान को उन सबकी धर्मशाला बनाने के पक्ष में भी है, बस वह शख्स मुसलमान नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे प्रताड़ित नहीं हो सकते।

काफी नेक ख्याल है लेकिन क्या किसी ने सोचा कि जो सवा सौ करोड़ भारतीय, एक अलग प्रताड़ना झेल रहे हैं, उसका क्या समाधान होगा?

वह प्रताड़ना

बहुत सारी प्रताड़नाएं हैं, जो मीडिया के छोटे से डब्बे में समा नहीं सकते, लेकिन प्रताड़ना तो है और इन प्रताड़नाओं का क्या हल है?

म्यांमार से बॉर्डर पार करके आए हुए रोहिंग्या शरणार्थी, फोटो साभार- getty images

क्या इस सरकार के पास हल है?

हल किसके पास है? क्या इस सरकार के पास है जिसे जनता ने इस वादे के साथ चुना था कि

अगर इस सरकार के पास है तो फिर कहां है वह विकास? कहां है अच्छे दिन?

जनता भी कम सुस्त नहीं

नागरिकता तो कहीं भागी नहीं जा रही, लेकिन अर्थव्यवस्था ज़रूर लुढ़कती जा रही है। बहुत से मापदण्डों पर आज पड़ोसी मुल्क हमसे आगे हो गए और सरकार को शर्म तक नहीं आई और ना ही उस मरी हुई जनता को जिन्होंने ऐसे नमूनों को सत्ता दी और फिर सवाल करना भूल गए।

सोचिये, कितनी अजीब बात है कि हम सवाल नहीं कर रहे हैं। ऐसी मरी जनता ही एक फूहड़ और बोगस लोकतंत्र का रास्ता खोलती है और फिर उसे कोसती है।

सत्ताधारी पक्ष राजनीति नहीं करेगा तो कौन करेगा? सोचना आपको है, जनता आप हैं, राजनीतिक रोटियां तो आपकी खोपड़ी के तवे पर सिक रही है, सिकती रहेंगी।

आप खुद सोचिये कि उनका रथ रोककर उनसे सवाल करना है या उस बारात में बिना चप्पल और फटे कुर्ते में घोड़ी के आगे बेताहाशा नाचना है। फैसला कीजिये और जल्दी कीजिये। जय हिंद।

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