21 दिसंबर की रात राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ट्वीट करते हैं कि वह 22 दिसंबर को CAA और NRC के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करेंगे और साथ ही यह भी लिखते हैं कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इंटरनेट सुविधा बंद रहेगी।
ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या सीएम को प्रदर्शन में जन-सहयोग नहीं चाहिए? हमें यह भी समझना होगा कि बात-बात पर इंटरनेट बंद करने की वजह से ही हम इस मामले में विश्व में पहले नबंर पर हैं। इसका औचित्य क्या है, यह समझ से परे है।
मेरे दोस्तों को पुलिस ने प्रदर्शन करने से रोक दिया
खैर, 22 दिसंबर को मेरे कुछ दोस्तों ने अल्बर्ट हॉल जयपुर के सामने शांतिपूर्ण विरोध करना चाहा। ये लोग अपने पोस्टर्स पर कोटेशन लिख रहे थे। उस समय मेरे सिर्फ दो साथी वहां मौजूद थे। 22 दिसंबर को संभावित प्रोटेस्ट वाले दिन जयपुर में इंटरनेट बंद था और लो फ्लोर बस सुविधा भी बंद कर दी गई थी।
इस परिस्तिथि में मेरे दोस्तों का अपने दूसरे दोस्तों के साथ संपर्क नहीं हो पा रहा था। आवाजाही के सरल व सुगम साधनों को बंद कर देने के पीछे सरकार की क्या मंशा थी, यह समझ से परे है।
बहरहाल, जब दोस्त पोस्टर्स तैयार कर रहे थे तभी वहां पुलिसवालों के एक दल द्वारा दोनों दोस्तों से पूछा जाता है, “क्या कर रहे हो भई?” उन्होंने हल्के-फुल्के लहज़े में जवाब दिया,
हम यहां बस इन पोस्टर्स के साथ फोटोग्राफी करके चले जाएंगे।
पुलिस वालों ने कहा, “यहां से चले जाओ। हम यह सब नहीं करने देंगे।” तभी मेरे दोस्त ने देखा कि उनके कंधे पर RPS लिखा था और वे बोल रहे थे, “हम तो बिहार से हैं। डीएसपी से परमिशन लेकर आओ।” पुलिसवालों ने झूठ कह दिया कि हम राजस्थान पुलिस नहीं हैं और दोस्तों को वहां से तुरन्त जाने को कहा। यहां तक कि दो मिनट भी वहां ठहरने से मना कर दिया। चूंकि वे संख्या में दो ही थे और दोस्तों से संपर्क भी टूटा हुआ था। इस वजह से उन्हें वहां से लौटना पड़ा।
काँग्रेस ने आम लोगों के अधिकारों का हनन किया है
वैसे ये संभावित प्रोटेस्ट ना होकर मुख्यमंत्री का प्रोटेस्ट था। मुख्यमंत्री ना जाने कैसे लोगों की भागीदारी की उम्मीद कर रहे थे। दूर-दराज़ से बस ज़रूर भरकर आ रही थी।वोल्टेयर का एक कोटेशन है, “हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत ना हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा।”
इस कोटेशन से हमारी वर्तमान सरकार और प्रशासन का दूर-दूर तक वास्ता ही नहीं है। इंटरनेट बंद करके काँग्रेस ने आम लोगों के अधिकारों का हनन ही किया है। इसे मानसिक दिवालियापन नहीं तो और क्या कहेंगे?
हमारी सरकारें आखिर विरोध से इतनी डरती क्यों हैं? उन्हें ट्रांसपोर्ट और इंटरनेट बंद करवाने तक की नौबत आ जाती है। संविधान हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी देने के साथ-साथ सुरक्षा का अधिकार भी देता है। वर्तमान राजनीतिक माहौल में कम-से-कम इनका भयंकर रूप से हनन तो हुआ ही है।
पुलिस जिनका काम सुरक्षा देना है, वे किस प्रकार अपनी जनता का आत्मबल तोड़ती है, उसके कई उदाहरण आप इन दिनों देख ही रहे हैं। राजस्थान शुरू से सामंतवादी सोच का जीता-जागता उदाहरण रहा है।
हमारा संविधान आज भी इस राज्य के लोगों के ज़हन से जाति व्यवस्था को निकाल नहीं पाया है। स्कूल-कॉलेज और बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में आपको लिबरल सोच दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलेगी। ऐसे में काँग्रेस की सरकार का बंद मुंह भी पॉलिटिकल करप्शन का नायाब नमूना है। यह काल राजनीति में ऑप्शन्स के अकाल का काल है, जहां मुखरता और तर्क को तरह-तरह से ट्रोल करना चलन में है।