अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:।
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म रक्षार्थ हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है।
गाँधीजी द्वारा उपर्युक्त श्लोक को सिर्फ आधा ही बताया गया था। यह श्लोक जैसे लिखा है जब अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपने वतन या नारी सम्मान में की गयी हिंसा भी श्रेष्ठ है।
भारत आज से नहीं द्वापर, त्रेता और कलयुग से अहिंसा के साथ-साथ उन युद्ध को भी मान्यता देता है, जो अन्याय के खिलाफ है। जो असत्य पर सत्य के विजय के लिए किया गया हो।
गाँधी जी की अंहिसा
अब बात करते है गाँधीजी की अंहिसा की। यह सरासर गलत है कि सिर्फ अहिंसा और आंदोलन के ज़रिये ही आज़ादी मिली। आज़ादी या नवसर्जन या नवनिर्माण सदैव खून मांगता है। उसके लिए कई लोगो को खून और पसीना बहाना पड़ता है। भारत की आज़ादी में भी यही हुआ। 1857 के संग्राम से लेकर नेताजी की भारतीय राष्ट्रीय सेना के सैनिको के बलिदान से भरा पड़ा है।
कई बड़े-बड़े नेता, युवा और नारियो ने अपने प्राण की आहुति दी है स्वतंत्र संग्राम में। तब जाके कही ब्रिटिशरो की नीव हिलने लगी। द्रितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड की आर्थिक हालत खस्ती होने लगी और भारत में भी कुछ न बचा था लूटने को। उनको एक चहेरा चाहिए था जो सर्व स्वीकृत हो और जिसको लोग सुन सके।
कई नेता तो पहले ही प्राण त्याग चुके थे स्वतंत्रता संग्राम में। गाँधी उसमे सही पाए गए। और ब्रिटिशर्स ने उनको तव्वजो देके हरेक वार्तालाप में उन्हें अग्रेसर रखा और आज़ादी सिर्फ गाँधी के अहिंसक आंदोलन से मिली यह बात फैलाई गयी। सच यह है आज़ादी के लिए हज़ारो स्वतंत्रता संग्रामियों के सर्वोच्च बलिदान का नतीजा है।
अहिंसा से आज़ादी नहीं मिली। उसमे कई लोगो का खून शामिल है। तो अहिंसा से आज़ादी मिली यह एक मिथ्या है।
अहिंसा की बात करना एक कायरता या मूर्खता
आज के वर्तमान समय में अहिंसा की बात करना एक कायरता या मूर्खता होगी। जहां आतंकवाद अपने चरम पर है। जिहाद के नाम पर आये दिन कत्ले आम हो रहा है, उनके सामने अहिंसा की बात करना मतलब शेर के आगे गाय को भेजना। वह बन्दूक लेकर खड़े है और हम अहिंसा की बात करें?
दूसरी बात चीन और पाकिस्तान जैसे देश से भारत के भू-भाग को बचाने के लिए हमे युद्ध के लिए तैयार रहना ही होगा। वह अहिंसा की बाते काम में नहीं आती। हमने देख लिए शांतिवार्ता का परिणाम। जब जब शांति वार्ता की गई तब तब धोखा मिला। और अंत में युद्ध करना ही पड़ा।
भारत जैसे बताया निरर्थक हिंसा को मान्यता नहीं देता। वही देश, धर्म, संस्कृति और नारी की रक्षा के लिए किये गए युद्ध या हिंसा को श्रेष्ठ मानता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी अहिंसा में मानते थे लेकिन उन्होंने नारी रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया और उसे मारा। यह अन्याय पर न्याय की विजय थी। महाभारत भी उसमे से एक है।
अंत में अहिंसा कुछ हद तक सही है पर हर बार वह सार्थक रहेगी यह सही नहीं है। भारत इस निति में मानता है की वह किसी पे पहले हमला नहीं करता। लेकिन अगर कोई हमला करे तो उसे जवाब भी उसी भाषा में देता है।