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नोबेल पुरस्कार से सम्‍मानित श्री कैलाश सत्‍यार्थी अपने प्रशंसक से मिलने जब उनके घर पहुंचे

किसी भी आंदोलन के नायक की पहचान यह होती है कि वे अपने हरेक कार्यकर्ता और प्रशंसक को ना सिर्फ चेहरे से पहचानते हैं, बल्कि उनके नाम भी याद रखते हैं। वे उनके सुख-दुख में शरीक होते हैं। नायक या नेता कितने भी व्‍यस्‍त क्‍यों नहीं हो, अपने प्रशंसकों की चाहत को पूरा करने के लिए समय निकाल ही लेते हैं।

महात्‍मा गाँधी के बारे में कहा जाता है कि वे हरेक पत्र का जवाब दिया करते थे और वह भी अपनी हैंडराइटिंग में। कोई प्रशंसक यदि उनसे मिलने की इच्‍छा ज़ाहिर करता, तो चुपके से उनसे मिलने वे उनके घर पहुंच जाया करते। इसके पीछे उनका उद्देश्‍य यही होता था कि कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों की हौसला अफज़ाई होती रहे।

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित श्री कैलाश सत्‍यार्थी के व्‍यक्तित्‍व में भी हम इन गुणों का समावेश पाते हैं। श्री सत्‍यार्थी की इस खूबी की एक झलक प्रस्‍तुत कर रहे हैं शिव कुमार शर्मा।

सत्यार्थी दूसरे सेलिब्रिटीज़ से बिल्कुल नहीं

श्री कैलाश सत्यार्थी इंदौर के एक जाने-माने स्‍कूल में बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे। इंदौर के उस सुप्रसिद्ध स्कूल में राउंड स्‍क्‍वायर इंटरनेशनल कॉफ्रेंस आयोजित किया गया था, जिसमें दुनियाभर से तकरीबन 20 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

इंदौर प्रवास के दौरान श्री सत्यार्थी अपने भतीजे दिनेश शर्मा के घर पर भी उनसे मिलने गए। वहां पर मैंने श्री सत्यार्थी के व्यक्तित्व का एक और प्रेरक पहलू देखा। मैं श्री सत्यार्थी के इस गुण को देखकर आश्‍चर्यचकित तो हुआ ही, साथ ही उनके प्रति मेरी धारणा में यह बदलाव भी आया कि श्री सत्यार्थी दूसरे सेलिब्रिटीज़ से बिलकुल अलग हैं।

यह मेरा अनुभव है कि प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने अहंकार से बाहर नहीं निकल पाते तथा वे अपने आलीशान दफ्तरों में बैठकर आम लोगों को घंटों इंतज़ार करवाते हैं और फिर किसी देवदूत या महाराजा की तरह अपने-आप को प्रस्तुत करते हैं। लेकिन श्री सत्यार्थी का व्यवहार अपने प्रशंसकों के प्रति निराला है, इसका मैं साक्षी बना। श्री सत्यार्थी अपने दैनिक कार्यक्रमों को निपटाकर रात्रि 9 बजे अपने भतीजे दिनेश शर्मा जी से मिलने उनके घर चले गए।

गाँधी जैसा मानती हैं उनकी प्रशंसक

दिनेश जी के पड़ोस में एक गाँधीवादी वृद्ध श्रीमती सरोज तिवारी व उनकी बेटी सुश्री विशाखा तिवारी रहती हैं। दोनों माँ-बेटी श्री सत्यार्थी के करुणा भाव से बहुत प्रभावित थीं। हालांकि सरोज जी ने अपनी सारी ज़िंदगी गाँधी जी के विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने में लगा दिया लेकिन वह गांधी जी के कभी दर्शन नहीं कर पाईं और अब इंदौर में सेवानिवृत्‍त जीवन व्यतीत कर रही हैं।

सरोज जी ने बताया कि वह गाँधी जी से तो नहीं मिल पाईं लेकिन श्री सत्यार्थी के दर्शन अगर उन्हें हो जाएं तो वह अपने को धन्‍य समझेंगी। जब दोनों माँ-बेटी को यह पता चला कि उनके पड़ोस के घर में सत्यार्थी जी पधारे हैं, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह उनसे मिलने की तैयारी करने लगीं।

उन्‍होंने तुरंत श्री सत्यार्थी के रिश्तेदार से फोन पर बात की तथा निवेदन किया कि कृपया उनको श्री सत्यार्थी से मिलवा दिया जाए। हम आपके बहुत आभारी रहेंगे। फोन पर जब यह बातचीत चल रही थी, श्री सत्यार्थी अपने रिश्तेदार के घर से निकलकर अपनी गाड़ी की तरफ जा भी रहे थे और पूरी बातचीत भी सुन रहे थे।

प्रशंसक के घर बिन बताए चल दिए

श्री सत्यार्थी के रिश्तेदार ने सरोज जी को बताया कि दद्दा तो निकल चुके हैं। माँ-बेटी बहुत निराश हुईं। मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगीं। गौरतलब है कि श्री सत्यार्थी को उनके सभी रिश्तेदार प्यार से ‘दद्दा’ कहकर बुलाते हैं। मुझे यह सुनकर हैरत हुई, श्री सत्यार्थी ने जब अपने रिश्तेदार से कहा कि यद्यपि हमको देर हो रही है, पर जब उनका घर रास्ते में ही वॉकिंग डिस्टेन्स पर है, तो हम उनसे मिलते चलते हैं। क्या फ़र्क पड़ जाएगा, गंतव्‍य स्‍थल पर हम दो मिनिट बाद ही पहुंचेंगे।

श्री सत्यार्थी अपने प्रशंसक के घर पर बिन बुलाए पहुंच गए। माँ-बेटी ने जब देखा कि स्‍वयं श्री सत्यार्थी ही उनसे मिलने के लिए पधार चुके हैं, तो उन दोनों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। खुशी के मारे उनके मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी। उन्‍होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिनको वे अपना आदर्श मानतीं हैं उनसे इतनी जल्दी ना केवल मुलाकात हो जाएगी, बल्कि वे उनके घर पर बिना सूचना के पहुंचकर उनकी बेटी को आशीर्वाद भी देंगे।

यहां इस बात का उल्‍लेख किए बिना नहीं रहा जा सकता कि श्री सत्‍यार्थी को दुनियाभर के हाई प्रोफाइल समारोह में बतौर मुख्‍य अतिथि, अध्‍यक्ष बनाने को उनके ऑफिस में वर्तमान में 50 हज़ार से भी अधिक आमंत्रण पत्र प्रतीक्षारत हैं। लेकिन उनको जब अपने प्रशंसक की इच्‍छा का मान रखने का भान हुआ, तो वे बिन बुलाए भी उनके घर पहुंच गए।

श्री सत्‍यार्थी के व्‍यक्तित्‍व को देखते हुए मुझे सहसा मुकेश का गाया हुआ वह गीत याद आ गया-‘जो भी प्‍यार से मिला, हम उसी के  हो लिए।‘

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(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)

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