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तीन डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है MP के गैरतगंज का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एक ओर जहां केंद्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य लाभ हेतु अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनके पूरे होने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं सरकारी अस्पतालों की लचर हालत समय-समय पर इन दावों की पोल खोलती रहती है।

गौरतलब है कि आयुष्मान भारत योजना, पोषण आहार योजना के साथ-साथ ना जाने कितनी योजनाओं का बखान सरकार द्वारा किया जाता है। इन योजनाओं को कागज़ी तौर पर सफल मानकर चला जाता है। इसकी बानगी अभी हाल ही में कोटा के जेके लोन अस्पताल में 100 से भी अधिक नवजात बच्चों की मौत के रूप में देखने को मिली।

सयुंक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले 5 साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या 10 लाख से भी ज़्यादा है। मध्यप्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुपोषण से हर दिन 92 बच्चों की मौत होती है।

नर्सों, तकनीकी सहायकों और मशीनों की कमी भी परेशानी की बड़ी वजह

मध्यप्रदेश के गैरतगंज अस्पताल में सुविधाओं की कमी। फोटो साभार- सृष्टि तिवारी

इन सबके बीच मध्यप्रदेश के रायसेन ज़िला अंतर्गत गैरतगंज प्रखंड का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मरीज़ों के लिए लगातार परेशानी की बड़ी वजह बनती जा रही है। डॉक्टरों, नर्सों, तकनीकी सहायकों और मशीनों के आभाव का दंश यह अस्पताल लगातार झेल रहा है।

अस्पताल की भव्य नवनिर्मित इमारत जहां आपको मूलभूत सुविधाओं के लिए आकर्षित करती हैं, वहीं दूसरी ओर उसकी खामियां आपको चिढ़ा रही होती हैं। डॉ. के 6 पदों की भरपाई तीन डॉक्टरों द्वारा ही की जा रही है।

उपकरणों का अभाव

जर्जर हालत में अस्पताल। फोटो साभार- सृष्टि तिवारी

एक्स-रे मशीन टेक्निशियंस के आभाव में किसी पुरानी इमारत की तरह जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है। जहां एक ओर विज्ञान ने उपचार की इतनी आधुनिक तकनीकें विकसित कर ली हैं, वहीं दूसरी ओर अल्ट्रासाउंड मशीन के मुंह देखने का सौभाग्य स्वास्थ्य केन्द्र को अब तक नहीं मिल पाया है।

यदि आपकी ऊंगली भी चोटिल (फ्रैक्चर) हो जाए तो आपको ज़िला अस्पताल ही जाना होगा, क्योंकि जब पर्याप्त संख्या में ड्रेसर ही उपलब्ध नहीं हैं तो फ्रैक्चर आदि की बात ही क्या की जाए?

चलिए इन मुद्दों को कुछ पल के लिए भूल जाते हैं मगर क्या किसी प्रसूता के उपचार को भी नज़रअंदाज़ कर दिया जाए? अस्पताल में भर्ती एक महिला, जिन्होंने कल ही एक बच्ची को जन्म दिया है, उन्होंने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि यहां कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं। यदि सामान्य डिलीवरी में कोई भी विसंगति पाई जाती है, तो आपको ज़िला के स्वास्थ्य केन्द्र में भेज दिया जाता है।

स्वास्थ्य प्रभारी डॉ. टी.आर.ठाकुर का कहना है,

हम खुद भी स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (PSC) द्वारा नियुक्त किए गए डॉ. तहसील स्तर पर आना नहीं चाहते हैं। स्त्री विशेषज्ञ नहीं हैं, इसलिए मशीनों का भी आभाव है।

स्वास्थ्य केंद्र में ना तो जगह की कमी है और ना ही मरीज़ों की फिर भी मूलभूत सुविधाओं की कमी लगातार बनी रहती है। अस्पताल भ्रमण के दौरान एक दिलचस्प चीज़ यह थी कि बुखार और खांसी आदि से पीड़ित मरीज़ों को अस्पताल प्रबंधन से कोई शिकायत नहीं है। उनका कहना है कि डॉक्टर जो दवाई लिखते हैं, उन्हें अस्पताल द्वारा आसानी से उपलब्ध हो जाता है।

दवाईयों की उपलब्धता पर क्या कहना है अस्पताल प्रबंधन का?

वहीं, जब किसी गंभीर रोग के लक्षण लेकर मरीज़ स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं, तब अस्पताल प्रबंधन द्वारा हाथ खड़े कर लिए जाते हैं। स्टोर अधिकारी का कहना है कि दवाईयों की पूर्ति मांग के अनुरूप पर्याप्त रूप से ज़िला द्वारा की जा रही है, जिनके आंकड़े ऑनलाईन भेजे जाते हैं।

बहरहाल, दवाईयां, लैब, स्वछता और खान-पान की सुविधाएं तब ही कारागार साबित हो सकती हैं, जब उन्हें सुचारू रूप से चलाने के लिए विशेषज्ञ होंगे। पिछले 10 वर्षों में ना ही शिवराज सरकार ने इस तस्वीर को बदलने की कोशिश की और ना ही 1 वर्ष पूरा कर लेने वाली कमलनाथ सरकार ने कोई विशेष पहल की।

ऐसा ना हो कि कोटा, इंदौर और मुज़्जफ्फरनगर जैसी त्रासदी हमें बस झकझोर कर रख दे और हम वापस अपनी गहरी नीदों में लौट जाएं।

नोट: सृष्टि तिवारी Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।

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