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क्या बिहारी युवा बिहार विधानसभा चुनाव में विकास को मुद्दा बना पाएंगे?

2020 के वार्षिक बजट के बाद, बिहार सबसे बड़ा मुद्दा होगा क्योंकि, वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। 2014 में जब पूरा देश, नरेंद्र मोदी की लहर में झूम रहा था, तब बिहार ने अपनी 40 लोकसभा सीटों में से 32 सीटें भाजपा गठबंधन को दिए थे, परंतु कुछ महीनों बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को विपक्ष में बिठाया।

मुख्यमंत्री चेहरा नीतीश कुमार ही रहे परंतु, सरकार के तीसरे साल तक जाते-जाते नीतीश कुमार ने अपने सभी साथियों से विचारधारा के टकराव के आधार पर नाता तोड़ लिया एवं भाजपा की पुनः सरकार में हिस्सेदार बनी।

इस राजनीतिक उठा-पटक की एक बड़ी वजह यह भी है कि लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बिहार के पढ़े लिखे एवं स्वच्छंद तपके को बिलकुल पसंद नहीं है। राजनीतिक रूप से जागरूक युवाओं से भरपूर बिहार की राजनीतिक नब्ज़ को टटोलना एक रोमांचक कार्य है।

राष्ट्रीय जनता दल अप्रासंगिक है

लालू यादव और मुलायम सिंह

दशकों पहले बिहार में विद्यार्थी वैचारिक क्रांति के प्रणेता श्री जयप्रकाश नारायण के आशीर्वाद से लालू प्रसाद यादव ने खुद को बिहार का चेहरा बनाया। 15 वर्षों तक लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार की सत्ता सम्भाली और बिहार की दशकों की संरचना को तितर-बितर कर दिया।

विकास के नाम पर शून्य बिहार, अपराध के नए आयाम छूने लगा। उद्योग पलायन कर गये, भारी संख्या में विद्यार्थी पलायन कर गये, पेशेवरों द्वारा पलायन एक संस्कृति बन गई, सरकारी दफ्तरों के कर्मचारी भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा छूने लगे एवं सम्पूर्ण तंत्र धराशायी होता रहा।

एक सम्पूर्ण युग, बिहार ने भ्रष्टाचार की गिरफ्त एवं बिना संरचनात्मक कार्य किए निकाला। उसी की देन है कि आज भी बिहार के विद्यालयों में शिक्षक आशाहीन हैं, कार्यालयों में कर्मचारी भ्रष्टाचार करने पर मजबूर हैं एवं शासन व्यवस्था की सम्पूर्ण ऊर्जा दबंगो को सम्भालने में चली जाती है।

एक लम्बे समय तक कानून व्यवस्था में भारी उलट फेर ने दबंगई को बिहार में शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित जीवन के लिए ज़रूरी बना दिया। इसकी जड़ में राष्ट्रीय जनता दल और उसकी लाठी की बर्बर मानसिकता है।

आज जब भारत देश डिजिटल इंडिया साकार कर रहा है, हाई स्पीड ट्रेन में सफर कर रहा है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स की तरफ बढ़ रहा है, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में लगातार ऊपर जा रहा है, अनुसंधान एवं खेल में रोज़ नए कीर्तिमान बना रहा है, मनोरंजन के नए  साधन तलाश रहा है; तब राष्ट्रीय जनता दल के किसी नेता के पास इन मुद्दों पर कार्य करने की काबिलियत नहीं है।

ऐसे में अगर आर्थिक विकास की दौर में भी राष्ट्रीय जनता दल जैसी अक्षम एवं असामाजिक तत्वों से भरी हुई राजनीतिक पार्टी बिहार में व्यक्तिगत क्षणिक लोभ के द्वारा ही वोट पाने की कोशिश करेगी, तो यह इस बात का सूचक है कि विकासवादी नज़रिए से वह एक अप्रासंगिक राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।

2020 के बिहार चुनाव का परिपेक्ष्य

केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार 2019 में दोबारा बन गई। बिहार ने इस बार भी अपनी चालीस में से सिर्फ एक लोकसभा सीट काँग्रेस को दी है, राष्ट्रीय जनता दल का खाता नहीं खुला।

नागरिकता कानून के सम्बंध में अगर छोटे-मोटे भटके हुए प्रदर्शनों को छोड़ दें, तो बिहार इसके समर्थन में ही प्रदर्शन कर रहा है। अमित शाह का यह बयान भी आ चुका है कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में ही भाजपा चुनाव लड़ेगी।

प्रशांत किशोर जैसा राजनीतिक रणनीतिकार अपनी पूर्ण संस्था के साथ 2018 से ही जनता दल यूनाइटेड (नीतीश कुमार की पार्टी ) के समर्थन में तैयारी में लगा हुआ है। कुछ स्थानीय नेता भी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान में मिली सफलताओं से उत्साहित काँग्रेस भी अपनी किस्मत आज़माने हेतु बैसाखी तलाशने की कोशिश करेगी, जिसका सिर्फ एक मूल्य होगा- काला धन।

लेकिन यकीन मानिए इन सभी पहलुओं को समझना जितना हल्का लग रहा है, उतना ही हल्का इनका असर

बिहार का चुनाव हर बार देश के लिए एक क्षणिक रोमांच लेकर आता है – क्रिकेट टेस्ट मैच जैसा। जब होता है तब थोड़ा रोमांच रहता है, परंतु पारिणाम घोषित होने के उपरांत स्थिति बदलती नहीं है। इसी वजह से अब धीरे धीरे बिहार का चुनाव राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों को प्रभावित करने की अपनी क्षमता खो रहा है।

हम इतनी अव्यवस्था के बाद भी शांत क्यों हैं?

चुनाव दर चुनाव समय तो निकल ही जाता है, कुछ लोग सत्ता में रहते हैं, कुछ लोग बाहर रहते हैं लेकिन प्रश्न यह है कि बिहार में जन सामान्य को वे सारी व्यवस्थाएं क्यों नहीं मिल रहीं, जिसकी बदौलत देश के सभी राज्य के नागरिक अपने जीवन के उद्देश्यों की तरफ बढ़ रहे हैं। आज भी हम ऐसी स्थिति में क्यों हैं जहां,

क्या बिहार का युवा चुनाव के मुद्दों को तय कर पाएगा?

2020 का चुनाव बिहार के युवाओं के लिये वह मौका है, जब वे बिहार को हमेशा के लिए बदल सकते हैं परंतु, उसके लिए ज़रूरी है कि वे अपने मुद्दों को आर्थिक समृद्धि के आधार पर प्राथमिकता दें।

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार

क्या बिहार का युवा यह तय कर पाएगा की चुनाव प्रचार सिर्फ इस बात पर ना टिका रहे कि “याद करिए, 15 वर्ष पहले, आप 7 बजे शाम को किसी की शादी में जाने के पहले क्या सोचते थे?”; इस बात पर ना टिका रहे कि हमें काँग्रेस मुक्त या राजद मुक्त बिहार बनाना है।

क्या बिहार का युवा यह तय पर पाएगा कि ‘राजद, काँग्रेस, धार्मिक कट्टरता, सब्सिडी के सपने, अपराध का डर इत्यादि’ बिहार में चुनाव के मुद्दे नहीं होंगे और वोट सिर्फ उन्हें मिलेगा, जो बिहार के विकास की रूपरेखा के आधार पर बात करेगा। क्या युवा यह मांग कर पाएंगे कि

आखिर शांत रहकर हम जीवन में क्या ही हासिल कर लेंगे? हम दिन प्रतिदिन विकास की प्रतिस्पर्धा में पीछे होते जाएंगे, गरीबी बढ़ेगी, सामाजिक असंतोष बढ़ेगा और अंततः एक आपराधिक समाज में हम जीवन बिताने को विवष होंगे।

बिहार के युवाओं को एवं राजनीतिक प्रबुद्धों को यह सोचना होगा कि वह बिहार के इस चुनाव के मौके को किस उद्देश्य हेतु इस्तेमाल करना चाहते हैं?

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