सेवा में
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, दिल्ली सरकार
विषय – माहवारी से संबंधित मिथक धारणाओं में परिवर्तन
महोदय
मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान अपने जीवन से जुड़े एक ऐसे अनुभव की तरफ खीचना चाहती हूं जो मेरे लिए पीड़ादायक है. मेरे घर मे हहैम दो बहनें है जिन्हें माहवारी होती है प्रत्येक माह जब हहैम में से किसी को भी माहवारी होती है उसके 7 दिन बाद मेरी माताजी उन सभी बिस्तरों को खुद धोती है जिनपर हम बैठते या सोते है और ऐसा हर महीने में 2 बार होता है ,मेरी माताजी हर मौसम में फिर चाहे वह कड़ाके की सर्दी हो या शरीर को तिलमिया देने वाली गर्मी व अपने हाथों से रजाई कंबल जैसे भारी चीजों को धोती है क्योंकि वे वाशिंग मशीन के भी पक्ष में नही है ,जिससे उनकी तबियतभी बिगड़ जाती है जैसे जोड़ो में दर्द,कमर दर्द इत्यादि होने लगता है .मेरा यह मानना की शायद यह स्थिति मेरे घर मे नही नही बल्कि कई और परिवारों में भी होगी जोकि गंभीर विषय है .
मेरा यह मानना है की माहवारी से जुड़े इस सोच पर की “यह खून अशुद्ध नही है बल्कि हमारे शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों में से एक है” ,मीडिया के माध्यम से जैसे टेलीविजन, रेडियो, व समाचार पत्र में बार बार इसका प्रचार किआ जाए ,ताकि इस रूढ़िवादी सोच में परिवर्तन लाया जा सके.आशा करती आप इस विषय पर विचार करेंगे.
धन्यवाद
पूजा
सोशल मोबिलिसेर
रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट