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“हिंदू राष्ट्र के नाम पर कट्टरता हावी करने की साज़िश”

स्वामी निश्चलानंद

स्वामी निश्चलानंद

जीवन धर्म के बिना अधूरा है, क्योंकि हर व्यक्ति की पहचान उसका धर्म ही है। हर व्यक्ति को उसके धर्म के अनुसार अपनी आस्था बनाने का अधिकार है। हिंदुस्तान की पहचान यहां के लोग, यहां के संस्कार और यहां के पौराणिक ग्रंथ हैं।

क्या भारत को हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए या नहीं, इस पर समय-समय पर बहसें होती रहती हैं। हाल ही में इस बहस पर अपनी राय देते हुए पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा,

भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। पुरी में गोवर्धन मठ में अपने निवास में पत्रकारों से बात करते हुए सरस्वती ने कहा कि दुनिया के कुल 204 देशों में बहुत सारे देश ऐसे हैं, जिन्हें या तो ईसाई या मुस्लिम देश घोषित किया गया है। जबकि हिन्दुओं के लिए ऐसा नहीं है।

स्वामी निश्चलानंद को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि जब देश NRC के विवाद में उलझा हुआ है, ऐसे वक्त में घटिया बयानबाज़ी देने की क्या ज़रूरत? ऐसे बयानों से देश के माहौल पर ज़ाहिर तौर पर असर पड़ता है।

हिन्दू राष्ट्र यानी एक खास वर्ग के लिए मुश्किलें

स्वामी निश्चलानंद। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं समझता हूं कि ऐसे बयानों से हमें बचना चाहिए। क्या यह सच नहीं है कि इस देश के संविधान में सेक्युलर शब्द को बाबा साहेब अंबेडकर ने नहीं, बल्कि राजनीति में अपनी सत्ता को अपने अनुरूप चलाने के लिए राजनीतिक दलों ने जोड़ा था?

क्या हिन्दू होना या हिन्दू राष्ट्र होना किसी के लिए खतरे का विषय हो सकता है? इन सब बातों पर खुल कर बहस हो सकती है और हिन्दू राष्ट्र क्यों हो या क्यों नहीं, इस पर चर्चा का एक स्पेस तैयार करने की ज़रूरत है ना कि स्वामी निश्चलानंद की तरह बयान देकर। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत को यदि हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जाएगा तो किसी खास वर्ग के लिए तमाम तरह की परेशानियां शुरू हो जाएंगी।

जब हिन्दू बहुमत में हैं तो हिन्दू राष्ट्र की मांग क्यों?

जिस देश में मर्यादा के लिए प्रभु राम को और करुणा के लिए श्री कृष्णा को याद किया जाता है, जिस देश में ज्ञान के लिए स्वामी विवेकानंद को याद किया जाता है, उस देश में हमें हिन्दू राष्ट्र बनाने की बातें करना शर्मनाक है। रामायण और महाभारत के साथ साथ पुराणों और ग्रंथों को पूरी दुनिया में माना जाता है, ऐसे में आखिर हिन्दू राष्ट्र की मांग के लिए आवाज़ें क्यों उठती हैं?

इस बात में किसी भी तरह का विवाद नहीं है कि इस देश के बंटवारे के बाद भी जिन मुसलमानों ने इस देश में रहने का निर्णय लिया है, उन्होंने जिन्ना के देश और जिन्ना के विचारों को रिजेक्ट करते हुए भारत में रहने का फैसला किया था।

हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि जब उन्होंने इस देश में रहने का निर्णय लिया था, तब भारत के संविधान की आत्मा में सेक्युलर शब्द नहीं था और उन्होंने भारत को सेक्युलर शब्द के बिना चयन किया था।

इस्लामिक देशों में जिस तरह की हिंसा और जिस तरह का व्यवहार लोगों के साथ हो रहा है, उससे बेहतर हालत में लोग हिंदुस्तान में रह रहे हैं। भले ही आज का हिंदुस्तान हिन्दू राष्ट्र नहीं है लेकिन इस हकीकत को कोई नकार नहीं सकता कि इस देश में हिन्दू बहुमत में हैं और इसके बाद भी देश में हर नागरिक आराम और चैन से रह रहे हैं।

ऐसे में स्वामी निश्चलानंद ही नहीं, बल्कि देश में हर किसी को ऐसे बयान देने से बचने की ज़रूरत है ताकि आपसी सौहार्द बनी रहे। जिस धार्मिक पद पर निश्चलानंद काबिज़ हैं, उसकी कोई गरिमा होती है। यह गरिमा बनी रहे, इसके लए ज़रूरी है कि स्वामी को देशवासियों से माफी तो मांगनी ही चाहिए।

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