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“इस दौर में अब असंवैधानिक कानूनों के खिलाफ बोलने वाला देशद्रोही है”

मैं वेब सीरीज़ ‘लैला’ देख रही थी, जिसमें अलग धर्म और जातियों के रहने के लिए अलग सेक्टर्स दिख रहे थे। वहीं असली दुनिया में, देश में NRC और CAA पर बेहस चालू थी।

मन में ख्याल आया कि क्यों लेखक प्रयाग स्वंतत्र भारत के सौ साल बाद का भारत दिखा रहे हैं? धर्म और जाति पर हम कबके बट चुके हैं और रही अलग सेक्टर्स दिखाने की बात, तो आज जो हो रहा है, उसे देख कर सौ साल नहीं 70 साल ही काफी है।

नागरिकता कानून के बाद देश में बिगड़ते हालात

हमें भटकाने में कामयाब रही यह पार्टी

MA के एक्ज़ाम्स के दौरान श्रीलंका के तमिल बोलने वाले लोगों के बारे में फिर से पढ़ना हुआ। कुछ वैसे ही हालत तिब्बत के शरणार्थियों की थी। तो क्या वे अल्पसंख्यक नहीं है? इनके बारे में CAA को कोई हमदर्दी क्यों नहीं है?

जिन्हें हमदर्दी है, उन्हे लेकर तो बस नफरत ही नफरत है। जो भी सेलिब्रिटी सड़कों पर उतर आए छात्रों को सपोर्ट कर रहे हैं, उन्हे या तो देशद्रोही कहा गया या तो स्टंटबाज़।

एक अकेली पार्टी अपने एजेंडे को पूरा करने के साथ-साथ, बाकी महत्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान ना देने की चाल में कामयाब रही है। महंगाई, जीडीपी ग्रोथ आदि चीज़ों को हम समझ तो सकते है, लेकिन उन्हें महसूस करने की हमारी पूरी ताकत सिर्फ देश-प्रेम में बसी है। एक ऐसा देश-प्रेम जो खुद के मज़हब को छोड़कर दूसरे मज़हब को नहीं पहचानता हो।

JNU प्रोटेस्ट में शामिल हुई दीपिका पादुकोण, फोटो साभार – सोशल मीडिया

विश्व में भारत की पहचान ही उसकी विविधता से होती है। दुनिया भर में ‘विविधता में एकता’ की मिसाल सिर्फ भारत के नाम है। अब तो ‘मिसाल थी’ यही कहना पड़ेगा, क्योंकि हमारी सरकार एक धर्म के ध्रुवीकरण में सफल होती नज़र आ रही है।

असंवैधानिक है नागरिकता कानून

धर्म का ध्रुवीकरण भारत को एक ऐसा देश बना रहा है, जहा‌ं संविधान को मानने से इनकार हो रहा है, जहां भारत में संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत (Basic structure of doctrine) का उल्लघंन हो रहा है और अगर आप ये बातें बोलेंगे तो आपका बोलना भी गलत साबित हो रहा है।

धर्म निरपेक्षता, आर्टिकल 14 इन सबका उल्लंघन CAA ने किया है। पिछले 45 सालों में 2011 के इलेक्शन के बाद की NSO रिपोर्ट में आज की बेरोज़गारी की दर (unemployment rate) सबसे ज़्यादा है।

मज़ेदार बात यह है कि देश के बेरोज़गार युवक ही ऐसी चीज़ों पर ध्यान नहीं देते। क्योंकि, किसी का पॉलिटिकल एजेंडा ही आज उनके लिए देशहित बन गया है।

हिंदू राष्ट्रवाद भारत को कहां ले जाएगा?

नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

CAA के समर्थन में कहीं गई persecution वाली बात भी झूठी साबित होती है, अगर उसमें अहमदियों और शिया मुस्लिम नागरिकों के persecution को ध्यान में ना लिया गया हो। मुस्लिम समुदाय से भेदभाव की बात साफ-साफ दिखाई देती है। क्योंकि हर बार दोहराया गया persecution शब्द असल में नागरिकता अधिनियम अधिनियम (Citizenship Amendment Act) में लिखा नहीं गया है।

पूरा देश कहीं धर्मनिरपेक्षता को लेकर, तो कहीं भाषा और संस्कृति को लेकर प्रोटेस्ट कर रहा है। असम में बंगाली बोलने वाले हिंदू और असमी बोलने वाले हिन्दूओं का पुराना विवाद है, फिर भी उसे छोड़ धर्म का नारा लगाया गया है। त्रिपुरा में ऐसे ही अवैध प्रवासियों की वजह से वहां के आदिवासी अपने आप को सुरक्षित नहीं समझते हैं लेकिन हालात सब कुछ समझने के परे है।

असम में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, फोटो साभार- सोशल मीडिया

मानो देश को एक नहीं दो मसीहा मिल गये हैं और वे ऐसे ही हिन्दू राष्ट्रवाद की छड़ी घुमाकर भारत को सबसे उपर ले जाएंगे।

अब तो बस ‘सब चंगा सी’ सुनते-सुनते देखना यह है कि हिंदू राष्ट्रवाद भारत को कहां ले जाता है। क्योंकि, देशवासी तो सरकार बदलने से रहे।

 

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