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गुजरात में लापता दलित लड़की का शव पेड़ से लटका हुआ मिला

दिल्ली में जब निर्भया का मामला सामने आया था पूरे देश में आक्रोश देखने को मिला। रेप के अपराध लिए कड़ी-से-कड़ी सज़ा का प्रावधान हो ऐसी मांग देशभर से की गई। अब 22 जनवरी को निर्भया मामले में दोषी लड़कों को फांसी दी जाएगी। एक में फांसी देने से क्या ऐसे अपराध रुक जाएंगे? यह सवाल गुजरात में हुई घटना के बाद सामने आया है।

पूरा मामला क्या है?

अरावली ज़िले की मोदसा कस्बे से 1 जनवरी को 19 साल की छात्रा लापता हो गई थी। 5 जनवरी को पेड़ से लटकता हुआ उसका शव मिला था। इसके बाद परिजनों ने हत्या और गैंगरेप का आरोप लगााया। जब लड़की के परिवार वाले 3 जनवरी को लापता होने का केस दर्ज करने गए तब पुलिस ने मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया और कहा गया कि लड़की भाग गई है और उसने शादी कर ली है। बाद में लड़की का शव पेड़ से लटका मिला।

जांच चल रही हैं- अरावली पुलिस

इस पूरे मामले में अभी आरावली पुलिस ने किसी को अरेस्‍ट नहीं किया है। पुलिस चारों आरोपियों बिमल भारवाड, उसके दोस्‍तों दर्शन भारवाड, सतीश भारवाड और जिगर का पता भी नहीं लगा सकी है। इंस्‍पेक्‍टर जनरल मयंक सिंह चावड़ा ने इस मामले में कहा,

पुलिस आरोपियों को पकड़ने का प्रयास कर रही है लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिल रही है। हमने स्‍थानीय पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी जांच शुरू की है, जिन पर एफआईआर में गड़बड़ी करने का आरोप है।

इस बीच राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने लड़की की मौत पर पुलिस से एक विस्‍तृत रिपोर्ट मांगी है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अत्याचार पुष्टि नहीं

नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, दलित लड़की के पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट में गैंगरेप या हत्‍या की पुष्टि नहीं है। इसमें कहा गया है कि संभवत: लड़की ने आत्‍महत्‍या की है। ज़िले के एक वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी ने कहा,

गैंगरेप और मर्डर को पोस्‍टमॉर्टम रिपोर्ट में पूरी तरह से खारिज किया गया है। प्रथमदृष्‍टया ऐसा लग रहा है कि लड़की ने पेड़ से फांसी लगाई, जिससे वह सांस नहीं ले सकी और उसकी मौत हो गई।

उन्‍होंने कहा,

पुलिस अब लड़की के प्राइवेट पार्ट और खून के फरेंसिक रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि लड़की का यौन उत्‍पीड़न हुआ था या नहीं।

देशभर में महिलाओं पर अत्याचार में वृद्धि

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में 50 लाख 07 हज़ार 44 अपराध के मामले दर्ज किए गएं, जिनमें से तीन लाख 59 हज़ार 849 मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध संबंधी हैं।

समस्या का समाधान क्या हो सकता है?

दिल्ली में निर्भया कांड हो या फिर कुछ दिन पहले हैदराबाद में हुए गैंगरेप और हत्या का मामला हो। निर्भया के आरोपियों को फांसी दी जाएगी। हैदराबाद के आरोपियों का एनकाउंटर हो चुका है। देश में हर दिन महिलाओं पर अत्याचार होते हैं, उसमें घरेलू हिंसा भी शामिल है।

सवाल महिलाओं पर होने वाली हिंसा का तो है, उसके साथ ही वहां भारतीय समाज की मानसिकता का और न्याय व्यवस्था का भी है। समाज पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए महिलाओं को अपने परिवार में दोयम दर्जा देते हैं, जिसकी छाप सार्वजनिक तौर पर भी नज़र आती है।

दूसरी ओर जहां से न्याय की अपेक्षा की जाती है, आम लोगों की मन में जिसके प्रति विश्वास होता है, वह न्याय व्यवस्था समस्याओं से खुद ही पीड़ित हो चुकी है।

देश की निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत में न्यायाधिशों के सैकड़ों की तादात में पद खाली हैं। ऐसी स्थिति में सालों तक मुकदमे चलते रहते हैं। इस चक्र से भारतीय समाज कब और कैसे बाहर आएगा पता नहीं। एक वक्त में अदालते अपना फैसला जल्दी सुना भी देगी लेकिन जिस रूढ़िवादी एवं महिला विरोधी मानसिकता ने भारतीय समाज को घेर लिया है उसका क्या करें?

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