हमारी सरकार में आंकड़े इसलिए बढ़े क्योंकि हमने रिपोर्ट दर्ज़ की
लड़कियां रात को जाएंगी बाहर तो कौन सुरक्षा देगा?
लड़के हैं, गलती हो जाती है।
बलात्कार को डिफेंड करने के पीछे तर्क दिए जाने वाले यह तीनों बयान देश के बड़े-बड़े ज़िम्मेदार नेताओं की है। यह तीनों बयान संविधान के किताब पर काले अक्षरों के साथ नेताजी के नाम के साथ हैशटेग लगाकर छाप देना चाहिए।
कम-से-कम इस कृत्य को इतिहास तो जान पाएगा कि हमारे देश के नेता आधी आबादी पर क्या सोचते थे? बलात्कार पर काबू पाने में हर सरकार विफल रही है। सभी सरकार के मुख्य एजेंडे में महिला सुरक्षा रहती है लेकिन इसके बावजूद बलात्कार का आंकड़ा आसमान छू लेता है।
बलात्कार रोकने के लिए तमाम कमेटियां बनीं, कई प्रयोग किए गए। हर सरकार ने दावा किया कि बलात्कार कम हो जाएगा लेकिन आंकड़ों ने उनके दावों को झूठला दिया।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2001‐17 के बीच भारत में कुल 4,15,786 बलात्कार के मामले दर्ज़ किए गए। रेप की खबरें तो महज़ अखबार के किसी कॉलम में छपकर रह जाती हैं। सरकारें कठोर कानूनी कार्रवाई करने का आश्वासन देकर निकल जाती है।
सरकार ने 2012 में निर्भया गैंगरेप कांड के बाद रिटायर जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमेटी की रिपोर्ट पर संसद में बहस भी हुई लेकिन दुर्भाग्य है कि इसके बाद भी बलात्कार के आंकड़ों में कोई कमी नहीं आई।
तेलंगाना की रिया रेड्डी (बदला नाम) और रांची की विभा कुमारी (बदला नाम) की रेप की खबर के बाद सोशल मीडिया पर उबाल आया है। लोग सरकार को कोसने में लगे हैं। विपक्ष के कुछ नेता सरकार पर इसी बहाने हमला भी बोल रहे हैं लेकिन इसको खत्म और कम करने का जवाब किसी के पास नहीं है। रेप की घटनाओं में बढ़ोतरी से यही कहा जा सकता है कि भारत एक बलात्कार प्रधान देश बनता जा रहा है।