चलिये ना अब आपसे बतियाते हैं और बताते हैं कि बिहार में मानव श्रृंखला का विरोध तेजस्वी की राजनीतिक अपरिपक्वता कैसे है? आप भी ना बड़ी जल्दी में किसी राजनीतिक फैसला को सही करार देते हैं। महाराज अमूमन राजनीति में ऐसा होता कहां है?
खैर, छोड़िये भूलना आदत जो है पर याद रखिए राजनीति जब भी लड़खड़ाती है तो इतिहास ही सहारा देता है। तो आइए, इतिहास को टटोलते हैं और कुछ बात बटोरते हैं।
इस श्रृंखला को जब लोग राजनीतिक स्टंट कहते हैं तो हंसी आती है पर लोकतंत्र में तो ऐसा कहने का हक है भई, “फ्रीडम ऑफ स्पीच” की जो बात है। तो कहिये आप स्वतंत्र हैं, आपकी आवाज़ भी स्वतंत्र है पर याद रहे, एक नेता के साथ ऐसा नहीं होता है, वह भी जब नेता प्रतिपक्ष का हो या सत्ता पक्ष का।
2015 में नीतीश के साथ तेजस्वी यादव ने भी शराबबंदी की घोषणा की थी
याद आता है बिहार विधानसभा चुनाव 2015 और उस चुनाव के महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार और प्रचारक लालू प्रसाद यादव। उस वक्त सबने मिलकर, गला फाड़कर नशा मुक्ति का वादा किया। फिर चुनाव हुआ, सरकार बनी। उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बनें और शुरू हुआ वादा किया तो निभाना पड़ेगा।
अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी हुई, उसके समर्थन में मानव श्रृंखला बनी। तब क्या बात थी, “तू भी मूड में, मैं भी मूड में, फर्क क्या तेरे-मेरे एटिट्यूड में?”
आज उसी शराबबंदी की आलोचना कर रहे हैं तेजस्वी
आज के तेजस्वी यादव, जो मानव श्रृंखला के KRK बने हुए हैं, वहीं तेजस्वी एक समय अपनी सरकार और सरकार के प्रचारक पिता लालू प्रसाद यादव के साथ सड़क पर उतरकर बिहार को नशा मुक्त घोषित करके ही माने थे। आज की तरह तब भी मेरे जैसे राजनीतिक दल के कार्यकर्ता कहते रहें, शराब हर जगह आसानी से मिल रहा है, मैं आज भी कहता हूं पर दोष मैं ना तब और ना अब सरकार को दे रहा हूं।
फिर नया बजट बना और बिहार में हुई शराबबंदी से राजकोषीय घाटा के संदर्भ में तबकी विपक्षी पार्टी (मैं जिस पार्टी के सक्रिय सदस्य हूं) ने खूब सवाल किए थे लेकिन तब तेजस्वी ने खूब कमान संभाली, मीडिया में जवाब दे डाला, विपक्ष को सही और सफल बताया।
फिर कुछ समय बाद सरकार पलट गई कारण की चर्चा बाद में करेंगे, अभी बात श्रृंखला से संबंधित मुद्दे पर। तब भी जारी रहा श्रृंखला दर श्रृंखला, पर जो ना बदला वह था भाजपा का श्रृंखला को सपोर्ट करना। पक्ष और विपक्ष दोनों में रहते हुए बदल गया सुर लालू के लाल वीर तेजस्वी का। अब कहने लगे शराबबंदी काला कानून है और यह विफल है।
तो अब बताएं, तेजस्वी के रहते कानून बना, वह लगभग 1.5 वर्ष तक उप-मुख्यमंत्री रहें, तो क्या शराबबंदी के असफल होने की ज़िम्मेदारी उनकी नहीं बनती है? साथ-ही-साथ अगर तेजस्वी को इसका आभास नहीं था तो उनके अंदर दूरदर्शिता नहीं है और जब नहीं तो वह नेता कैसे हैं? फिर अपने किए पर पछतावा ना करते हुए दूसरे को कोसना राजनीतिक अपरिपक्वता नहीं है तो और क्या है?