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“पीटी टीचर ने बाथरूम में सारे कपड़े उतरवाकर हमारी तलाशी ली”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

‘ड्रेस चेकिंग’ शब्द सुनकर शायद स्कूल से जुड़ी बहुत सारी बातें आपको याद आती होंगी। स्कूलों में ड्रेस चेक करना बहुत आम सी बात है, जो आज भी जारी है। हमारे देश में हमेशा से स्कूल की पढ़ाई, बढ़ती फीस, बस्ते के बढ़ते बोझ आदि विषयों पर खुलकर बातें की जाती रही हैं।

कभी भी हम स्कूल में ड्रेस चेकिंग कैसे होती है, इससे बच्चों को किस तरह के मानसिक तनाव या बेइज़्जती का सामना करना पड़ता है, आदि सवालों पर चर्चा नहीं करते हैं। यह शायद एक ऐसा विषय है, जिसे हम देखकर भी इग्नोर करते हैं।

ड्रेस चेकिंग के दौरान क्या महसूस करते हैं बच्चे?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

हमने कुछ बच्चों से बात की और जानना चाहा कि क्या उनके साथ कभी ऐसा हुआ है? जैसे- ड्रेस चेकिंग के वक्त असहज महसूस करना या क्या कभी उन्हें ऐसा लगा हो कि उनकी शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार का हनन हुआ है। नाम ना छापने की शर्त पर बच्चों ने इस संदर्भ में बहुत सी बातें शेयर की।

रूमी बताती हैं,

मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी और परीक्षा का समय था। मैं अपनी सीट पर बैठकर परीक्षा दे रही थी, तभी बाहर से एक टीचर आईं। उन्हें ऐसा लगा कि मेरे पास चिट है, उन्होंने वहीं पूरी क्लास के सामने मुझे बुलाया। वहां सीनियर क्लास के लड़के भी परीक्षा दे रहे थे। उनके सामने ही शर्ट, स्कर्ट से बाहर निकलवाकर शिक्षिका ने बहुत अजीब तरीके से मेरी चेकिंग शुरू कर दी। जब मेरे सीनियर्स ने उनके इस तरीके का विरोध किया, तब उन्होंने मुझे मेरी सीट पर बैठने को कह दिया।

रूमी आगे कहती हैं,

उस समय मेरी उम्र ग्यारह-बारह साल रही होगी। मुझे अजीब सा महसूस हो रहा था, बहुत बुरा लग रहा था। उस समय मुझे लगा कि ऐसे ही तो ड्रेस चेक होता है। इसलिए मैंने किसी को कुछ बताया नहीं मगर अब सोचने पर लगता है कि बहुत गलत हुआ था मेरे साथ।

कशिश बताती हैं,

मैं और मेरी तीन दोस्त उस वक्त शायद 9वीं या 10वीं में थे। हमारी पी.टी. टीचर को किसी ने शिकायत की कि हम स्कूल में फोन लेकर आए हैं। अब चेकिंग के लिए उन्होंने 14 सीनियर लड़कियों को हमारे पास भेजा। हम चारों को बाथरूम ले जाया गया, वहां हमसे हमारे सारे कपड़े उतरवाए गए फिर हमारी तलाशी ली गई।

वह आगे बताती हैं,

हम उस समय बिना कपड़ों के अपने अंडर गारमेंट्स में खड़े थे, जो कि हमारे लिए बहुत ही शर्मनाक क्षण था। हमें उनसे ज़्यादा खुद पर गुस्सा आ रहा था। शायद पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, इसलिए घर पर नहीं बता सकते थे। उल्टा हमें ही डांट पड़ती।

ज़ोया का कहना है कि हमारे स्कूल में एक नई पी.टी. टीचर आई थीं। उन्होंने सभी लड़कियों के लिए साइकिलिंग शॉर्ट्स पहनना अनिवार्य कर दिया था। हर रोज़ सुबह सभी लड़कियों के शॉर्ट्स खुद चेक करती थीं।

ज़ोया बताती है कि एक दिन जब वह साइकिलिंग शॉर्ट्स पहनना भूल गई, तब पी.टी. टीचर ने उन्हें ट्यूनिक उठाकर खड़े होने की सज़ा दी। ज़ोया इससे काफी असहज हो गई। एक बच्चा, जो कि चौथी-पांचवीं में पढ़ता होगा, उसको इस तरीके की सज़ा देना, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करना नहीं तो और क्या है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

करन अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं, “मुझे याद है कि क्लास में मुझे पहले खड़ा किया गया फिर मेरी टीचर ने मुझे ज़ोर से एक थप्पड़ मारा और कहा कि कल बाल कटाकर आना। यदि बाल काटकर नहीं आए, तो चोटी बनाकर पूरे स्कूल में घुमाऊंगी। मैं बहुत सहम गया था और इसी वजह से शायद वह बात मुझे आज तक याद है।”

अभिषेक बताते हैं, “जो चीज़ मुझे सबसे ज़्यादा बुरी लगती थी, वो यह कि बच्चों को स्कूल के हाउसेज़ मे बांट दिया जाता था। मेरे स्कूल में मैं जिस हाउस में था, उस हाउस का लीडर ड्रेस में कमियां निकालकर कभी धूप में खड़ा कर देता, तो कभी मुर्गा बना देता, जिसकी वजह से मैं स्कूल नहीं जाता था, झूठ बोलकर छुट्टियां करता था।”

ड्रेस का रंग ज़रा भी हल्का हो जाए, तो बच्चों पर तुरंत नए ड्रेस लेने का दबाव डाला जाता है। बच्चा अगर एक बार पुरानी ज़ुराबों में रबर लगाए पहनकर आता है, तो उसे रोज़ अपमानित होना पड़ता है। हर लड़की को उसकी स्कर्ट की लंबाई या दुपट्टे के लिए टोका जाता है। कई बार लड़कों के लंबे बाल होने पर उनकी चोटी बनाकर उन्हें स्कूल में घुमाया गया या मारा गया है। स्टूडेंट लाइफ में सभी इन अनुभवों से दो-चार हुए होंगे।

ड्रेस चेक करना गलत नहीं, तरीका गलत है

ड्रेस चेक होना या ना होना अलग बात है मगर कैसे चेक होना चाहिए, यह एक मुद्दा है। जिस उम्र में बच्चों को यह भी नहीं पता होता कि चेकिंग का तरीका कितना गलत है, वह उनके साथ हो चुका होता है। ड्रेस चेकिंग का तरीका आज भी कुछ खास बदला नहीं है।

यह बच्चों पर कितना बुरा असर डाल रहा है, इस बात का अंदाज़ा सिर्फ इस हकीकत से लगाइए कि वर्षों गुज़रने के बाद आज भी उन्हें वह सारी बातें याद हैं। आज भी जब उस घटना का ज़िक्र होता है, तो उनके चेहरे पर शर्म, गुस्सा और अफसोस साफ-साफ नज़र आता है।

अब वक्त है कि हम ड्रेस चेकिंग के तरीके में कुछ बदलाव लाएं, जिसके लिए सबसे ज़रूरी है कि इस विषय पर चर्चा हो। ड्रेस चेकिंग कैसे और किस तरीके से हो, इसका प्रशिक्षण किसी पेशेवर व्यक्ति द्वारा ही अध्यापकों को दिया जाना चाहिए। ताकि वे अपने व्यवहार में बदलाव लाएं और बच्चों के प्रति और संवेदनशील हों।

अगर कोई शिक्षक फिर भी इस तरीके का व्यवहार किसी बच्चे के साथ करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो, जिससे बच्चों के मन में यह डर ना रहे कि वे अगर किसी से बात करते हैं, तो उन्हें ही सज़ा मिलेगी और उनके अध्यापक को कोई कुछ नहीं बोलेगा।

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