भारत में इस साल ठंड का कहर कुछ ज़्यादा ही देखने को मिल रहा है। मैदानी इलाकों में भी ठंड इस कदर पड़ रही है मानो कभी भी बर्फबारी हो सकती है। उत्तर प्रदेश के मेरठ की बात की जाए तो यहां पारा पिछले दिनों में काफी लुढ़का है।
जितनी तेज़ी से सोने का दर दिन प्रतिदन बढ़ रहा है, उतनी ही तेज़ी से यहां पारा निचे गिर रहा है। 13 दिसंबर 2019 तक ऐसी कोई खास ठंड नहीं थी लेकिन 13 तारीख के बाद जो कहर बरपा उसने अच्छे अच्छों की हालत पस्त कर दी।
घर से बाहर निकलना दुश्वार
मौसम ने झटपट करवट बदली और पता ही नहीं चला कि कब ठंड ने पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। पहाड़ों पर हुई बर्फबारी इसका एक बड़ा कारण है। मौसम वैज्ञानिक भी कंपकंपी बढ़ाने वाले बयान दे रहे हैं। 22 दिसंबर 2019 से 29 दिसंबर 2019 यानी कि महज़ इन 7 दिनों में पारा 4 डिग्री तक नीचे आ गया है।
सुबह-सुबह धूप की लाली की जगह सफेद कोहरे ने ले ली है। डाक्टरों द्वारा भी अति ज़रूरी काम होने पर ही घर से बाहर निकलने की सलाह दी जा रही है लेकिन यहां प्रश्न यह उठता है कि जो लोग कामकाज के लिए बाहर जाते हैं, उन्हें तो जाना ही पड़ेगा।
मेरठ के लोग घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहते हैं लेकिन मूंगफली और गुडपट्टी की महक उन्हें घर से निकलकर खरीदने पर मजबूर करती है। शाकाहारी लोग गर्मा-गर्म सूप के मज़े ले रहे हैं। वहीं, जो मांसाहारी हैं वे तरह-तरह के व्यंजनों को घर बैठकर चख रहे हैं।
इन सबसे दूर एक तबका है जिसका काम ठंड में उतना ही ज़रूरी है, जितना कि गर्मी में। मैं बात कर रहा हूं धोबी की। कोई कुछ भी करे लेकिन उसे अपने दिन के गछने (कपड़ों का काम) पूरे करने होते हैं। दिक्कत तब आती है जब 3-4 दिन तक धूप ना निकले, क्योंकि उसे उसके कपड़े सुखाने होते हैं। इन सबके बीच आम लोगों के लिए ठंड में तो पानी पीने में भी परेशानी होती है।
घने कोहरे का घना असर
बीते 30 दिसंबर 2019 में घने कोहरे के कारण मेरठ में दृश्यता शून्य थी। हर तरह के वाहनों की लाइट जली हुई और हॉर्न की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। एक-दो एक्सीडेंट भी सुनने को मिले।
घने कोहरे का असर कह लीजिए या फिर बहाना, मेरठ से प्रयागराज जाने वाली ‘संगम एक्सप्रेस’ 29 दिसंबर 2019 को साढ़े आठ घंटे लेट रही। वहीं, नौचंदी गाड़ी भी चार घंटा लेट रही।
कोहरे का एक असर यह भी है कि मेरठ समेत आस-पास के प्रमुख शहरों का एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) खतरे की स्थिति में पहुंच गया है। सर्दी के इस मौसम को हिन्दू कैलेंडर में पौष मास कहा जाता है।
पूस मास पर महाकवि घाघ कहते हैं,
पानी बरसा आधे पूसा
आधा गेहूं आधा भूसा
अर्थात- अगर पूस में पानी बरसता है, तो गेहूं की फसल अच्छी होती है।
माघै पूसा बहे पुरवाई
तो सरसों का माहू खाई
अर्थात- माघ और पूस माह में पुरवा हवा चले तो सरसों में माहू कीट लग जाता है। सरसों की फसल को यह केवल नष्ट ही नहीं करती है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डालती है।
कोहरे का ही असर है कि मेरठ में रोडवेज़ और रेल में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में गिरावट आई है। मेरठवासी आग जलाकर हाथ सेकने को ही अब अपना सहारा मान रहे हैं। हर दूसरे घर में आपको अलाव जलता दिखाई पड़ेगा। प्रशासन के इंतजाम भी दुरुस्त है। रैन बसेरों में भी पूरा इंतजाम है।
खैर, ठंड आती है चली जाती है लेकिन इस बार ठंड भले ही देर से आई हो लेकिन जाएगी काफी देर से इस बात का अंदाज़ा हो रहा है।