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“मेरे सपने का भारत वैसा हो, जहां विरोध करने की आज़ादी हो”

आंदोलन

आंदोलन

मैं चाहता हूं कि मेरे सपनों के भारत में विरोध प्रर्दशन करने की आज़ादी हो। लोग यह समझें कि सरकार मतलब देश नहीं होता है। CAA के विरोध में हुए प्रदर्शनों के साथ-साथ फीस वृद्धि के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में हुई कार्रवाईयों को हम सभी ने देखा है।

दिल्ली में दो लड़कियों को अपना मकान छोड़कर जाना पड़ा। कुछ लोग मारे गए और कई जेल गए। कुल मौतों में से 70 प्रतिशत उत्तर प्रदेश और 20 प्रतिशत असम में हुई। सदफ ज़फर मामले में पुलिस की कार्रवाई भी निंदनीय रही है।

चंद्रशेखर मामले में क्या हुआ?

चंद्रशेखर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

हाल ही में हमने देखा है कि भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आज़ाद को विरोध प्रर्दशन करने के कारण दिल्ली पुलिस ने जेल में डाल दिया था।

उनकी अदालती कार्रवाई में जज कामिनी लाउ की बात ध्यान देने योग्य है। जज ने कहा कि विरोध प्रदर्शन करना और धरना देना किसी का भी संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने पूछा कि इन प्रोटेस्ट में हिंसा की बात कहां है? जज ने पब्लिक प्रोसिक्यूटर से कह, “जामा मस्जिद कोई पाकिस्तान में नहीं है, जहां पर प्रदर्शन नहीं हो सकता है।”

जज कामिनी ने यह भी कहा कि अगर जामा मस्जिद पाकिस्तान हो, तो भी वहां जाकर विरोध प्रदर्शन किया जा सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि आखिर पाकिस्तान भी तो कभी भारत का ही एक हिस्सा था।

छात्र आंदोलन और जन-आंदोलन का इतिहास

फोटो साभार- सोशल मीडिया

भारत के भारत बनने की कहानी में कई सारे विरोध प्रर्दशन और आंदोलन शामिल हैं। इनमें छात्र आंदोलन और जन-आंदोलन दोनों ही रहे हैं। अगर हम छात्र आंदोलन का इतिहास देखें, तो पहला आंदोलन 1828 में बंगाल के हिन्दू कॉलेज में हुआ था। इसके बाद मराठी साहित्यिक समुदाय बॉम्बे कॉलेज और गुजराती नाट्य समूह द्वारा गुजरात विश्वविद्यालय में हुआ।

1905 में इडेन कॉलेज कोलकाता में बंगाल विभाजन के फैसले पर विरोध प्रर्दशन में कर्जन का पुतला जलाया गया। पहली छात्र हड़ताल 1920 में किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज लाहौर में भारतीय और अंग्रेज़ी छात्रों के बीच भेदभाव के खिलाफ हुई। 1965 में हिन्दी विरोधी आंदोलन तमिलनाडु में हुआ।

हुआ यह था कि 1963 में अंग्रेज़ी के साथ हिन्दी को राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया था। 1964 में नेहरू की मौत हुई और काँग्रेस सरकार ने त्रिभाषीय सूत्र जारी कर दिया। 26 जनवरी 1965  को इंग्लिश के राजभाषा के तौर पर 15 साल हो गए, अब चाह यह थी कि इसे हिन्दी से बदल दिया जाए।

उस वक्त के गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा जो कि हिंदी के पैरोकार भी थे। जिनके खिलाफ जून 1965 में लाल बहादुर शास्त्री के इस आश्वासन पर लोग सड़कों पर उतर आए। इसमें 70 मौतें हुई थीं और परिणाम स्वरूप 1967 के चुनाव में DMK ने काँग्रेस को हरा दिया।

नव निर्माण आंदोलन 1974

नव निर्माण आंदोलन 1974

20 दिसम्बर 1973 को अहमदाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 20 प्रतिशत फीस बढ़ा दी गई। 3 जनवरी 1974 को छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हुई। प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के इस्तीफे की मांग की। जनवरी 25 को राज्य स्तरीय हड़ताल के बाद पुलिस से मुठभेड़ हुई।

44 ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दी गई। केन्द्र की इंदिरा सरकार ने मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगा। मामला राज्य सरकार की बर्खास्तगी तक गया। नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर में इस आंदोलन की अहम भूमिका रही, क्योंकि इस वक्त उन्होंने कई सारे विरोध प्रर्दशन आयोजित किए।

जे.पी. आंदोलन 1974

जेपी आंदोलन। फोटो साभार- सोशल मीडिया

छात्र संघ समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश नारायण इसकी अगुवाई कर रहे थे। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, वंशवाद, चुनाव सुधार, अनाज सब्सिडी और शिक्षा सुधारों के लिए किया गया अहिंसक आंदोलन था। यह पटना विश्वविद्यालय से शुरू होकर पूरे बिहार में फैल गया।

नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव जैसे कुछ बड़े नेताओं ने उस वक्त समाजवादी विचारधारा में भरोसा जताते हुए इस आंदोलन में हिस्सा लिया था।

आपातकाल में छात्र आंदोलन, 1975

भारत के कई विश्वविद्यालयों में छात्रों और अध्यापकों ने इस आंदोलन की अगुवाई की। देशभर के करीब 300 संगठनों के नेताओं को जेल भेज दिया गया। इन नेताओं में तब के दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यक्ष अरूण जेटली और छात्र संघ समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश नारायण भी शामिल थे।

इस आंदोलन ने जनसंघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ज़मीन मज़बूत की। मौजूदा सरकार में तमाम लोग यह कह रहे हैं कि छात्रों का काम पढ़ाई करना है, आंदोलन नहीं। वे यह बात क्यों भूल रहें कि ऐसे ही आंदोलनों से भारतीय जनता पार्टी की ज़मीन तैयार हुई है और उन्हें कई नेता मिले हैं।

असम आंदोलन

फोटो साभार- सोशल मीडिया

1971 के बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारी संख्या में बाहरी लोग असम में आए। असमिया संस्कृति को बचाने के लिए असम छात्र संघ ने आंदोलन की अगुवाई की थी, जो अभी एंटी CAA का हिस्सा है।

बाद में यह जन-आंदोलन में बदल गया। यह आंदोलन असम अकॉर्ड के बनने के बाद 1985 में शांत हुआ और इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे प्रफुल्ल महंत 35 वर्ष की उम्र में यहां के मुख्यमंत्री बनें।

एंटी मंडल आंदोलन, 1990

यह आंदोलनन मंडल कमीशन के बैकवर्ड क्लास को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ हुआ था। इसी तरह आरक्षण विरोधी आंदोलन 2006 में हुआ था। यह आंदोलन सरकारी शिक्षण संस्थानों में OBC आरक्षण के खिलाफ था।

इन आंदोलनों का भी ज़िक्र ज़रूरी है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

FTII के स्टूडेंट्स ने साल 2015 में एक आंदोलन किया था, जो 140 दिनों तक चला था। छात्रों का कहना था कि गजेन्द्र चौहान, जिन्हें इस प्रतिष्ठित संस्थान के चेयरमैन के तौर पर नामित किया गया है, वह इस पद के योग्य नहीं है।

जादवपुर विश्वविद्यालय में 2014 के आंदोलन का भी ज़िक्र करना ज़रूरी है। यह आंदोलन विश्वविद्यालय के अंदर निहत्थे स्टूडेंट्स पर हुई निर्मम पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ था। छात्र विश्वविद्यालय परिसर में एक छात्रा के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना में न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे।

आंदोलन वीसी के निलंबन पर समाप्त हुआ। छात्रों का कहना था कि उन्होंने पुलिस को भीतर घुसने की अनुमति क्यों दी? हमने ऐसे कई आंदोलन देखे हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भोजन के संदर्भ में लगी पाबंदियों के खिलाफ भी आंदोलन काफी अहम रहा है।

कानपुर विश्वविद्यालय में एक बार सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें असहमतियों का स्वागत करना चाहिए, वरना यह देश प्रेशर कुकर बन जाएगा। हाल के दिनों में सरकार विरोध प्रर्दशन करने वालों से सही से पेश नहीं आ रही है।

उन्हें नकारने के लिए भ्रामक बातें चल रही हैं। विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि वह प्रदर्शन करने वालों की बात सुने, ना कि निर्मम कार्रवाई करे और उन्हें घटिया कहकर नकारे।

भारत का इतिहास विरोध प्रदर्शनों से भरा हुआ है। मेरे सपनों के भारत में विरोध प्रदर्शन को विरोध प्रदर्शन की तरह ही लिया जाना चाहिए। उनकी सांसें बनी रहनी चाहिए।

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