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“CAA के खिलाफ लड़ने वालों का मज़हब संविधान है”

हिन्दुस्तान के संविधान की शुरुआत में लिखा गया है,

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं।

यह जो “हम” शब्द है वह इस हिन्दुस्तान की खूबसूरती को बढ़ावा देता है। हिन्दुस्तान की अनेकता में एकता दिखाता है, जिससे विश्वभर में हिन्दुस्तान की एक अलग ही पहचान चमकती है।

भारत का संविधान

CAA जैसा कानून संविधान विरोधी

हालिया भाजपा सरकार ने CAA जैसे कानून को लाकर कहीं ना कहीं हिन्दुस्तान के संविधान की खूबसूरती पर धूल उड़ेलने की कोशिश की है। यह तो आरोप शुरू से भाजपा पर रहे हैं कि उसका झुकाव मनु-स्मृति की ओर है।

अब जबसे यह CAA कानून बना है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, तो उसके विरोध की बजाय भाजपा सरकार 1000 से ज़्यादा रैलियां और 250 से ज़्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है। यहां तक कि मिस कॉल मुहिम को चलाया गया, जो जग ज़ाहिर करता है कि भाजपा पर लगने वाले आरोप गलत नहीं हैं।

आज जो हालात इस देश मे खुलकर सामने आ रहे हैं, उसकी नींव कई सदियों पहले डाल दी गई थी। 1939 में हिंदुत्व के विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने टिप्पणी की थी,

अगर भारत के हिंदू मज़बूत होंगे, तो एक ऐसा वक्त आएगा जब मुस्लिमों की भूमिका जर्मनी के यहूदियों की तरह रह जाएगी।

सावरकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेता था, जो आज की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की पितृ संस्था है और इस बात में कोई दोराय नहीं कि जर्मनी में उस वक्त भी ऐसे ही मिलते-जुलते कानून को लाया गया था।

पुलिस की बर्बरता

CAA के विरोध की शुरुआत जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली से होकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की तरफ बढ़ी और उसके बाद सारे देश मे फैल गई। जहां जामिया में पुलिस ने लाइब्रेरी में घुसकर बच्चों को मारा, वहीं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में  ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया और यही नहीं होस्टल में घुसकर कमरों को आग लगाई। यहां तक की पढ़ते हुए बच्चों को अगवा करके अपने साथ ले गई।

पुलिस की इस बर्बता को ताक में रखकर भाजपा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि CAA का विरोध सिर्फ मुस्लिम समाज कर रहा है और लोगों को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता, परन्तु ऐसा कतई नहीं है। CAA के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाले हिन्दुस्तानी हैं ना कि सिर्फ मुस्लिम।

जब मोदी जी जो कि देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्होंने जब घोषणा की कि CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को “कपड़ों से पहचाना जा सकता है” तो यह मुस्लिमों को देश की शांति के लिए खतरे के रूप में पेश करने का उनका तरीका था। उन्होंने सीधा निशाना मुस्लिमों को बनाया था और इस बात को भी हम नहीं झुटला सकते कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों पर बर्बता काफी तेज़ी के साथ बढ़ी है।

 

डेटा पत्रकारिता वेबसाइट इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से अब तक गोहत्या से संबंधित हत्याओं में मरने वाले 84 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं और 97 प्रतिशत ऐसे मामले 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद घटित हुए हैं।

सिर्फ भाजपा ही नहीं काँग्रेस ने भी दबे पांव मुस्लिमों के साथ गद्दारी की है। मुस्लिम समाज को सिर्फ एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है और किया जा रहा है।

यह कानून मुस्लिम विरोधी है

आज देश मे जगह-जगह CAA के विरोध में लोग अनशन पर बैठे हैं, आंदोलन कर रहे हैं और हिन्दुस्तान के साथ-साथ कई और देश अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

CAA कानून सिर्फ हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, मुस्लिमों को छोड़कर अन्य को हिन्दुस्तानी नागरिकता प्रदान करने की गारंटी देता है। भाजपा और उसके समर्थक कहते हैं कि यह देश के मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, क्या वाकई में ऐसा है?

असम में जब NRC लागू हुआ, तो उसमें राष्ट्रपति के बेटे का नाम, कारगिल युद्ध में लड़ने वाले सैनिक का नाम, यहां तक कि मुख्यमंत्री रह चुकी महिला का नाम भी NRC में नहीं आया। देखने वाली बात यह है कि ये सब मुस्लिम समुदाय से हैं। अब आप लोग सोचिए मुसलमान  जिसकी आधी से ज़्यादा आबादी अनपढ़ है, जिसके पास आधारकार्ड भी नहीं है, वे लोग 1971 से पहले के कागज़ात कहां से लाएंगे?

जिस देश मे गृह मंत्रालय से राफेल की फाइल चोरी हो सकती है, क्या उसी देश में घरों से कागज़ातों को चोरी नहीं हो सकती?

साफ तौर पर देखें तो यह कानून संविधान के खिलाफ तो है ही लेकिन मुस्लिम समुदाय के भी खिलाफ है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय को छोड़कर जितने भी समुदाय हैं, उनमें से अगर कोई बाहर होगा तो उनकी नागरिकता के लिए कागज़ हिन्दुस्तानी सरकार खुद बनाएगी क्योंकि CAA कानून इस बात की गारंटी देता है और जो मुसलमान इसमें बाहर हो जाएंगे उन्हें डिटेंशन सेंटर्स में डाल दिया जाएगा, फिर वे अपने आपको साबित करेंगे कि वे हिन्दुस्तानी नागरिक हैं या नहीं।

हिंसा ने रूप वहीं लिया जहां भाजपा सत्ता में है

अब जब यह फैसला कोर्ट को करना है, तब वह बाबरी मस्जिद केस की तरह कह सकती है, कि हम मानते हैं कि तुम 1971 से पहले से यहां रहते हो परन्तु आपकी धार्मिक निष्ठा को देखते हुए हम आपको 5 फीट के कमरे में रहने के लिए जगह दे देते हैं। जिसे डिटेंशन सेंटर्स कहा जाता है।

इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर गोलियां भी दागी गई, जिसमें मरने वाले 19 लोग सिर्फ उत्तरप्रदेश से ही थे। अगर एक खास बात पर नज़र दौड़ाएंगे तब आप साफ देख पाएंगे कि हिंसा ने रूप वहीं लिया है, जहां भाजपा सत्ता में है, अन्य स्थानों पर बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से इस काले कानून का विरोध किया जा रहा है।

शाहीन बाग दिल्ली से लेकर बैंगलोर, मुम्बई और जामिया से लेकर अलीगढ़ और तमाम विश्वविद्यालयों, कॉलेजो में इसका विरोध प्रदर्शन जारी है। भाजपा इस कानून को वापस लेने के बजाय इस बात पर अड़ी हुई है कि वह NRC लागू करेगी, जैसा गृहमंत्री अमित शाह ( भाजपा अध्यक्ष ) ने कहा कि हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे। यह बात उनकी इस ज़िद को ज़ाहिर करती है कि जब पूरा देश इस काले कानून के खिलाफ है तब भी वे इसपर अड़े हुए हैं।

झूठ पर झूठ

इस कानून को लेकर कई बार झूठ बोला गया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से खड़े होकर कहा कि देश मे डिटेंशन सेंटर्स नहीं है। वहीं असम में 3000 लोगों के लिए बना डिटेंशन सेंटर का कुल खर्च ₹46 करोड़ आया है। अब आप ही देखिए कि झूठ क्या है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

ट्विटर पर पोल कराए गए। वहां से हारने के बाद भाजपा द्वारा मिस कॉल अभियान चलाया गया, जिसमें महिलाओं की तस्वीर लगाकर ‘सेक्स करने के इच्छुक हैं, तो कॉल करें’ ऐसे मैसेजेस को वायरल किया गया लेकिन उसमें भी हार ही हाथ लगी।

हिन्दुस्तान के लोग 1857 की तरह एक साथ एक जुट होकर इस काले कानून की मुखालफत कर रहे हैं। देश भर में इस काले कानून के खिलाफ ऐतजाज़ हो रहे हैं और सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि देश का हर एक नागरिक इस काले कानून के खिलाफ खड़ा है।

मुखालिफत करने वाले सिर्फ जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र ही नहीं बल्कि स्वराज पार्टी के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव भी हैं, भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद भी हैं, इतिहासकार रामचन्द्र गुहा भी हैं, रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद सोहब भी हैं और शाहीन बाग की माँ बहने भी हैं और इन सबका एक ही धर्म है, जिसे हम संविधान कहते हैं।

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